किसान आंदोलन को कुचलने की अदानी पेंच पावर लिमि0 की खूनी साजिश

डॉ0 सुनीलम्, पूर्व विधायक

म0प्र0 के छिन्दवाडा जिले में जिला मुख्यालय से 14 कि0मी0 दूर 22 मई शाम 5.30 बजे दो बार प्रयास के बाद मुझे तीन बुलेरो गाडि़यो में सवार 15 अदानी पेंच पावर लिमि0 के कमलनाथ से जुडे कांग्रेसी ठेकेदार गुण्डो ने मेरी जीप के कॉच तोड़कर लाठियों से हमलाकर दोनों हाथ तोड दिए, सिर में चोट आई। अदानी प्रोजेक्ट तथा पेंच व्यपवर्धन परियोजना के प्रभावित किसानों का आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे एड0 आराधना भार्गव को लाठियों से पीटे जाने के चलते सिर में 10 टांके लगे तथा एक हाथ फैक्चर हो गया। हम छिन्दवाड़ा जिले के भूलामोहगांव से 28 से 31 मई के बीच दोनो प्रोजेक्ट के विरोध में पदयात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर लौट रहे थे।

जब हमला हुआ तभी एड0 आराधना भार्गव ने पुलिस अधीक्षक छिन्दवाडा को फोन कर हमला करने वालो तथा गाडि़यों के नम्बर की जानकारी दी, मेरी बात भी कराई। लेकिन म0प्र0 पुलिस को 14 कि0मी0 की दूरी तय करने में ढ़ाई घंटा लगा। पुलिस द्वारा हत्या का प्रयास का मुकदमा दर्ज कराने के बजाय धारा 323 साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज किया।

घटना की जानकारी होते ही जन संसद की कोर कमेटी के नेता छिन्दवाड़ा पहुंचे, विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। गांव का दौरा किया और मुख्यमंत्री तथा पर्यावरण मंत्री को ज्ञापन सौंपा। डॉ0 बनवारीलाल शर्मा, मनोज त्यागी, विवेकानन्द माथने, अमरनाथ भाई तथा जयंत वर्मा ने मुख्यमंत्री से हमलावरो को गिरफ्तार कराने तथा किसानो की जमीने वापस करने की मांग की।

दो दिनों तक छिन्दवाड़ा जिला चिकित्सालय में मैंने अनशन किया, जिलाधीश द्वारा अदानी का काम रोके जाने तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा द्वारा हमलावरों को गिरफ्तार किए जाने के आश्‍वासन के बाद मैंने ग्रामवासियों के हाथो अनशन तोडा तथा हाथ के ईलाज के लिए 2 दिन हमीदिया अस्पताल में ईलाज कराकर पदयात्रा के लिए वापस छिन्दवाडा पहुंच गया।

28 से 31 मई चिलचिलाती धूप में पदयात्रा की, गांव में सभाऐ लेकर आंदोलन के मद्दो के बारे में ग्रामीणो को समझाया। यात्रा के छिन्दवाडा पहुंचने पर 5 हजार से अधिक किसान, जमीन बचाओ खेती बचाओ, रैली में शामिल हुए। डॉ0 बी0डी0 शर्मा, किशोर तिवारी तथा अन्य संगठनों के नेताओं ने रैली को सम्बोधित किया तथा मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जी को जिलाधीश के माध्यम से ज्ञापन सौंपा।

इस बीच देशभर में जनसंगठनो तथा समाजवादी संगठन द्वारा विरोध प्रदर्शन किये गये। आश्‍चर्यजनक तौर पर म0प्र0 के मुख्य दोनों दलों द्वारा हमले की घटना की न तो निन्दा की गई न ही अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमि0 तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई।

1986-87 में म0प्र0 बिजली बोर्ड (एमपीईबी) द्वारा 5 गांव के किसानो की जमीने ढेड हजार रूपए से 10 हजार प्रति एकड़ की दर पर जनहित की आड में अधिग्रहित की गई। किसानों के हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, निशुल्क बिजली देने तथा पूरे म0प्र0 के किसानों को लागत मुल्य पर बिजली उपलब्ध कराने के लिए 3 वर्ष में ताप विद्युत गृह निर्माण करने का वायदा तत्कालिन कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजसिंह द्वारा किया गया था। लेकिन न तो थर्मल पावर बना न ही किसान परिवार को रोजगार मिला। जमीने किसानो के पास ही रहीं। वे पूर्वत: खेती करते रहे। हाल ही में म0प्र0 सरकार द्वारा 13.50 लाख रूपए प्रति एकड़ की दर से जमीने अदानी पेंच पावर लिमि0 कम्पनी को बेच दी गई लेकिन किसानो ने कब्जा नही छोड़ा।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 6 नवम्बर 2010 को चौसरा में जनसुनवाई की गई। बड़ी संख्या में किसानो ने जनसुनवाई में पहुंचकर जमीन किसी कीमत पर न देने तथा कब्जा नही छोड़ने का ऐलान किया। कांग्रेस ने प्रभावित क्षेत्र से बाहर के किसानो को लाकर जनसुनवाई की खानापूर्ति करना चाही। लेकिन क्षेत्र के किसानों ने उन्हें खदेड़ दिया। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियो द्वारा जनसुनवाई अदानी कार्यालय में आयोजित किया जाना बतलता है कि जनसुनवाई महज नाटक थी। वैकल्पिक जनसुनवाई किसान संघर्ष समिति की पहल पर हयूमन राईटस लॉ नेटवर्क द्वारा आयोजित की गई। जिसमें अदानी के गुण्डो द्वारा शराब पीकर गडबडी फैलाने का प्रयास किया गया। अदानी कम्पनी के कार्यालय में शराब पिलाकर एसडीएम और एसडीओपी के उपस्थिति में गुण्डागर्दी कराई गई। महिलाओं और बच्चो ने कार्यालय में घुसकर शराब की बोतले फोड़ीं।

किसानो का आन्दोलन चलता रहा लेकिन प्रशासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नहीं की गई। जितने भी ज्ञापन सौंपे गए किसी भी स्तर पर कोई जवाब नहीं दिया गया। केवल अदानी कम्पनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोशिश की गई। मुझसे भी अदानी के एक उच्च अधिकारी ने अलग अलग तरीके से बिना समय लिए या जानकारी दिए मुलाकात की। एक बार मेरे भोपाल निवास पर अचानक अदानी कम्पनी का पीआरओ पहुंचा दूसरी बार जब मैं अपने मित्र के साथ एक होटल में खाना खा रहा था तब वही व्यक्ति फिर मिला। किसानों के साथ समझौता कराने के लिए 10 करोड़ रूपए देने की पेशकश की, मैंने उसे धमकाकर भगा दिया। शायद उसी दिन से अदानी ग्रूप ने हमला कराने की योजना बनानी शुरू कर दी होगी जिसका क्रियान्वयन 22 मई को हुआ।

अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट के लिए पानी पेंच व्यपवर्धन परियोजना के अन्तर्गत बन रहे दो बांधों से दिया जाने वाला है जबकि 31 गांवो की जमीनो का भूअर्जन जनहित में किसानों को सिंचाई का पानी देने के उद्देष्य से किया जा रहा है। क्षेत्र के किसानो को यह तथ्य हाल ही में तब पता चला जब भूअर्जन का विरोध कर रहे किसानों ने फर्जी एफडीआर पर माचागोरा बांध निर्माण का ठेका लेने वाले एस0के0 जैन का ठेका निरस्त कराया और वह ठेका अदानी ने अपनी हैदराबाद स्थित कम्पनी को दिलवा दिया। नई परिस्थिति में पेंच परियोजना में भूअर्जन का विरोध कर रहे किसानो तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट से अपनी जमीन वापस लेने की लडाई लड रहे किसानो ने एका बना लिया।

किसान आंदोलन के दौरान विभिन्न विशेषज्ञों ने आकर किसानों को जानकारी दी कि आसपास के लगभग डेढ सौ गांव ताप विद्युत गृह से निकलने वाली राखड, राखड बहाने वाले पानी तथा ऐसडेम से प्रभावित होंगे। इस जानकारी से आस पास के गांव में किसानो के बीच असंतोष फैलना शुरू हो गया।

इस बीच अदानी कम्पनी द्वारा बिना पर्यावरण मंजूरी के बाऊण्ड्रीवाल बना ली गई, बिना जमीनो पर कब्जा प्राप्त हुए जगह जगह पर गढ्ढे करा लिए गए। जिलाधीश द्वारा किसान नेताओ को काम बंद कराने का आष्वासन देने के बावजूद निर्माण कार्य जारी रखा गया। प्रशासन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पर्यावरण मंत्रालय चुप रहा। जबकि किसानों द्वारा पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को उनके कार्यालय में मेधा पाटकर एवं एनएपीएम के नेताओं द्वारा मेरी उपस्थिति में ज्ञापन देने के बाद कहा गया था कि अदानी प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मंजूरी नही दी गई है।

कांग्रेस और भाजपा मदद के लिए कम्पनी के साथ खडी हुई है। प्रभावित किसान लड़ रहे है।

किसानों के सामने तीन विकल्प हैं? किसानों की जमीने तीन वर्ष में थर्मल पावर स्टेशन बनाने के लिए जनहित में अधिग्रहित की गई थीं। अब जमीनें राज्य सरकार ने मुनाफा कमाने के लिए बेच दी है। जनहित में जमीने अधिग्रहित किया जाना तथा मुनाफे के लिए बेचे जाना अवैधानिक है। किसानों का कब्जा जमीनो पर कायम है। कानून के नजर में 1986 से पहले और बाद में आज तक जिसका कब्जा है वही जमीन का मालिक है। किसान न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते है? इस उम्मीद के साथ की जिस तरह दादरी में उच्च न्यायालय ने किसानो की जमीने वापस करने के निर्देश दिए वैसे ही निर्देश किसान न्यायालय के माध्यम से हासिल कर सकेंगे।

बिना पर्यावरण अनुमति के निर्माण कार्य शुरू हो गया और चल रहा है। दूसरे विकल्प के तौर पर किसान पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर किसी भी परिस्थिति में पावर प्लांट बनाने की अनुमति न देने तथा अब तक किए गए निर्माण कार्य को ध्वस्त करने का निर्देश मंत्री जयराम रमेश से कराने की कोषिश कर सकते है ? इस उम्मीद के साथ कि मंत्रालय में लेनदेन के बाद अनुमति प्रदान नही की जायेगी। किसानों के सामने तीसरा विकल्प है कि वे स्वंय आगे बढ़कर अब तक किए गए निर्माण कार्यों को खुद ध्वस्त कर दें तथा कुछ दिनो बाद बोनी के समय अपने खेत पर जाकर बोनी करने की कोषिश करे ऐसी स्थिति में भीषण टकराव हो सकता है। अदानी के गुण्डो द्वारा या पुलिस द्वारा किसानो को लाठी या गोली की दम पर रोकने की कोषिश की जा सकती है। बड़े पैमाने पर किसानो पर फर्जी मुकदमे लगाये जा सकते है तथा अदानी का मददगार पुलिस प्रशासन किसान नेताओ की गिरफ्तारी भी कर सकता है।

किसान यह देखकर अत्यंत दुखी है कि उन्होंने जिन्हें सरपंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, विधायक अथवा सांसद बनाया उनमें से कोई भी जनप्रतिनिधि उन्हें साथ देने को तैयार नहीं है। वे यह समझने को तैयार नही कि जनप्रतिनिधियो का अपना कोई विचार नही होता वे पार्टी के विचार से गुलाम की तरह बंधे रहते है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तथा उनकी केन्द्र और राज्य सरकारे प्रोजेक्ट बनाने के पक्ष में है। इस कारण जनप्रतिनिधि भी अदानी के साथ खुलकर खडे हुए है।

अदानी ने क्षेत्र के सभी दबंग परिवारों और नेताओं को प्रोजेक्ट के ठेकों से जोडकर उनके आर्थिक स्वार्थ पैदा कर दिए है। यही कारण है कि गांव के अधिकतर किसानों तथा मजदूरों के पावर के प्रोजेक्ट के विरोध में होने के बावजूद दबंगाई के आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं पड़ रही है। लेकिन 31 मई की छिन्दवाडा खेती बचाओ जमीन बचाओ पदयात्रा में किसानों ने बडी संख्या में शामिल होकर यह तो साफ कर दिया है कि वे दबंगाई से डरकर घर बैठने वाले नहीं है। 31 मई की सभा के दौरान किसानो ने हाथ खडा कर अपनी जमीनों पर खेती करने तथा अदानी पावर प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग को लेकर हजारो की संख्या में जेल भरो चलाने का ऐलान किया है।

अब तक सरकार द्वारा किसानो के नेतृत्व से बातचीत का कोई सिलसिला शुरू नहीं किया गया है। जबकि छिन्दवाड़ा के पडौस में मुलताई किसान आंदोलन में 24 किसानों के शहीद हो जाने तथा 250 किसानो को गोली लगने के बाद जब न्यायिक जॉच आयोग ने रिपोर्ट सौपी थी तब स्पष्ट तौर पर कहा था कि संवादहीनता के कारण ही गोली चालन की परिस्थिति बनी। लेकिन लगता है म0प्र0 सरकार मुलताई से सबक सीखने को तैयार नही है तथा सरकार की मंशा दमन करने की है।

उ0प्र0 के किसान आंदोलन की स्थिति से अलग छिन्दवाडा के चौसरा क्षेत्र में चल रहे किसान आन्दोलन को कांग्रेस विपक्ष के तौर पर साथ देने की बजाय कुचलने के लिए नेताओं पर हमला तक करा रहा है। उ0प्र0 में कांग्रेस और भाजपा दोनों किसानों के सवालों को उठा रहे है। कांग्रेस की ओर से राहुल बाबा तथा दिग्विजयसिंह मैदान में डटे हुए है। भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह जगह-जगह आंदोलनों को समर्थन देने पहुंच रहे है। तथा कलराज मिश्र किसान यात्रा निकाल रहे है। छिन्दवाडा में दोनों पार्टियों द्वारा अदानी का साथ देने से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि दोनों पार्टियों की भूअधिग्रहण तथा औद्योगिकरण के सम्बन्ध में कोई एक राष्ट्रीय नीति नहीं है। दोनों पार्टियां राजनीतिक लाभ लेने के लिए उ0प्र0 में किसान आंदोलन का समर्थन कर रही हैं। समाजवादी पार्टी जरूर उ0प्र0 से लेकर म0प्र0 तक किसानो के साथ खडी दिखलाई पडती है।

अदानी कम्पनी के साथ किसानों का भीषण टकराव मुझे सामने दिखलाई पड रहा है जिन लोगो ने मुझ पर हमला किया उनका मनोबल राजनैतिक, प्रशासनिक एवं पुलिसिया संरक्षण के चलते बढ़ा हुआ है वे फिर से कभी भी हमला कर मेरी जान ले सकते है। पूर्व में मुझ पर हुए जानलेवा हमले के बाद राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा मुहैया कराई गई थी जो ढाई वर्ष पहले हटा ली गई।

 

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