खोई ताकत की तलाश में

0
189

आप इस शीर्षक से भ्रमित न हों। मैं किसी खानदानी शफाखाने का एजेंट नहीं हूं, जो खोई ताकत की कुछ दिन या कुछ महीनों में वापसी का दावा करूं। हुआ यों कि कल शर्मा जी पार्क में आये और सबको मिठाई बांटने लगे। पूछने पर बोले कि राहुल बाबा नये वर्ष की छुट्टी विदेश में बिताकर नयी शक्ति और ऊर्जा के साथ लौट आये हैं। बस, इसी खुशी में वे सबका मुंह मीठा करा रहे हैं।

 

इन दिनों सर्दी के कारण सुबह और शाम की महफिल तो बंद है। हां, धूप निकलने पर दोपहर में वहां आकर लोग एक-दूसरे का हाल पूछते हुए विभिन्न विषयों पर मुक्त चर्चा कर लेते हैं।

 

हमारे प्रिय शर्मा जी खानदानी आदमी हैं। इसलिए वे खानदानी दलों और नेताओं को खूब पसंद करते हैं। भारत में सबसे पुराना राजनीतिक खानदान गांधी-नेहरू खानदान है। यद्यपि अब उसमें न गांधी का कोई वंशज है, न नेहरू का। फिर भी वह गांधी-नेहरू परिवार कहलाता है। ऐसे ही सबसे पुराना खानदानी दल कांग्रेस है। यद्यपि कांग्रेस कई बार बनी और बिगड़ी है। कभी नीचे वालों ने उसे तोड़ा, तो कभी ऊपर वालों ने। वर्तमान कांग्रेस में 130 साल पुरानी देशभक्तों वाली कांग्रेस के डी.एन.ए. का कितना अंश शेष है, ये शोध का विषय है ?

 

गांधी-नेहरू परिवार हो या फिर कांग्रेस, उसकी स्थिति मेरे बाबा जी के चश्मे जैसी है। उसके चार बार शीशे बदले और पांच बार फ्रेम, फिर भी वे उसे 25 साल पुराना बताते थे। खैर, आप भले ही न मानें; पर शर्मा जी इसे ही असली कांग्रेस मानते हैं और यदि उनके सामने कोई उसे बूढ़ी कांग्रेस कह दे, तो वे नाराज हो जाते हैं।

 

किसी ने कहा है कि ‘‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी।’’ यहां भी बात राहुल बाबा को विदेश से प्राप्त ऊर्जा की हो रही थी और पहुंच गये इतिहास में। कहते हैं कि अपने इतिहास और भूगोल से सबको ताकत मिलती है। वर्मा जी बुद्धिजीवी किस्म के आदमी हैं। बाल की खाल निकालना कोई उनसे सीखे। उन्होंने इस विषय पर पूरा भाषण ही दे डाला। उसके कुछ अंश आप भी सुनें।

 

प्राणी हो प्राकृतिक तत्व, वह सदा अपने मूल की ओर आकर्षित होता है। वह सुख-दुख में भी वहीं से शक्ति और सांत्वना पाता है। बच्चों को बाहर खेलते समय यदि चोट लग जाए या किसी से मारपीट हो जाए, तो वे तुरंत घर आकर मां की गोदी में बैठकर रोने लगते हैं। यद्यपि वे बाहर भी रो सकते हैं; पर उन्हें पता है कि वहां कोई उन्हें घास नहीं डालेगा। घर में मां उसे पुचकारेगी, सांत्वना देगी और कुछ खिला-पिलाकर चुप करा देगी।

 

जहां तक बड़ों की बात है, दिन भर काम-धंधे की भागदौड़ के बाद उन्हें आराम घर में आकर ही मिलता है। दुनिया में अच्छी से अच्छी जगह चले जाएं, महंगे होटलों में जाकर बढ़िया से बढ़िया खा-पी लें; पर जो सुख अपनी मां या पत्नी के हाथ के भोजन में मिलता है, उसका कोई मुकाबला नहीं है।

 

गुप्ता जी बीच में टपक पड़े, ‘‘किसी ने कहा भी तो है – जो सुख छज्जू के चौबारे, वो न बलख न बुखारे।’’

 

– जी हां। किसी भी पत्थर को ऊपर फेंकें, तो वह थोड़ी देर में नीचे आ जाता है। कोई इसे पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहता है; पर संतों के अनुसार पत्थर का मूल पृथ्वी है। इसलिए वह अपने मूल की ओर लौट आता है। आग की लपटें सदा ऊपर ही जाती हैं। कोई इसे उसमें छिपी गैस का हल्कापन कहता है; पर दूसरी परिभाषा के अनुसार वह अपने मूल सूर्य की ओर चल देती हैं। वर्षा के रूप में पानी बादलों से गिरता है और फिर भाप बनकर वहीं चला जाता है। स्पष्ट है कि व्यक्ति हो या प्राकृतिक तत्व, उसे शक्ति और विश्राम अपने मूल से ही प्राप्त होता है।

 

शर्मा जी इस निरर्थक बौद्धिक चर्चा से उकता गये – वर्मा जी, लम्बे भाषण की बजाय आप सीधी बात क्यों नहीं कहते ?

 

– मैं सीधी बात ही कह रहा हूं। व्यक्ति और प्रकृति की तरह ये बात राजनीतिक दलों के साथ भी सत्य है। जैसे भा.ज.पा का मूल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। इसलिए अपनी हर समस्या के समाधान के लिए वह उधर देखती है। वामपंथी दलों के मां-बाप रूस और चीन हैं। यद्यपि अब रूस बिखर चुका है और चीन बूढ़ा हो गया है। वे दोनों अपनी बीमारी से ही परेशान हैं। इसलिए अब भारत में भी वामपंथियों के दिन खराब चल रहे हैं।

 

– लेकिन इसका राहुल जी की विदेश यात्रा से क्या नाता है ?

 

– शर्मा जी, आप तो पुराने कांग्रेसी हैं। आपको पता ही होगा कि कांग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज ने की थी।

 

– हां, पता है ।

 

– और कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष भी विदेशी हैं ?

 

– विदेशी तो नहीं, हां विदेशी मूल की जरूर हैं; लेकिन यह मत भूलो कि अब वे हमारे-तुम्हारे से अधिक भारतीय हैं।

 

– जो भी हो; पर क्या ये सच नहीं है कि उन्हें और उनके सपूत को शक्ति प्राप्त करने के लिए बार-बार विदेश जाना पड़ता है। मैडम जी को न जाने क्या रोग है, जिसका इलाज बाहर ही होता है। इस बारे में वे कुछ बताती भी नहीं हैं। पिछली बार राहुल बाबा दो महीने के लिए कहीं गये थे। लौटकर उन्होंने संसद और सड़क पर खूब हंगामा किया। लोगों को लगा कि मुर्दा कांग्रेस फिर जी उठी है। अब नये साल पर वे फिर विदेश गये थे। कांग्रेसियों को लगता है कि वे फिर कुछ कमाल दिखाएंगे।

 

– तो विदेश जाने में बुरा क्या है ?

 

– बुरा तो कुछ नहीं है। मैं तो यह कह रहा हूं कि जैसे क्रिकेट एक भारतीय खेल है, जिसकी खोज इंग्लैंड में हुई। ऐसे ही जिसे आप ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ कहते हैं, वह एक विदेशी संस्था है, जिसकी स्थापना भारत में हुई। यद्यपि वह न तो भारतीय है और न ही राष्ट्रीय। विदेशी होने के कारण उसे विदेश से ही ताकत मिलती है।

 

इस बात पर सबने ताली बजा दी। बस फिर क्या था, शर्मा जी आग बबूला हो गये। उन्होंने गुस्से में आकर अपनी छड़ी उठाई और दांत किटकिटाते हुए वर्मा जी की तरफ दौड़ पड़े।

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here