श्रम करने पर रुपये मिलते

 
घर में रुपये नहीं हैं पापा,
चलो कहीं से क्रय कर लायें।
सौ रुपये कितने में मिलते,
मंडी चलकर पता लगायें।
यह तो पता करो पापाजी,
पाँच रुपये कितने में आते,
एक रुपये की कीमत क्या है,
क्यों इसका न पता लगाते।
नोट पाँच सौ का लेना हो,
तो हमको क्या करना होगा।
दस का नोट खरीदेंगे तो,
धन कितना व्यय करना होगा।
पापा ‍‍बोले  बाज़ारों  में,
रुपये नहीं बिका करते हैं।
रुपये के बल पर दुनिया के,
सब बाज़ार चला करते हैं।
श्रम शक्ति के व्यय करने पर,
रुपये हमको मिल  जाते हैं ।
कड़े परिश्रम के वृक्षों पर,
रुपये फूलकर फल जाते हैं।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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