व्यंग्य बाण : होली और तीसरा मोर्चा

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holiपुराने गिले-शिकवे भुलाने और नवीन मेल-मिलाप करने के लिए होली से अच्छा कोई पर्व नहीं है। इसलिए भा.ज.पा. को रोकने और कांग्रेस को ठोकने के लिए चुनावी माहौल में हर दिन रिश्ते बन और बिगड़ रहे हैं। ज्वार-भाटे की तरह इसकी लहरें भी बार-बार आती हैं और किनारे की गंदगी लेकर चली जाती हैं।

लेकिन शर्मा जी अपनी आशा को कभी मरने नहीं देते। वे मोदी को रोकना तो चाहते हैं; पर राहुल बाबा को ठोकना नहीं। उन्हें लगता है कि यदि किसी तरह तीसरा मोर्चा बन गया, तो चुनाव के बाद वह झक मारकर कांग्रेस के साथ ही आएगा। इसलिए उन्होंने होली पर इस दिशा में नये सिरे से प्रयास करने का निश्चय किया।

पिछले दिनों वे वे पार्क में मिले, तो कहने लगे – वर्मा, मेरे दिमाग में तीसरे मोर्चे के बारे में एक बड़ा धांसू आइडिया है।

– यदि सचमुच ये आपके दिमाग की उपज है, तो धांसू होगा ही।

– तुमने कभी सोचा है कि तीसरा मोर्चा बनाने के लिए कई बार नेता साथ आते हैं; पर वह बनते ही बिखरने लगता है ?

– जी नहीं, मैं इन बेकार बातों में समय खराब नहीं करता।

– कोई बात नहीं। दिमागी काम वही कर सकता है, जिसके पास दिमाग हो।

– तो डेढ़ दिमाग वाले शर्मा साहब, आप ही बताइये।

– जरा समझो। नाम तो है तीसरा मोर्चा; पर कभी इसमें दस लोग आते हैं तो कभी बारह। फिर उनमें ऐसी कोई समानता भी नहीं है, जिससे वे मिलकर साथ चल सकें।

– हां, ये तो है।

– इसलिए मैंने सोचा है कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर केवल तीन महिलाओं (जयललिता, ममता और मायावती) को बुलाया जाए। तीन महिलाओं के तीसरे मोर्चे का आइडिया हिट हो सकता है। फिर इनमें कई समानताएं भी हैं।

– जैसे.. ?

– पहली बात तीनों बुजुर्ग नारी हैं। इनका विवाह हुआ नहीं या इन्होंने किया नहीं, यह वही जानें; पर यह सत्य है कि तीनों घोषित कुमारी हैं। नारी होते हुए भी ये अपने क्षेत्र में मर्दों पर भारी हैं। यहां तक कि जयललिता जी तो डबल भारी हैं। फिर इन तीनों के मन में क्या चल रहा है, इसका पता भगवान भी नहीं लगा सकते।

– पर शर्मा जी, किसी कवि ने लिखा है, ‘‘बूढ़ी नारी, वो भी कुमारी, समझो है तलवार दुधारी।’’

– तुम चाहे जो कहो; पर तीन कुमारी मिलकर उस एक कुमार को तो रोक ही लेंगी, जिसकी आंधी देश भर में चल रही है; और हो सकता है कि इस झगड़े में हमारे वाले कुमार जी का दांव लग जाए।

मुझे होली के लिए सामान खरीदना था, इसलिए मैंने अधिक सिर मारना उचित नहीं समझा; पर शर्मा जी अपने प्रयास में लगे रहे और उन्होंने इन तीन महान नारियों की बैठक बुला ली। तीनों समय से आ भी गयीं; पर जयललिता ने आते ही अपनी कुर्सी की दिशा पलट दी। इससे शर्मा जी अचकचा गये – ये क्या मैडम.. ?

– मेरे ज्योतिषी ने कहा है कि अपना मुंह सदा तमिलनाडु की ओर रखना। ममता भी तो ऐसा ही करती है। इसलिए..।

– पर बाकी सब की तरफ पीठ करके बात कैसे होगी ?

काफी देर तक इस पर विवाद होता रहा। फिर वे ठीक से बैठने पर सहमत हो गयीं। शर्मा जी ने माहौल को हल्का रखने के लिए खानपान के साथ अबीर-गुलाल का प्रबन्ध भी किया था; पर गुलाल देखते ही ममता जी भड़क गयीं, ‘‘हमें लाल रंग बिल्कुल पसंद नहीं है। हमने इतने संघर्ष और बलिदान के बाद लाल को बंगाल की खाड़ी में फेंका है। हमारी बंगभूमि में गुलाल नहीं सिंदूर चलता है। आप चाहें तो हमें सिंदूर लगा सकते हैं।’’

शर्मा जी यह सुनकर शरमा गये। 40 साल पहले उन्होंने एक नारी को सिंदूर लगाया था। उसकी सजा अब तक भुगत रहे हैं; और अब ममता जी…। यह सोचकर उनकी आत्मा कांप उठी। न बाबा न। मायावती भी यह सुनकर हंसने लगीं। उन्होंने ममता जी के कान में बताया कि सिंदूर लगाने का अर्थ क्या होता है। इस पर ममता जी ने जीवन में पहली बार अपनी बात वापस ले ली।

शर्मा जी ने गुझिया और पापड़ खाने का आग्रह किया; पर गुझिया के लिए सबने मना कर दिया। उनका कहना था कि अब चुनाव तक तो कड़वा ही बोलना है। अतः मीठा खाना बेकार है। हां, पापड़ सबने खूब खाये, चूंकि राजनीति में पापड़ की तरह सख्ती, रूखापन और कड़कड़ाहट बहुत जरूरी है। ठंडाई की तरफ तो तीनों ने देखा तक नहीं। चुनाव की गरमी में ठंडाई पीना खतरे से खाली नहीं था।

अब शर्मा जी ने अपना एजेंडा बताया कि यदि वे तीनों मिल जाएं, तो बहुत बड़ी ताकत बन सकती हैं। जयललिता विंध्याचल से नीचे और ममता जी पूरे पूर्वाेत्तर भारत में लड़ें। शेष भारत में मायावती जी का हाथी घूमता रहे।

सुझाव तो ठीक था; लेकिन प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस पर तीनों लड़ने लगीं। कोई किसी से कम तो थी नहीं, इसलिए दबने या पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। कुछ ही देर में स्वर होली की लपटों की तरह आकाश छूने लगे। गनीमत यह हुई कि यहां महिलाओं वाले परम्परागत हथियार नहीं थे। वरना न जाने क्या हो जाता ? शर्मा जी ने संभालने का बहुत प्रयास किया; पर तीनों का एक ही सवाल था कि पहले प्रधानमंत्री तय होना चाहिए, तभी बात आगे बढ़ेगी।

शर्मा जी ने झिझकते हुए कहा कि यदि आप तीनों किसी नाम पर सहमत नहीं हैं, तो फिर राहुल बाबा हैं न..।

यह सुनते ही तीनों देवियां रणचंडी बन गयीं। आपस की तीन-तेरह छोड़कर उन्होंने एकमत से अपनी-अपनी कुर्सी शर्मा जी के सिर पर दे मारी। जयललिता तो गुस्से में धम्म से शर्मा जी के ऊपर ही बैठ गयी। बेचारे शर्मा जी का कचूमर निकल गया। उनके कपड़े गीले-पीले हो गये।

शर्मा जी काफी देर तक बेहोश पड़े रहे। जब उन्हें कुछ होश आया, तो वे बचा हुआ सामान समेटकर घर आ गये। वे समझ गये कि तीसरा मोर्चा हो या तीसरा खोमचा, इस चुनाव में तो उसके बनने की कोई संभावना नहीं है।

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