व्यंग्य बाण : चमत्कारी अंगूठी

0
215

rahul
दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद परसों मैं शर्मा जी के घर गया, तो एक बाल पत्रिका उनके हाथ में थी। वे एक कहानी पढ़ रहे थे, जिसका शीर्षक था ‘चमत्कारी अंगूठी’। मैंने प्रश्नाकुल आंखों से बुढ़ापे में बाल पत्रिका पढ़ने का कारण पूछा, तो उन्होंने चुपचाप पत्रिका मुझे थमा दी और खुद अंदर चाय लेने चले गये। आगे बढ़ने से पहले आप वह कहानी सुन लें।

एक गांव में राजुल नामक एक किसान रहता था। जमीन तो उसके पास पर्याप्त थी; पर परिश्रम करते उसे बुखार आता था। अतः फसल अच्छी नहीं होती थी। उसके बड़े भाई उतनी ही जमीन में कई गुना अधिक उगा रहे थे। इसकी झलक उनकी जीवन शैली पर भी नजर आती थी। इससे चिढ़कर राजुल सदा इस कोशिश में लगा रहता था कि कैसे भी उसके भाई का अधिकाधिक नुकसान हो।

गांव के लोगों ने उसे बहुत समझाया कि तुम्हारी गरीबी का कारण तुम्हारा आलस्य है। दूसरों के प्रति मन में जलन रखने से तुम्हारा भला नहीं होगा। इसके लिए तो तुम्हें बड़े भाई की तरह परिश्रम करना होगा; पर राजुल की समझ में यह सब नहीं आता था।

एक बार उस गांव में एक साधु बाबा आये। लोगों ने उनके रुकने का प्रबन्ध मंदिर में कर दिया। कई दिन रुक कर उन्होंने भगवत् कथा सुनायी। कथा में उन्होंने कई सिद्धियों और चमत्कारों की भी चर्चा की। क्रमशः गांव के एक-एक घर से उनके लिए भोजन जाने लगा। जिस दिन राजुल की बारी थी, वह भोजन के साथ दूध भी ले गया और किसी चमत्कार से अपनी गरीबी दूर करने को कहा। उसने यह भी पूछा कि क्या आपके पास कोई चमत्कारी चीज है ? यदि हां, तो वह किसी भी कीमत पर उसे प्राप्त करना चाहता है।

बाबा जी पहले तो टालते रहे; पर जब राजुल पीछे ही पड़ गया, तो उन्होंने अपने झोले से एक अंगूठी निकालकर उसे दे दी। उन्होंने बताया कि इसे दाहिने हाथ की छोटी उंगली में पहनकर अमावस्या की रात में काले कपड़े पहनकर अनुष्ठान करना होगा। उन्होंने कुछ मंत्र भी बताये, जिन्हें तालाब के पानी में खड़े होकर जपना था।

राजुल की खुशी का ठिकाना न था; पर बाबा जी ने एक बात और कही कि इस अंगूठी से तुम जो मांगोगे, वह तो तुम्हें मिलेगा ही; पर उससे दुगना तुम्हारे भाई को मिल जाएगा। यह सुनकर राजुल का चेहरा उतर गया। वह तो भाई को नीचा दिखाना चाहता था; पर यहां तो मामला ही उल्टा हो रहा था। उसने बाबा जी से यह कहना ठीक नहीं समझा और अंगूठी ले ली।

घर आकर भी हर समय वह अंगूठी के बारे में ही सोचता रहता था। बाबा जी जिस दिन गांव से गये, उससे अगले ही दिन अमावस्या थी। राजुल ने अंगूठी का परीक्षण करने के लिए निश्चित विधि से पूजा कर अपनी पत्नी के लिए एक सोने का हार मांगा। अगले दिन उसने देखा कि उसके पूजागृह में अंगूठी के पास ही सोने का हार रखा है। वह शाम को भाई से मिलने गया, तो पता लगा कि उसके पूजागृह में दो सोने के हार रखे मिले हैं।

राजुल ने माथा पीट लिया। वह तो अपना लाभ और भाई का नुकसान देखना चाहता था; पर यहां तो कहानी ही दूसरी हो रही थी। उसने दो बार और अंगूठी से वर मांगा, तब भी ऐसा ही हुआ। गांव वाले अचानक हो रहे इन चमत्कारों से चकित थे। वे इसे बाबा जी का प्रसाद मान रहे थे; पर उन्हें हैरानी यह थी कि ये तमाशे राजुल और उसके भाई के घर में ही क्यों हो रहे हैं ? इधर राजुल ईर्ष्या की आग में जल रहा था। अंततः उसने एक षड्यन्त्र रचा।

अगली अमावस्या पर वह फिर काले कपड़े पहन कर तालाब पर गया। पूजा के बाद उसने यह वर मांगा कि उसके घर के आगे एक गहरा गढ्डा हो जाए। रातोंरात उसके घर के आगे एक और भाई के घर के आगे दो गढ्डे खुद गये। इससे अगली अमावस्या पर उसने अपनी एक आंख फूटने का वर मांगा। अंगूठी के चमत्कार से उसकी एक, पर उसके भाई की दोनों आंखें फूट गयीं। स्वाभाविक रूप से उसके भाई का जीवन कष्टमय होने लगा; पर राजुल इससे बहुत खुश हुआ।

कहानी तो आगे और भी थी; पर तब तक शर्मा जी चाय ले आये।

– क्यों वर्मा, इस कहानी को पढ़कर कुछ समझे ?

– जी नहीं।

– तुम एक लेखक हो। दुनिया में अपने डेढ़ दिमाग का ढिंढोरा पीटते हो, पर इतनी सी बात पल्ले नहीं पड़ी ?

– शर्मा जी पहेलियां छोड़कर सीधे-सीधे बताइये कि आप कहना क्या चाहते हैं ?

– प्यारेलाल, इस कहानी में राजुल की जगह राहुल गांधी को रखकर दिल्ली चुनाव के परिणाम समझने की कोशिश करो।

– राहुल गांधी को.. ?

– जी हां। दिल्ली में कांग्रेस को जीरो बटे अंडा मिला है; पर हमारे राहुल बाबा इसी से खुश हैं कि केजरी ‘आपा’ ने मोदी और भा.ज.पा. का गरूर तोड़ दिया।

– वैसे उनका घमंड टूटा तो है।

– पर इससे हमें तो कुछ नहीं मिला। हमारी हालत तो ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ जैसी हो गयी है। भा.ज.पा. को सीट भले ही कम मिली; पर उनके वोट तो कम नहीं हुए। हमें तो न सीट मिली और न ही वोट। ‘‘न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।’’

– मैं आपके दिल की पीड़ा समझ रहा हूं शर्मा जी।

– आप तो समझ रहे हैं; पर न जाने राहुल बाबा ये कब समझेंगे कि उनका भला मोदी के हारने से नहीं, कांग्रेस के जीतने से होगा। इसके लिए उन्हें संसद से लेकर सड़क तक जनता के हित में संघर्ष करना होगा। उनकी जमीन कहीं ममता बनर्जी छीन रही हैं, तो कहीं नवीन पटनायक; कहीं चंद्रशेखर राव और कहीं केजरीवाल। यही हाल रहा, तो मां-बेटे को खड़े होकर रोने के लिए भी जमीन नहीं मिलेगी।

इतना कहते-कहते शर्मा जी हांफने लगे। उनका ऐसा रौद्र रूप मैंने पहली बार देखा था। घबराकर वह पत्रिका मैंने उन्हें वापस दे दी। वे फिर उसी कहानी को पढ़ने लगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here