व्यंग्य बाण : अराउंड दि वर्ड, बैकवर्ड

0
138

 

पाठक अंग्रेजी शीर्षक के लिए क्षमा करें; पर आज मैं मजबूर हूं। आप जानते ही हैं कि कई लोगों को कीर्तिमान (रिकार्ड) तोड़ने या नये बनाने का जुनून होता है। वे इसके लिए किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। ये रिकार्ड काम के भी हो सकते हैं और बेकार भी। फिर भी ये बन रहे हैं और बनते ही रहेंगे। इनके बनने का एक कारण यह भी है कि इससे रिकार्ड बनाने वाले को प्रसिद्धि मिलती है। कहा भी गया है कि कुत्ता आदमी को काटे, तो कोई बात नहीं; पर यदि आदमी कुत्ते को काट ले, तो यह मुखपृष्ठ की खबर बन जाती है। इस चक्कर में कोई हाथों के बल चलता है, तो कोई पैरों से पापड़ बनाता है। कोई बालों से ट्रक खींचता है, तो कोई कानों से सिगरेट का धुआं निकालता है। एक घुमक्कड़ लेखक राबर्ट रिप्ले ने तो ऐसे अजूबों पर ‘बिलीव इट ऑर नॉट’ नामक पुस्तक ही लिख डाली, जो विश्व भर में लोकप्रिय है। ऐसे ही एक अजूबे की खबर मैंने पिछले दिनों पढ़ी। बहुत से लोग दुनिया घूमते हैं। कोई वायुयान से तो कोई जलयान से। कोई रेल से तो कोई कार या साइकिल से। कुछ लोग पैदल भी विश्व भ्रमण करते हैं; पर एक आदमी ने पीठ की दिशा में चलकर दुनिया घूमने का निश्चय किया। उसने इस यात्रा को नाम दिया ‘अराउंड दि वर्ड, बैकवर्ड’। बस, इस व्यंग्य के शीर्षक की प्रेरणा वह यात्री ही है। उस व्यक्ति की यात्रा कब पूरी होगी, यह तो वही जाने; पर भारत में कई नेता और राजनीतिक दल ऐसे हैं, जो लगातार इस सूत्र का पालन कर रहे हैं। लगता है वे अगले कुछ साल में अपनी यात्रा पूरी कर इतिहास की वस्तु हो जाएंगे।  सबसे पहले भारत की महान खानदानी पार्टी ‘कांग्रेस’ को लें। ‘बैकवर्ड’ चलने के मामले में इसकी गति कमाल की है। कहां तो पिछले चुनाव में वह सत्ता में थी; पर इस बार नेता विपक्ष की कुर्सी के भी लाले पड़ गये हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कांग्रेस की स्थापना सन् 1900 से पंद्रह साल पहले एक विदेशी ने की थी, तो इसकी समाप्ति सन् 2000 के पंद्रह साल बाद एक विदेशी के हाथों होना ही ठीक है। इस प्रकार इतिहास का एक महत्वपूर्ण चक्र पूरा हो जाएगा। मैडम सोनिया के नेतृत्व में राहुल बाबा इसी अभियान में जुटे हैं। देश के प्रति की जा रही उनकी इस सेवा के लिए भारतवासी उन्हें सदा याद रखेंगे। कांग्रेस के बाद श्री मुलायम सिंह और उनकी घरेलू समाजवादी पार्टी की बात करें। कहते हैं कि चार समाजवादी मिलकर पांच दल  बना लेते हैं। समाजवाद का अर्थ ही है – नेता पहले, समाज बाद में। ऐसे में मुलायम सिंह ने क्या गुनाह कर दिया। सुना है कि उनके घर में भी उनके बेटे और भाई के दो दल हैं। अब उनकी छोटी पुत्रवधू भी अलग रास्ते पर है। खुदा खैर करे।  जहां तक मुलायम जी के ‘बैकवर्ड’ चलने की बात है, तो उन्होंने सब रिकार्ड तोड़ दिये हैं। वे शान-शौकत में मायावती से कम थोड़े ही हैं। इसलिए उन्होंने अपना 75 वां जन्मदिन रामपुर में मनाया। इसके लिए इंग्लैंड से विशेष बग्घी मंगायी गयी। इस तमाशे पर हुए खर्च की बात न पूछें, वरना ‘नवाब ए रामपुर’ आजम खां नाराज हो जाएंगे; और उनकी नाराजगी मुलायम जी पर बहुत भारी पड़ती है। हां, इतना जरूर है कि भारत में समाजवाद के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव और डा. राममनोहर लोहिया आज होते, तो वे अपने इस मानसपुत्र की बग्घी में घोड़ों की जगह स्वयं लग जाते। आखिर इसी तरह तो भारत से समाजवादी कलंक दूर होगा। अपने जन्मदिन को राजसी अंदाज में मनाने वाली मायावती जी को कौन नहीं जानता ? उनके मार्गदर्शक काशीराम जी ने शून्य से राजनीति शुरू की थी, सो हाथी पर सवार मायावती जी भी पिछले लोकसभा चुनाव में शून्य पर पहुंच गयी हैं। अब इसके बाद ‘बैकवर्ड’ होने की गुंजाइश ही कहां है ? उ.प्र. से लगा हुआ बिहार है। कहते हैं किसी समय वहां लालू का जंगलराज हुआ करता था। फिर नीतीश कुमार जी ने सुशील मोदी के साथ मिलकर उसका सफाया किया; पर अब नीतीश जी फिर उस जंगल में घुसने को कमर कस रहे हैं। वे इस जंगल में घुसकर बाहर निकल पाएंगे या फिर स्थायी रूप से ‘वनवासी’ हो जाएंगे, यह भी अगले साल पता लग जाएगा। ममता बनर्जी की बात न करना उनके साथ अन्याय होगा। किसी समय उन्होंने देशद्रोही वामपंथियों को बंगाल की खाड़ी में फेंकने का संकल्प लिया था; पर अब वे उन्हें वहां से निकालकर फिर गले लगाने को तैयार हैं। सारदा चिटफंड घोटाले में उनके कई खास साथी जेल की हवा खा रहे हैं। हो सकता है कि कल उनका नंबर भी आ जाए। ऐसे में वाममार्गी ही उनका सहारा बन सकते हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे किधर जा रहे हैं, यह उन्हें खुद नहीं पता। चुनाव के एक महीने बाद भी उनके लोग भ्रम में हैं कि हम सरकार के साथ हैं या विरोध में ? यदि ऐसे ही चलता रहा, तो उनके लिए कोई ‘बीच की श्रेणी’ बनानी पड़ेगी। दिल्ली में रहकर केजरी ‘आपा’ को भूलने का पाप मैं नहीं कर सकता। मुझे उनसे पूरी सहानुभूति है। उनकी झाड़ू मोदी ने छीन ली और मफलर का मौसम अभी आया नहीं। अखबारों का कहना है कि शपथ लेते समय तो उनके अधिकांश विधायक मैट्रो से आये थे; पर विधानसभा समाप्ति के फोटो सत्र में सब महंगी गाड़ियों से उतरते दिखे। यदि सब आम आदमियों की उन्नति इसी गति से हो, तो भारत फिर से ‘सोने की चिड़िया’ हो जाएगा। कल शाम पार्क में जब इस विषय पर चर्चा हुई, तो शर्मा जी भड़क गये। बोले – जिन मुद्दों पर तुम्हारे ‘परिवार’ के लोग बहुत बोलते थे, उन पर भी तो मोदी चुप हैं। इस ‘बैकवर्डनैस’ पर भी तो कुछ कहो। मैंने कहा – शर्मा जी, थोड़ा धैर्य रखें। इस सरकार के छह महीने के काम पर दुनिया भर के लोग यह कह रहे हैं –  जिस तरफ उनके कदम हैं बढ़ रहे सब उसे ही रास्ता कहने लगे।।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here