सावन की सुहानी रात थी
पति पत्नी की बात थी
कहा, पति ने बड़े प्यार से
देखो, प्रिये
कल मुझे आफ़िस जल्दी है जाना
वहां बहुत काम पड़ा है
सब मुझे ही है निबटाना .
प्लीज ,जाने मन
कल, सिर्फ कल
बना लेना अपना खाना
इसके लिए
मैं तुम्हारा ‘ग्रेटफूल’ रहूँगा
आगे फिर कभी
तुम्हे डिस्टर्ब नहीं करूँगा .
पत्नी के चेहरे का रंग
तेजी से बदल रहा था .
गोरा से पीला
फिर लाल हो रहा था
जबान अब उसने खोली
तुनक कर फिर बोली .
‘ग्रेट’ ‘फूल ‘ तो तुम हो ही
ग्रेटफूल क्या रहोगे
मेरा मूड बिगाड़ने के लिए
बस यही सब तो करोगे .
राम जाने,
यह तुम्हारा आफ़िस है
या है मेरी सौत
लगता है इसी के कारण
होगी किसी दिन मेरी मौत .
मैं पूछती हूँ ,
जब अलग अलग थी
तुम्हारी हमारी राह
तो फिर तुमने
क्यों किया मुझसे निकाह .
क्या सीखूँ मैं अब
डिस्को डांस और माडर्न संगीत
दुर्भाग्य है हमारा
जो तुम-सा मिला मनमीत
जो न समझे
क्या है कला, क्या है संस्कृति .
तुम जैसे पतियों की तो
भ्रष्ट हो गयी है मति
इसी कारण अपने देश की
हो रही है दुर्गति .
पर , इस तरह अब नहीं चलेगा काम
हमें ही करना पड़ेगा
कुछ न कुछ इन्तजाम .
देखना, हम पत्नियां अब
ऐसी संस्था बनायेंगी
जो दफ्तरों में सुधार लायेगा
देर से दफ्तर खुलवाएगा
जल्दी बंद भी करवाएगा .
हर महीने
पांच पांच सी.एल भी दिलवाएगा
पत्नी के बीमारी के नाम पर
सिक लीव की व्यवस्था करवाएगा .
बॉस की डांट से भी
तुम पतियों को बचाएगा
बॉस की पत्नी से
बॉस को खूब डंटवाएगा .
और भी बहुत कुछ करेगा-करवाएगा
इस तरह पति-पत्नी के रिश्ते को
खूब मधुर बनाएगा
तभी तो आधुनिकता का परचम
हर जगह लहराएगा !
कविता अच्छी लगी मिलन सिन्हा जी धन्यवाद !
I like the poem very much and is useful for my project.. Thanks Pravakta.com……