व्यंग्य कविता : मनहूस चेहरा

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netajiमिलन सिन्हा

पूरे  पांच वर्ष बाद चुनाव के समय

जब नेताजी

लौटकर अपने गाँव आए

तो देखकर उन्हें

गांववाले बहुत गुस्साए

कहा, उनलोगों ने उनसे

आप फ़ौरन यहाँ से चले जाइए

और फिर कभी अपना यह मनहूस चेहरा

हमें न दिखलाइए

सुनकर यह

नेताजी हो गए उदास

कहा, लोगों को

बुलाकर अपने पास

भाई, अगर ऐसा करोगे

तो बाद में

तुम्ही लोग पछताओगे

क्यों कि उस हालत में

मुझे  यहीं रहना पड़ेगा

और मेरा  यह मनहूस चेहरा

तुमलोगों को  देखना पड़ेगा

जिससे

तुमलोगों की परेशानी  और बढ़  जाएगी

और न ही

मेरी समस्या सुलझ पाएगी

इसीलिए तुमलोग फिर एकबार

मुझे जीता कर  दिल्ली भेज दो

और पूरे पांच साल के लिए

मेरा यहाँ आना ही बंद कर दो !

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