रिंग के सरताज को अलविदा

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मार्टिन लूथर किंग के 1960 के दशक में देखे गए सपने को साकार करने वाले मोहम्मद अली मौत इस दुनिया से रुखसत हो गए। रिंग में एक से बढ़कर एक मुक्केबाजों को जमीन सूंघा देने वाले अली पार्किसंन नामक बीमारी के सामने चित्त हो गए। पेशाब की नली में संक्रमण की वजह से जनवरी 2015 में अस्पताल में भर्ती हुए थे फिर भी उम्र के इस पड़ाव पर भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं थी।

अली का सफर 5 सितंबर 1960 से शुरू होता है जब उन्होंने रोम ओलंपिक में लाइटवेट के फ़ाइनल मुक़ाबले में पोलैंड के बीगन्यू ज़ीग्गी पैत्रिज्वोस्की को मात दी थी। यहीं से उन्होंने बॉक्सिंग को अपनी दुनिया मान लिया।

उसके बाद उनकी कामयाबी का सिलसिला आने वाले अगले 20 साल तक रहा। दुनिया ने उनके मुक्कों की गर्जना सुनी। इस दौरान उनका रिंग पर एकक्षत्र राज रहा। मोहम्मद अली का मुक्का जब भी उठा हमेशा विरोधियों को पस्त कर दिया। अगर कहा जाए आने वाले साल अली के थे तो गलत नहीं होगा.

कैसियस मार्केल्स क्ले जूनियर दुनिया जिसे मोहम्मद अली के नाम से जानती थी, का जन्म 17 जनवरी 1942 को केंटुकी में हुआ था.उनके पिता बैनर पोस्टर रंगाने काम का काम करते थे। 12 साल की उम्र में अली की साइकिल चोरी हो गई थी। तब उन्होंने पुलिसवाले के सामने कमस खाई कि वह चोरी करने वाले का सिर फोड़ देंगे। इसपर पुलिसवाले (जो की बॉक्सिंग कोच भी था) ने सलाह दी कि वह जाकर पहले बॉक्सिंग सीखें फिर ऐसा सोचे। उस दिन से ही अली ने बॉक्सिंग सीखनी शुरू कर दी थी।

22 साल की उम्र में 1964 में सोनी लिस्टन को हराकर उलटफेर करते हुए वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियनशिप जीत ली थी. इस जीत के कुछ ही वक्त बाद उन्होंने डेट्रॉएट में वालेस डी फ्रैड मुहम्मद द्वारा शुरू किया गया ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ ज्वाइन कर अपना नाम बदल लिया.

मोहम्मद अली ने तीन बार विश्व हेवीवेट चैंपियनशिप का ख़िताब जीता और दुनिया भर में अपना नाम कमाया. पहली बार उन्होंने 1964 में फिर 1974 में और फिर 1978 में विश्व चैंपियनशिप का ख़िताब जीता था. अब वे खेल की एक लोकप्रिय हस्ती बन चुके थे जिनका डंका दुनियाभर में बज रहा था अली के मुक्कों में एक जादू सा था तभी तो कोई भी विरोधी उनके सामने नहीं टिक पाता था। रिंग में उनकी हूकूमत थी। शायद इसलिए वह कहा करते थे कि वह मुकाबला जीतेंगे और जीत भी जाते. वह यहां तक कह देते कि किस राउंड में जीतेंगे और उस राउंड तक उनकी जीत भी हो जाती. लेकिन दुनिया उन्हें समझ चुकी थी. वह जान चुकी थी कि छह फीट तीन इंच का यह नौजवान यूं ही दावे नहीं करता.

न्यूयार्क में आठ मार्च 1971 “शताब्दी के मुक़ाबले” में जो फ्रेज़र से उन्हें पहली बार पेशेगत हार का सामना करना पड़ा. अपने ख़िताब को वापस प्राप्त करने के लिए 30 अक्टूबर 1974 को उन्होंने रंबल इन दि जंगल में जार्ड फोरमैन को आठवें राउंड में हराया.वो कुल 61 मुकाबलों में से शामिल हुए और उनमें से 56 में जीत हासिल की थी. 1981 में अपने दस्ताने टांग दिए थे।

मोहम्मद अली के बारे में कहा जाता है कि ओलंपिक से कुछ हफ़्ते पहले वे अपनी दावेदारी से पीछे हटना चाहते थे क्योंकि उन्हें हवाई जहाज़ से जाने में डर लगता था. उन्होंने यह भी पूछा था कि ऐसा नहीं हो सकता है कि वे पानी के जहाज़ या ट्रेन से रोम जा सकें. जब उनसे कहा गया कि यह संभव नहीं है तो उन्होंने आर्मी के स्टोर से जाकर एक पैराशूट ख़रीदा था जो उन्होंने सफ़र भर अपने साथ रखा. ये सोच कर कि अगर विमान हादसे का शिकार हो गया तो वो कम से कम पैराशूट से नीचे कूद जाएंगे. लेकिन शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ और दुनिया को एक नायाब बॉक्सर देखने को मिला. फिर वही मोहम्मद अली हवाई जहाज़ में बैठकर दुनिया भर में घूमे. अली जब अपने चरम पर थे तब वे भारत आए थे.

खेल के बाद भी उन्होंने कई संस्थाओं ने 1999 में मोहम्मद अली को पिछली सदी का महानतम खिलाड़ी घोषित किया. अमेरिका ने झुक कर उन्हें सलाम किया. वह अगली पीढ़ी के मैजिक जॉनसन, कार्ल लुइस और टाइगर वुड्स के लिए मसीहा साबित हुए. 1998 में संयुक्त राष्ट्र का शांति दूत बनाया गया था और उन्होंने पूरी दुनिया में ग़रीब समुदायों के बीच शांति क़ायम करने और ग़रीबी को दूर करने के लिए काम किया? रिंग के अलावा बाहर भी अपनी मौजूदगी से लोगों के दिलों में जगह बनाई

वह नागरिक अधिकारों की वकालत करने वाले और खेल, जाति और राष्ट्रयीता के सीमाओं से परे एक श्रेष्ठ कवि थे. जब पूछा गया कि वह ख़ुद को कैसे याद किया जाना पसंद करेंगे. उन्होंने एक बार कहा था: एक ऐसे इंसान की तरह जिसने कभी अपने लोगों का सौदा नहीं किया. लेकिन अगर वो बहुत ज़्यादा है तो आप कह सकते हैं कि मैं महज़ एक अच्छा बॉक्सर था. और तब मैं इस बात का भी बुरा नहीं मानूंगा कि आपने मुझे सुंदर नहीं कहा.

सही मायनों में मोहम्मद अली सदी के सबसे बड़े खिलाड़ी थे. यही कारण था कि 1999 में कई संस्थाओं ने अली को सदी का महानतम खिलाड़ी बताया था। गरीब देशों की बात हो या उनके अपने लूजियाना प्रांत की, गरीबों की मदद करने से वह जरा भी नहीं हिचकिचाए नहीं। ऐसे बहुत कम खिलाड़ी होते है जो अपने खेल के अलावा अपने व्यवहार से महानतम बनते है अली उनमे से एक थे. रिगं में जब भी शोरगुल होगा तो अली की कमी बेहद खलेगी।

रवि कुमार छवि

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