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कहो कौन्तेय-५०
विपिन किशोर सिन्हा (अर्जुन द्वारा दुर्योधन को प्राणदान) मेरी आंखें अब भी दुर्योधन को ढ़ूंढ़ रही थीं। वह पितामह के रथ के पीछे छिपा हुआ था। मैं तेजी से उसकी ओर बढ़ा लेकिन पितामह भीष्म ने मेरा मार्ग रोक लिया। मेरी गति अवरुद्ध हो गई। मैंने विनम्रतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया…