कुर्सी नहीं, सोफे पर बैठाइए हिंदुस्‍तान के वजीर को !

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आशीष महर्षि

downloadहिंदुस्‍तान का वजीर बनने के लिए बड़ी हाय हाय मची हुई है। पद एक। कुर्सी एक। लेकिन हर कोई ख्‍वाब देख रहा है। कोई पीएम इन वेटिंग है तो कोई पीएम इन फ्यूचर। कुछ का तो एक पैर कब्र में और दूसरा दिल्‍ली की ओर है। कोई गुजरात से आकर दिल्‍ली पर बैठना चाहता है तो कोई यूपी से आकर। बिहार और महाराष्‍ट्र के माननीयों का मन भी प्रधानमंत्री की कुर्सी को देखकर डोल रहा हैं। दिल्ली में युवराज पहले से ही विराजमान है। श्रीराम के प्रदेश से कोई हाथी पर तो कोई साइकिल पर चढ़कर दिल्‍ली आने के लिए बेताब है। उधर शिवाजी के प्रदेश में भी मराठा पावर जोर मार रही है।

अब जब इतने लोग हैं तो क्‍यों नहीं कुर्सी की जगह सोफा रख दिया जाए। एकदम मुलायम मखमली सोफा। फिर एक प्रधानमंत्री क्‍यों, दो क्या तीन – चार एक साथ बैठ सकेंगे। क्‍योंकि कुर्सी की ख़ास बात तो यही है कि उसपर दो व्यक्ति एक साथ नहीं बैठ सकते। इसलिए कुर्सी महज एक कुर्सी नहीं एक असीमित सत्ता है। हाँ अगर कुर्सी के बजाय, सोफे-सेट का कॉन्सेप्ट आ जाये तो मजा आ जाए। क्‍या कोई मेरे सुझाव पर विचार करेगा। सोफे की गददी मुलायम होगी। एडस्‍ट कीजिए। कईयों को बैठाइए। किसी को बाजू में बैठाइए तो किसी को गोद में बैठाइए। इसके पाये कटटरों की तरह मजबूत तो गद्दी वफादर नेताओं की तरह मुलायम। आह, क्‍या बात है।

कुर्सी की जगह सोफा आएगा तो उस पर बैठने के लिए युवराज भी आएंगे। अरे आ गए जनाब। जयपुर में युवराज को देखकर आया हूं। आह क्‍या ललाट। आह क्‍या जुबान। आह, आखिरकार सदियों के बाद राम ने युवराज के अवतार में जन्‍म ले ही लिया! न तो ऊपर वाला बिना मान मनौव्‍वल कलजुग में पापियों के नाश के लिए आता है और ना ही इस बार युवराज आएं हैं। मां रोईं। सलाहाकार पैर में गिरे। गुजरात से दुश्‍मन ने हड़काया। तब जाकर भगवन ने दर्शन दिए। अजी दर्शन क्‍या, अवतार लिए।

युवराज के इस नए अवतार से रक्षकों से लेकर भक्षकों तक में खौफ मचा हुआ है। जिस घर में युवराज ने जन्‍म लिया है, वहां आरजी फैक्टर का सबसे अधिक खौफ परिवार के बड़े, बूढ़े और घाघों पर देखा जा सकता है। दूसरी ओर, परिवार के बाहर खलबली सी मची हुई है। युवराज के सामने किस गंगू तेली को उतारा जाए, चिंतन अब शुरू हो चुका है। उधर गंगू तेली तो इधर युवराज, दोनों ही वजीर बनने के लिए बेताब हैं। सोफा आने से राजा भोज और गंगू तेली एक साथ आजू बाजू में विराज सकते हैं।

सोफा कांस्पेट को राजनीति के बाद कॉरपोरेट, मीडिया, विज्ञापन कंपनियों के अलावा हर उस जगह लागू किया जा सकता है जहां कुर्सी की चाह लड़ाई में बदल जाती है। टंगडी मार राजनीति के इस युग में सोफे को सीधे आलाकमान से भी बांधकर देश में स्थिरता लाने की कोशिश की जा सकती है। मसलन जैसे ही हिंदुस्‍तान के कलजुगी शहंशाह थोड़ा सा भी इधर उधर हो, आलाकमान अपना काम कर दें।

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