डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बने, यह मुद्दा आजकल हमारी विदेश नीति की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गया है। किसी भी देश का नेता भारत आए और भारत का कोई भी नेता विदेश जाए तो हमारी कोशिश यही होती है कि संयुक्त वक्तव्य या संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में वह देश हमें आश्वस्त करे कि वह भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करेगा। फिलहाल चीन के अलावा दुनिया के सभी महत्वपूर्ण राष्ट्रों ने भारत का कमोबेश समर्थन कर दिया है। अमेरिका ने यह कहते हुए जरा तरकीब से काम लिया है। ओबामा ने भारतीय संसद में तालियां जरूर पिटवाईं लेकिन ‘नरो वा कुंजरो वा’ शैली में यह भी कह दिया है कि जब संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र की पुनर्रचना होगी तब भारत के मुद्दे को भी देख लिया जाएगा। अमेरिका इसे अपनी चतुराई समझता है लेकिन यह है, उसकी मोटी बुद्धि का ठोस प्रमाण!
अकेले नहीं
यह किस राष्ट्र को पता नहीं है कि अकेले भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाना असंभव है। क्या संयुक्त राष्ट्र के समस्त सदस्य राष्ट्रों के दो-तिहाई यानी लगभग सवा सौ राष्ट्र अकेले भारत के लिए कोई ऐसा प्रस्ताव पारित करने के लिए तैयार हो जाएंगे और क्या सुरक्षा परिषद का बहुमत और समस्त वीटोधारी राष्ट्र उसे मान लेंगे? भारत ने ऐसा कौन सा चमत्कारी काम कर दिया है कि सारी दुनिया उसके चरणों में लोटने लगे और उससे कहे कि हे देवता ! आप सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट तुरंत ग्रहण कीजिए, वरना संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व ही निरर्थक हो जाएगा।
लॉलीपॉप क्यों
इस तरह का कोई चमत्कारी काम भारत ने न तो अब तक किया है और न ही उसके करने की संभावना है। यह बात सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिए कमर कसे अन्य देशों पर भी लागू होती है। सबको पता है कि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के विस्तार की प्रक्त्रिया काफी जटिल और लंबी है। कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्र यदि कमर कसे हुए राष्ट्रों को समर्थन का लॉलीपॉप पकड़ा भी दें तो वे उसका क्या करेंगे? संयुक्त राष्ट्र की पुनर्रचना जब होगी, तब होगी और उस समय उसके अन्य अंगों की तरह सुरक्षा परिषद का भी विस्तार होगा। उस समय भारत-जैसै राष्ट्र के पथ की बाधा कौन बन सकता है?
ऐसे में इस समय भारत के समर्थन में कोताही वही कर रहे हैं, जिनकी बौद्धिक कतरनी बारीक कतरना नहीं जानती या जो भारत के विरुद्ध अपने दिल में कोई गांठ बांधे हुए हैं। अमेरिका और चीन इसी श्रेणी में आते हैं। चीन के प्रधानमंत्री वन च्यापाओ ने भारत को विकासमान राष्ट्रों में अग्रणी बताया और कहा कि विश्व राजनीति में सक्त्रिय भूमिका निभाने की उसकी प्रबल इच्छा को चीन समझता है। आखिर चीन कहना क्या चाहता है? यह उसकी फूहड़ अहमन्यता है। चीन भूल गया कि जब सारी दुनिया उसे अछूत समझती थी, तब भारत ने उसे राजनयिक मान्यता दी थी और उसे संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनवाने के लिए सारी दुनिया में अभियान चलाया था। चीन के मुकाबले ब्रिटेन और फ्रांस की प्रतिक्त्रिया कहीं अधिक स्पष्ट और दोटूक थी। अमेरिका के मुकाबले भी ये दोनों पश्चिमी देश बाजी मार ले गए। उन्होंने अमेरिका की तरह जरूरत से ज्यादा चतुराई नहीं दिखाई। उन्हें पता है कि उनके कहने से भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट नहीं मिल जाएगी, लेकिन ‘वचने का दरिद्रता’?
वचन की संपन्नता तो रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने प्रदर्शित की। उन्होंने दिल्ली में कहा कि सुरक्षा परिषद कीस्थायी सदस्यता का भारत पूरा हकदार है और उसके लिए सुयोग्य है। उन्होंने भी संयुक्त राष्ट्र की पुनर्रचना की बात कहीलेकिन दबी जुबान से। अपने महाघोष से उन्होंने भारत का दिल जीत लिया।
जब सुरक्षा परिषद के विस्तार का प्रश्न उठेगा तो एशिया से भारत , यूरोप से जर्मनी , अफ्रीका से दक्षिण अफ्रीका , लातीनीअमेरिका से ब्राजील और संपन्न राष्ट्रों में से जापान का नाम अग्रगण्य होगा। कुछ अरब राष्ट्र और कुछ अन्य लातीनी राष्ट्र भीअपना प्रतिनिधित्व चाहेंगे। जाहिर है कि इन सबमें भारत का दावा सबसे अधिक मजबूत होगा। इसका प्रमाण सिर्फ यहीनहीं है कि लगभग सभी वीटोधारी राष्ट्रों ने भारत का समर्थन किया है , बल्कि यह नया तथ्य भी है कि अभी सुरक्षापरिषद में दो – वर्षीय अस्थायी सीट के लिए भारत को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र के साधारण सदस्योंमें इतना अधिक लोकप्रिय है कि उससे स्थायी वीटोधारी सदस्यों को भी ईर्ष्या होने लगे। ताजा चुनाव में मिला प्रचंडबहुमत क्या इसका स्पष्ट संकेत नहीं है कि यदि सुरक्षा परिषद का विस्तार हुआ तो उसमें भारत का स्थान सर्वप्रथम होगा।
भारत के इस दावे को मजबूत करनेवाले कई तर्क हैं। पहला , भारत दुनिया की छठी विधिसम्मत परमाणु शक्ति है।पाकिस्तान की तरह उसने चोरी – चकारी से बम नहीं बनाया। दूसरा , यदि भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्यबना दिया गया तो उसे परमाणु अप्रसार संधि ( एनपीटी ) पर दस्तखत करने में प्रसन्नता होगी। तीसरा , दुनिया का सबसेबड़ा लोकतंत्र सुरक्षा परिषद की गरिमा में चार चांद लगाएगा। चौथा , दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश काप्रतिनिधित्व होगा। पांचवां , भारत कुछ ही वर्षों में दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनेगा। ऐसे राष्ट्र को स्थायी छठास्थान देने में संयुक्त राष्ट्र का भला ही है।
छठा , भारत दुनिया के लगभग 150 गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का नेता रहा है। उसकी स्थायी सदस्यता तीसरी दुनिया कोआनंदित करेगी। सातवां , दक्षिण एशिया के दर्जन भर राष्ट्र दुनिया के सबसे समृद्ध क्षेत्र के तौर पर उभर रहे हैं। उनका नेताभारत यदि सुरक्षा परिषद में नहीं होगा तो कौन होगा ? आठवां , भारत सैन्य दृष्टि से काफी सबल होता जा रहा है। सुरक्षापरिषद को ऐसा एक स्तंभ राष्ट्र चाहिए , जो दक्षिण एशिया , मध्य एशिया और हिंद महासागर में सुरक्षा और शांति कीदेखरेख कर सके। सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत को किसी के भी सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। वहतो खुद चलकर भारत के पास आएगी।