व्यंग्य /गंगा में चुनावी दंगा

चुनाव प्रचार की पिछले कल की थकी सांझ गंगा में ………..हाथ और हाथी चुनाव के वक्त सौभाग्य से एक साथ कहीं और डुबकी लगती न देख गंगा में डुबकी लगाने पधारे। गंगा ने बहुत रोका, पर नहीं माने तो नहीं माने। दोनों के जनता से झूठे वादे करके बुरे हाल। वोटरों को पटाते पटाते खुद पटे ठगे हुए से। बेचारे दोनों ही उस वक्त न घर के दिख रहे थे न घाट के। धूल-पसीने से नहाए हुए। जनता से ढेरों गालियां खाए हुए। सच्ची यार, ये साला चुनाव लीडरों का भरथा बना कर रख देता है। लीडर चाहे किसी भी लेबल का हो। दोनों सोचे, थोड़ी-थोड़ी गंगा में डुबकी लगा थकान और पाप दोनों कुछ कम हो जाएं। आह रे कोड ऑफ कंडक्ट! फाइव स्टार होटल के स्वीमिंग पुल से जनता के पापों से गंदली हुई गंगा में ला पटका पट्ठे ने। एक दूसरे को प्यार से घूरे जैसे बिन चबाए ही निगल जांएगे। पर एक दम संभले! यार हम तो मौसेरे भाई हैं! एक-दूसरे को खाने पड़ने की जरूरत क्या? चार दिन की ही तो दूरियां हैं, फिर वही ढाक के तीन पात। अपने रिश्ते का अहसास होते ही गंगा के पानी में डुबकी लिए नीचे से दोनों ने हाथ मिलाए। मन नही मन मुस्कुराए। साली जनता परलोक के चक्कर में आई देख न ले, चुनाव के दिनों में तो कम ने कम ढोल की पोल नहीं खुलनी चाहिए। बाकी तो चलता रहता है। चाहते तो गले जी भर मिलना थे पर जनता भी वहां नहा रही थी, डुबकियां लगाती चुनाव चर्चा में उलझी हुई।

हाथी और हाथ को एक साथ गंगा में घुसते देख जनता परेशान! हाथ और हाथी एक साथ!! जरूर मिलवा कुश्ती है। सोशल इंजीनीयरिंग से पार्टी इंजीनीयरिंग। चलो, कमल के साथ ही चला जाए। हाथ और हाथी भांप गए। और गंगा में गरदन तक डूबे हुए नौटंकी शुरू ‘और भई गंदे हाथ क्या हाल हैं?’ हाथी ने गंगा में अपने दिमाग की धूल झाड़ते हुए फिकरा कसा।

‘ठीक हूं फसलें उजाड़ने वाले हाथी, कहां-कहां फसल उजाड़ आया?’

‘रे हाथ! चल भाग यहां से, अबके तुझे मरोड़ा नहीं तो पूंछ मुंडवा लूंगा। अबके तेरा वास्ता कुत्तु से नहीं,हाथी से पड़ा है।’

‘तू भाग यहां से! गंगा जबसे बनी है यहां तबसे अपना राज है।’

‘तूने परिवारवाद चला रखा है रे हाथ!। यहां लोकतन्त्र है। गंगा किसीके बाप की नहीं, लोकतन्त्र की है। ‘हाथी चिंघाड़ा तो गंगा में डुबकियां लगाना छोड़ दस जने उसके साथ फटे जांघियों में खड़े हो गए।

‘हां! मेरे बाप की है, मेरे बच्चों की है,आगे उनके बच्चों की होगी।’

हाथ सिर की टोपी उठा अपना गंज खुरकने लगा। उसने नकली गुस्से में अपने दांत किटकिटाए तो गंगा में नहाते दस उसके साथ खड़े हो लिए, बाजू चढ़ाए। चुनाव का रंग जमना शुरू हो गया।

‘हाथी ही अबके डीएम होगा तो दिल्ली में पीएम होगा।’

‘दिल्ली का पीएम तो अपना राहुल ही होगा। अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली। ‘ देखते ही देखते हाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर।

‘रे हाथ! तूने देश के हाथों को आज तक दिया क्या ? परिवारवाद!’ हाथी फिर चिंघाड़ा। सोशल अभियांत्रिकी का टॉनिक पी रखा है भाई साहब! बचे आधे श्रध्दालु हाथी का दम देख उसके साथ हो लिए।

‘और तू क्या दे देगा देश को जो अपना जन्म दिन मनाने के लिए तक चंदा इकट्ठा किए फिरता है? अपना पेट तो देख! तेरा पेट भर जाए जो जनता को मिले, पर वह कभी भरने वाला नहीं। ‘गंगा के घाट पर बैठी जनता तो जनता बाहर टहलती जनता भी खुसफुसाती हुई हाथी और हाथ के समर्थन में कतारबध्द होने लगी। देखते ही देखते सारा हरिद्वार कमाल से दो गुटों में बंट गया। एक दूसरे को धकियाने पर उतारू!

एक ने कहा,’हां यार, हाथी सच बोल रहा है।’

दूसरे ने कहा,’तो क्या हाथ झूठ बोल रहा है? हाथ हाथी से अधिक सच बोल रहा है।’
तीसरे ने कहा,’दोनों ही ठीक बोल रहे हैं।’

हाथ-हाथी ने एक-दूसरे को आंख मारी, अपने अपने अंगोछे वहीं फैंके और मंद-मंद मुस्कराते हुए लक्ष्मण झूले की ओर हो लिए। कमल अपनी पंखुड़ियों के साथ कनखल में पोस्टर चिपकाने में मग्न था। उसने हरिद्वार में की गलियों में हल्ला सुना तो सकपकाया।

-डॉ. अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,
नजदीक मेन वाटर टैंक,
सोलन-173212 हि प्र

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