महात्मा गांधी का सर्वोदय दर्शन

– डॉ. मनोज चतुर्वेदी

महात्मा गांधी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के पितामह थे। यदि उनको अपने समय का अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, दार्शनिक, वैद्य, शिक्षाविद, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, कानूनविद्, साहित्यकार, सौदर्यशास्त्री, संत, संयासी कहा जाय तो उसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। अर्थात् वे सबकुछ थे। जब हम संपूर्ण गांधी वाङगमय में गांधी के विचारों मे गोता लगाते है, तो हमें लगता है कि उनके जीवन का लक्ष्य भारत की आजादी के साथ मानवता की वैश्विक मुक्ति से था। उनके मन में एकमात्र यही लक्ष्य था कि भारत, एशिया और अफ्रीका ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की मुक्ति का नेतृत्व करे। इस नेतृत्व में उपयोगितावादिओं की तरह बहुतों की नहीं सबके हित की कामना थी। मूल रूप से गांधीवादी पद्धति का निरूपण दक्षिण अफ्रीका में 1906 के बाद हुआ था और गांधी जी के द्वारा समाज को सर्वोदय दर्शन के रूप में एक महत्वपूर्ण विचार प्राप्त हुआ।

‘सर्वोदय’ शब्द गांधी द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा विचार है जिसमें ‘सर्वभूत हितेश्ताः’ की भारतीय कल्पना, सुकरात की ‘सत्य-साधना’ और रस्किन की ‘अंत्योदय की अवधारणा’ सब कुछ सम्मिलित है। गांधीजी ने कहा था ” मैं अपने पीछे कोई पंथ या संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता हूँ।” यही कारण है कि सर्वोदय आज एक समर्थ जीवन, समग्र जीवन, तथा संपूर्ण जीवन का पर्याय बन चुका है।

‘सर्वोदय’ एक सामासिक शब्द है जो ‘सर्व’ और ‘उदय’ के योग से बना है, सर्वोदय एक ऐसा अर्थवान शब्द है जिसका जितना अधिक चिंतन और प्रयोग हम करेंगे, उतना ही अधिक अर्थ उसमें पाते जायेंगे। सर्वोदय शब्द के दो अर्थ मुख्य हैं – सर्वोदय अर्थात् ”सबका उदय”, दूसरा ”सब प्रकार से उदय।” अथवा सर्वांगीण विकास इसका अर्थ अलग-अलग दृष्टिकोण से अलग-अलग है जैसे भौतिकतावादी अपनी बढ़ी हुई आवश्यकता की पूर्ति में लगा रहता है और आध्यात्मवादी ब्रह्म-प्राप्ति या मोक्ष प्राप्ति में रत रहता है।

आज जिस अर्थ में सर्वोदय हमारे सामने प्रस्तुत है उसकी आधारशिला सर्वप्रथम गांधी जी ने रस्किन की ‘अंटु दिस लास्ट’ पुस्तक के संक्षिप्त गुजराती अनुवाद में रखी है। गांधी जी ने लिखा है ” इस पुस्तक का उद्देश्य तो सबका उदय यानि उत्कर्ष करने का है, अतः मैने इसका नाम सर्वोदय रखा है।”

स्वतंत्रता से पूर्व स्वराज शब्द का जो महत्व था वही महत्व सर्वोदय शब्द का आज है। आज सर्वोदय का संपूर्ण शास्त्र विकसित हो रहा है उसकी राजनीति, अर्थनीति, शिक्षानीति, धर्मदर्शन इत्यादि ‘सर्वोदय समाज’ नामक आस्था रखने वालों का एक आध्यात्मिक भाईचारा भी बना है और ‘सर्व सेवा संघ’ नामक संस्था भी है। डॉ. राममनोहर लोहिया ने गांधीवादी विचार एवं प्रवृत्तियों को बहुत ही नजदीक से देखा था। उनका मानना था कि 1916 से चले गांधी का सर्वोदय 1948 (गांधी के हत्या के बाद) में तीन प्रकार हो चुका है। ये हैं – सरकारी गांधीवादी, मठी गांधीवादी और कुजात गांधीवादी।”

महात्मा गांधी ने 1936 में यह घोषणा की थी कि ” गांधीवाद नाम की कोई चीज है ही नहीं” गांधी जी मूलतः एक प्रयोगकर्ता थे इसलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा को ”सत्य का प्रयोग” कहा है। सत्य एवं अहिंसा का समन्वय ही उनके जीवन का लक्ष्य था। अतः उन्होंने किसी नए तथ्य या सिद्धांत का अविष्कार नहीं किया।” इसलिए गांधी विचार और फिर उस पर आधारित सर्वोदय विचार का अर्थ निश्चित खाका तैयार किया हुआ जीवन का पूरा-पूरा चित्र है, वाद नहीं है। ‘वाद’ का मतलब कोई ऐसा महत्वपूर्ण शास्त्र जिससे जीवन संबंधी सभी समस्याओं का जवाब हासिल कर लिया जाये तो भी गांधीवाद या सर्वोदयवाद कोई चीज नहीं है। लेकिन जीवन व्यवहार के लिए कुछ आधारभूत नैतिक एवं समाजिक सिद्धांतों को स्वीकार करना हो तो मानना होगा कि ‘गांधीवाद’ है।

सर्वोदय की परिभाषा पर अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग मंतव्य दिए हैं।

क) विनोबा भावे के अनुसार, ” सर्वोदय का अर्थ है सर्व सेवा के माध्यम से समस्त प्राणियों की उन्नति। हम अधिकतर के सुख से नहीं सबके सुखी होने से संतुष्ट हैं। हम उँच-नीच, अमीर-गरीब, सबकी भलाई से ही संतुष्ट हो सकते हैं।” ख) किशोरी लाल मशरूवाला के अनुसार, ”गांधीवाद को हम ‘सर्वोदयवाद’ तथा ‘सत्याग्रह मार्ग’ कह सकते हैं। ” ग) काका साहेब कालेलकर के अनुसार, गांधीवाद को ‘गांधी मार्ग’ या ‘गांधी दृष्टि’ कहा जा सकता है। ” घ) आचार्य जे. बी. कृपलानी के अनुसार गांधीवाद को सर्वोदयकारी समान व्यवस्था कहा जा सकता है।” ङ)हरिभाऊ उपाध्याय के अनुसार, गांधीवाद को गांधी विचार न कहकर ‘गांधीवाद’ ही कहना ठीक होगा। ” च) प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक यशपाल के अनुसार, गांधी के विचारों को ‘गांधीवाद’ ही कहना ठीक होगा।” उपर्युक्त विद्वानों के गांधीवाद के संबंध में प्रतिपादित विचारों से ऐसा लगता है कि गांधी ने भले ही अपने विचारों को किसी ‘वाद’ से नही जोड़ा लेकिन गांधी विचार-दर्शन को ‘गांधीवाद’ कहना एकदम सत्य होगा। यदि हम गांधी द्वारा प्रतिपादित विचारों के परिप्रेक्ष्य में आज की व्याख्या करना चाहते हैं तो यह उपयुक्त होगा।

नैतिक जीवन में सहजीवन अपने आप में बड़ा मूल्य है। जिस व्यवहार की अपेक्षा हम खुद करते हैं, वही बर्ताव दूसरों के साथ भी करें।

महात्मा गांधी अनुसार व्यक्ति का कल्याण समाज कल्याण में निहित है, अतः सहजीवन कोई परमार्थ का सूत्र नहीं बल्कि जीवन का आधार है। लेकिन सहजीवन की साधना साम्ययोग के बिना संभव नहीं। इसलिए सर्वोदय विचार की यह मान्यता है कि ” चाहे वकील का काम हो या नाई का, दोनों का मूल्य बराबर है।” सर्वोदय दृष्टि से मजदूर किसान या कारीगर का जीवन ही सच्चा एवं सर्वोत्कृष्ट है।” पसीना बहाकर रोटी खाना ही यज्ञ है।”

मानव समाज के उत्थान के लिए विविध प्रवृत्तियों का विकास हुआ लेकिन वे प्रवृत्तियां मात्र कुएं के मेढ़क के सदृश हो गयीं। फलतः उनका वैचारिक अधिष्ठान लुप्तप्राय हो चुका है। इस लिए गांधी ने माना कि शरीर नश्वर है तथा विचारों का कभी विनाश नहीं होता क्योंकि कहा गया है कि शब्द ही ब्रह्म है। अर्थात् शब्द की महत्ता का प्रतिपादन केवल गांधी ने नहीं किया था। उन्होंने तो सर्वोदय (अंत्योदय) को जिया। भारतीय समाज में व्याप्त शोषण, उत्पीड़न, आर्थिक, सामाजिक विषमता पर प्रहार के साथ संयम, अपरिग्रह, त्याग द्वारा संपूर्ण भारत को आलोकित किया।

महात्मा गांधी ने अपने सर्वोदय दर्शन के द्वारा संघर्ष का सूत्रपात किया।” महात्मा गांधी ने भारतीय जीवन-मूल्यों से प्रभावित होकर सत्याग्रह, अपरिग्रह तथा सविनय अवज्ञा रूपी आंदोलनों का सूत्रपात किया। उसमें उन्हें पर्याप्त रूप से सफलता मिली बल्कि अस्पृश्यता, शराबबंदी तथा खादी ग्रामोद्योग द्वारा आर्थिक अन्याय का बहुतायत में मुकाबला किया गया। अन्याय का प्रतिकार ही उनके जीवन का लक्ष्य था।”

सर्वोदय कोई संप्रदाय नहीं यह तो एक मानव एकता, सेवा तथा समरसता की भावना से समग्र दृष्टि है जो पूर्णरूपेण भारतीय चिंतन का पर्याय है। इसमें भारतीय एवं पाश्चात्य विचारों के परिपेक्ष्य में गांधी ने सबके अंदर परमात्मा का स्वरूप देखा। गांधी द्वारा प्रतिपादित सर्वोदय विचार में त्याग के द्वारा हृदय-परिवर्तन, तर्क एवं अध्ययन द्वारा वैचारिक परिवर्तन, शिक्षा के द्वारा मानवता का परिवर्तन तथा पुरूषार्थ द्वारा स्तर परिवर्तन पर जोर है। इसमें डॉ. लोहिया की ‘सप्त क्रांतियां’, लोकनायक जयप्रकाश नारायण का ‘चौखंभा राज्य’, मार्क्स की ‘वर्गविहीन व्यवस्था’ गांधी का ‘रामराज्य’ तथा सावरकर-हेडगेवार के ‘हिंदू राष्ट्र’ का साक्षात् दर्शन होता है। इसमें समाजिक व्यवस्था को बदलकर प्रेम एवं अहिंसा को स्थान मिलता है। इसमें मार्क्स की भांति साध्य-साधन में भेद न करके साध्य की प्राप्ति के लिए अहिंसा, प्रेम, सद्भाव, मित्रता का सर्वोपरि स्थान रहता है।

महात्मा गांधी के सर्वोदय दर्शन पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालने पर ऐसा अभास होता है कि वर्तमान युग में जहां हिंसा, अतिसंग्रह, मतभेद, धर्मांधता, क्षेत्रवाद, जातिवाद, लैंगिक भेदभाव, नस्लभेद तथा राष्ट्रभेद का सर्वत्र नंगा नाच हो रहा है। वहां महात्मा गांधी भारतीय संस्कृति के माध्यम से संपूर्ण विश्व को बदलने के लिए सत्य एवं अहिंसा को मुख्य अस्त्र-शस्त्र मानते हैं तथा संपूर्ण समस्याओं का समाधान चाहते हैं। आज जहां मुठ्ठी भर लोग सुख भोग रहे हैं वही देश की चालीस प्रतिशत जनता 20 रुपये मजदूरी पर जीवनयापन कर रही हैं। यह गांधी के सर्वोदय दर्शन द्वारा ही सुलझाया जा सकता है। इसके साथ-साथ राज्यसत्ता, धर्मसत्ता, अर्थसत्ता, संतसत्ता तथा बौद्धिकसत्ता का समन्वय करके सर्वोदय दर्शन को लागू किया जा सकता है।

* लेखक, पत्रकार, फिल्म समीक्षक, कॅरियर लेखक, समाजसेवी एवं हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक हैं तथा ‘आधुनिक सभ्यता और महात्मा गांधी’ पर डी. लिट्. कर रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. Dr. Chaturvedi Ji,

    I’m also follower of Gandhi Darshan. I hv read SATYA KE PRAYOG and reading UNTO THE LAST. good article. I want to touch with you if you want? Please mail me or call me.
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