व्यंग्य बाण : हम बने, तुम बने…

0
116

rahul-gandhi-sonia-gandhi-congress-manmohan-singhबात बहुत पुरानी है। एक राजा की अत्यधिक विद्वान बेटी का सही नाम तो न जाने क्या था; पर लोग उसे विद्योत्तमा कहकर बुलाते थे। अपनी विद्या के गर्व से दबी राजकुमारी अपने से अधिक विद्वान युवक से ही विवाह करना चाहती थी। उसने विवाह के इच्छुक कई विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। अतः वे सब जंगल से कालिदास नामक एक निपट मूर्ख युवक को पकड़ लाये। वह जिस डाल पर बैठा था, उसे ही काट रहा था। विद्वानों ने उसे अच्छे कपड़े पहनाये और शास्त्रार्थ के समय चुप रहने को कहकर राजसभा में ले आये। 

सभा में विद्योत्तमा जो प्रश्न करती, मौनव्रतधारी कालिदास अपनी मूढ़बुद्धि के अनुसार संकेतों में उसका उत्तर देता, जिनकी मनमानी व्याख्या वे विद्वान करते थे। इस प्रकार कालिदास ने विद्योत्तमा को पराजित कर दिया और दोनों का विवाह हो गया।

आगे चलकर पत्नी के व्यंग्य बाणों से आहत होकर कालिदास के विद्वान बनने की कहानी आपने पढ़ी ही होगी; पर हमारा संबंध कहानी के इस हिस्से तक ही है। क्योंकि कुछ ऐसा ही माहौल दिल्ली में भी है, जहां एक मौनी बाबा को प्रायः चुप रहने की शर्त पर गद्दी दी गयी है। वे अपनी शर्त के अनुसार आदेश होने पर ही मुंह खोलते हैं तथा यदाकदा मैडम के परम विश्वस्त लोगों द्वारा लिखा गया वक्तव्य पढ़कर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर लेते हैं।

ऐसा ही पिछले दिनों तब हुआ, जब जी 20 देशों के सम्मेलन से लौटते हुए मौनमोहन सिंह जी ने वायुयान में धरती से मीलों ऊपर उड़ते हुए पत्रकारों को बताया कि अगले चुनाव के बाद वे राहुल बाबा के नेतृत्व में काम करना चाहते हैं। उनका हवा में दिया गया यह बयान भले ही हवाई हो; पर धरती पर रहने वाले उनके भक्तों ने इसे ‘नोबाॅल’ की तरह लपक लिया। हमारे मित्र शर्मा जी भी उनमें से एक हैं। अब आगे की बात सुनिये।

परसों मैं अपनी अति प्राचीन आदत के अनुसार शाम को टहल कर घर लौटा ही था कि शर्मा जी आ टपके। धौंकनी की तरह तेज-तेज चलती हुई उनकी सांस देखकर यह तो समझ में आ गया कि वे दौड़ते हुए आये हैं; पर अब आने के बाद जो स्थिति थी, उससे स्पष्ट नहीं हो रहा था कि वे हांफ रहे हैं या कांप रहे हैं।

खैर, मैंने उन्हें सहारा देकर बैठाया। उनकी जेब में से हड़प्पाकालीन रूमाल निकालकर उनका पसीना पोंछा और फिर उसे लपेटकर वहीं सुरक्षित रख दिया। घड़े में से निकाल कर एक गिलास शीतल जल पिलाया और अंदर चाय बनाने की सूचना भेज दी। कुछ देर बाद उनकी सांसें सामान्य हुईं, तो उन्होंने थैले में से मिठाई का डिब्बा निकालकर मेज पर रख दिया।

– यह क्या शर्मा जी, आज कोई खास बात.. ?

– हां, बिल्कुल। खास नहीं बहुत खास बात है। पूरे मोहल्ले में मिठाई बांट कर आ रहा हूं।

– पर मिठाई का कारण तो बताइये। आप दादा बने हैं या नाना; या फिर गांव में गाय ने बछिया को जन्म दिया है।

– तुम बेकार की बात मत करो वर्मा। तुम्हारी क्षुद्र दृष्टि घर और गांव से आगे नहीं जाती। यहां पूरे देश के लिए खुशी की बात है। बाहर निकलकर देखो, सब तरफ दीवाली जैसा माहौल है।

– तो फिर इस रहस्य से परदा हटाइये, जिससे मैं भी खुश होकर दस-बीस ग्राम खून बढ़ा सकूं।

– तुमने सुना नहीं कि मनमोहन सिंह जी ने बिल्कुल साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल बाबा उनकी पहली पसंद हैं और उन्हें भी राहुल बाबा के साथ काम करने में प्रसन्नता होगी।

– शर्मा जी, रुपये का मूल्य भले ही रसातल में चला गया हो; पर सपने आज भी निःशुल्क देखे जा सकते हैं। बेचारे मनमोहन सिंह जी अभी तक इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि अगली बार फिर उनकी सरकार बन रही है।

– क्यों इसमें कुछ शक है क्या ?

– शक करने वाला मैं कौन होता हूं; पर शर्मा जी, यह तो बताइये कि मनमोहन सिंह जी ने राहुल बाबा में ऐसी क्या विशेषता देखी, जो उन्हें अपनी पहली पसंद बता दिया ?

– उनकी विशेषताओं को तो गिनना ही कठिन है।

– अच्छा, तो कुछ विशेषताएं मैं गिनाता हूं, बाकी आप बता देना। सबसे पहली तो यह कि वे उस परिवार के गुल चिराग माने जाते हैं, जो इस देश को अपने बाप-दादों की पुश्तैनी जागीर समझता है। तोप से लेकर हवाई जहाज तक और टेलिफोन से लेकर कोयले तक; चाहे लूटें या लुटाएं, चाहे खुद खाएं या साले और जीजा को खिलाएं; इनकी मरजी।

– ये सब विरोधियों का झूठा प्रचार है।

– और शर्मा जी, जैसे इनकी माताश्री भारतवासियों का स्तर ऐसा नहीं समझतीं कि उन्हें अपने अतीत और वर्तमान के बारे में कुछ बताया जा सके, कुछ-कुछ वैसा ही राहुल बाबा के बारे में भी है।

– क्यों, उनका जीवन तो खुली किताब है ?

– आप ठीक कह रहे हैं शर्मा जी; पर उस किताब को पढ़ सकने वाले या वाली कौन है। वह किस देश में रहता या रहती है, ये जानने का हक मुझे या आपको नहीं है।

– लेकिन राहुल बाबा की विद्वत्ता से तो सब प्रभावित हैं।

– उनके अंधभक्त होने के नाते यह कहना आपका हक बनता है; लेकिन शर्मा जी, क्या आपने कालिदास की कहानी सुनी है ?

– हां, सुनी तो है।

– बस, राहुल बाबा की चुप्पी ही उनकी विद्वत्ता की पहचान है, और चूंकि मौनमोहन सिंह जी भी इस ‘चुपमार्ग’ के अनुयायी हैं, इसलिए उन्होंने राहुल बाबा को अपनी पहली पसंद बताया है। कुछ समझे ?

शर्मा जी नाराज हो गये और अपनी आदत के विपरीत चाय-नाश्ता अधूरा छोड़कर उठ खड़े हुए। मैं उन्हें छोड़ने बाहर तक आया, तो सामने से चुनाव प्रचार करती हुई एक जीप निकली, जिसमें पीछे की ओर मनमोहन सिंह तथा राहुल बाबा के पोस्टर लगे थे। उस पर गाना बज रहा था- हम बने, तुम बने, इक दूजे के लिए..।

अब शर्मा जी का चेहरा देखने लायक था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here