टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना…

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तनवीर जाफ़री

भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी त्याग कर भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था को सुधारने का बीड़ा उठाने वाले अरविंद केजरीवाल की इस समय एक ऐसी पहचान बन चुकी है जिसने कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की नींदें हराम कर दी हैं.खासतौर पर उच्च स्तर पर बैठे सफेदपोश भ्रष्टाचारियों की.इतना ही नहीं बल्कि केजरीवाल व उनकी संस्था इंडिया अगेंस्ट करप्पशन(आईएसी) ने तो मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के लिए भी इस समय एक असहज सी स्थिति पैदा कर दी है.कांग्रेस पार्टी पर भाजपा भ्रष्टाचार में डूबे रहने का आरोप लगाकर 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की बदनामी का लाभ उठाकर सत्ता हासिल करना चाह रही थी.परंतु केजरीवाल ने भाजपा को भी आईना दिखाते हुए उसे भी कठघरे में खड़ा करने की सफल कोशिश की है.गोया भ्रष्टाचार विरोध का मुद्दा केजरीवाल ने भाजपा के हाथों से भी यह जताकर छीन लिया है कि कम से कम भ्रष्टाचारियों को तो भ्रष्टाचार विरोध का परचम उठाने का कोई हक नहीं है.

सूचना के अधिकार के मुद्दे पर आंदोलन चला अपनी पहचान बना चुके अरविन्द को देश ने और अधिक उस समय जाना जब वे अन्ना हज़ारे के ‘मुख्य सेनापति’ के रूप में जनलोकपाल आंदोलन का नेतृत्व करते दिखाई दिए.इस गरज़ से केजरीवाल ने राजनैतिक संगठन खड़ा करने तथा भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को उन्हीं के चुनाव क्षेत्र मे जाकर ईमानदार उम्मीदवार से चुनाव लड़वाने की योजना तैयार की है.

केजरीवाल अपनी इस योजना में कितना सफल होंगे कितना नहीं, सफल होंगे भी या नहीं, भ्रष्ट नेताओं का मुकाबला करने के लिए वे कौन सी रणनीति अपनाएंगे तथा राजनीतिज्ञों के परंपरागत धनबल, बाहुबल व उनके राजनैतिक जनाधार का वे कैसे मुकाबला कर पाएंगे यह सभी प्रश्न अपनी जगह पर वाजिब हैं.यह भी हो सकता है कि केजरीवाल को उनके इस मिशन में अपेक्षित सफलता न भी मिले.परंतु इससे अरविंद केजरीवाल की नीयत पर शक हरगिज़ नहीं किया जाना चाहिए.

हालाँकि समासेवी अन्ना हज़ारे ने पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल पर सत्तालोभी होने का संदेह ज़ाहिर किया.बड़े आश्चर्य की बात है कि कल तक अरविंद केजरीवाल की सूझबूझ, योग्यता, उनके जोश व उत्साह का अपने जनआंदोलनों के लिए इस्तेमाल करने वाले अन्ना हज़ारे को केजरीवाल द्वारा राजनैतिक पार्टी का गठन किए जाने में उनका सत्ता मोह दिखाई दिया.अन्ना हज़ारे द्वारा केजरीवाल पर सत्तालोभी होने का लेबल लगाना कतई उचित नहीं है.

अन्ना हज़ारे देश की वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था को कीचड़ की संज्ञा दे रहे हैं.इस नाते वे इस व्यवस्था का हिस्सा बनने के बजाए केवल आंदोलन चलाए जाने के अपने मिशन पर ही डटे रहना चाहते हैं। सवाल यह है कि क्या केवल आलोचना, विरोध या अनशन मात्र से समस्याएं हल हो सकेंगी? वह भी अब ऐसे मोड़ पर आकर जबकि जंतरमंतर पर हुए अन्ना हज़ारे के दूसरे आंदोलन की केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह अनदेखी कर दी गई तथा उसे कोई अहमियत नहीं दी गई.और जल्दबाज़ी में ही सही परंतु उस समय स्वयं अन्ना हज़ारे की सहमति व उनकी मौजूदगी में टीम अन्ना के सदस्य भी राजनैतिक दल बनाए जाने की घोषणा कर बैठे.

हम अरविंद केजरीवाल के राजनैतिक मिशन से मतभेद रखने वाले उनके मात्र दो पूर्व सहयोगियों अन्ना हज़ारे व किरण बेदी की अलग-अलग बात करें तो हम यह देखते हैं कि अन्ना हज़ारे निश्चित रूप से इस बात से भयभीत हैं कि यदि उनकी टीम के सदस्य राजनैतिक पार्टी गठित करने के बाद अपने राजनैतिक मिशन में असफल होते हैं तो यह अन्ना हज़ारे व उनके आंदोलन के लिए खतरे की घंटी तो होगी ही साथ-साथ राजनैतिक दलों को यह कहने का अवसर भी मिल जाएगा कि देश की जनता तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के साथ नहीं बल्कि पारंपरिक लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था की ही पक्षधर है.जबकि किरण बेदी का मत यह है कि कांग्रेस व यूपीए को सत्ता से हटाने के लिए भाजपा को समर्थन दिया जाना चाहिए तथा एक स्थापित राजनैतिक विपक्ष को ही समर्थन देकर यूपीए को उखाड़ फेंकना चाहिए।

लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनके कई प्रमुख साथियों का मत है कि किसी राजनैतिक दल का पक्ष नहीं लेना चाहिए.अधिकांश दलों के अधिकांश नेता भ्रष्टाचार में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप से संलिप्त हैं.लिहाज़ा भ्रष्टाचार के विरोध का परचम स्वयं अपने हाथों में ही लेकर बुलंद करना चाहिए.इन लोगों का यह भी मानना है कि परिणाम जो भी हो परंतु वक्त का तक़ाज़ा यही है कि भ्रष्ट व्यवस्था से छुटकारा पाने के लिए तथा व्यवस्था परिवर्तन हेतु देश की वर्तमान लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था का हिस्सा बनने का ही प्रयास किया जाना चाहिए तथा संघर्ष से पीछे हरगिज़ नहीं हटना चाहिए.

अरविंद केजरीवाल ने अपने संघर्षपूर्ण व क्रांतिकारी तेवर अन्ना हज़ारे के अनशन रूपी आंदोलन से नाता तोडऩे के बाद कई बार दिखा भी दिए हैं.उन्होंने जहां एक ही दिन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के नई दिल्ली स्थित आवास पर एक साथ विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की वहीं वे गत् दिनों सलमान ख़ुर्शीद को चुनौती देने उनके निर्वाचन क्षेत्र फरूखाबाद भी जा पहुंचे.

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल की भ्रष्टाचार का विरोध करने की क्रांतिकारी शैली निश्चित रूप से इस समय भ्रष्टाचार विरोधी रुख रखने वाले आम लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है.बेशक अन्ना हज़ारे व किरण बेदी जैसे समाज सेवियों की ईमानदारी व नीयत पर शक नहीं किया जा सकता परंतु अरविंद केजरीवाल के त्याग, उनका साहस तथा भ्रष्ट व्यवस्था से देश व देशवासियों को निजात दिलाने हेतु इसी व्यवस्था का हिस्सा बनने का उनका प्रयास भी नकारा नहीं जा सकता.

विभिन्न राजनैतिक दलों में भी तमाम ऐसे लोग यहां तक कि मंत्री, सांसद व विधायक ऐसे हैं जो स्वयं अपनी पार्टी के आलाकमान, शाीर्ष नेताओं व वरिष्ठ नेताओं के भ्रष्ट आचरण व उनके ऐसे फ़रमानों से दु:खी हैं.ऐसे लोगों को भी अरविंद केजरीवाल के व्यवस्था परिवर्तन के मिशन में अपना सहयोग देना चाहिए तथा बिना किसी उज्जवल राजनैतिक भविष्य की चिंता किए हुए देश से भ्रष्टाचार समाप्त किए जाने के आईएसी के इस संकल्पपूर्ण आंदोलन में शामिल होना चाहिए.बकौल शायर-

 

मैदां की हार-जीत तो किस्मत की बात है

टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना।।

2 COMMENTS

  1. अरविंद केजरीवाल को सफलता मिले या न मिले परन्तु उनकी नीयत पर शक नहीं किया जा सकता है राजनीति
    कीचड़ है तो साफ सुथरे लोगों को कीचड़ मे उतरकर सफाई करने का प्रयास करना पड़ेगा, केजरीवाल को जनता
    को एक मौका तो देकर देखना चाहिये।बाकी दलों को जनता देख ही चुकी है।

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