क्या यह शिवसेना के अवसान का वक़्त है..?

महाराष्ट्र में नए राजनीतिक समीकरणों की आहट सुनाई देने लगी है। खासकर राज्य में सशक्त क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित शिव सेना को लेकर राजनीतिक कयासबाजियों का बाजार गर्माता जा रहा है। यह सभी को ज्ञात है कि शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे की हालत इन दिनों ठीक नहीं है। उनका स्वास्थय उनका साथ नहीं दे रहा। वहीँ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे की भी हाल ही में एंजियोप्लास्टी हुई है। ऐसे में जहाँ मराठी मानुष की राजनीतिक विरासत को ग्रहण लगने के संकेत मिलने लगे हैं वहीँ विरोधी दलों ने अपने उज्जवल राजनीतिक भविष्य को देखना शुरू कर दिया है। १९६६ में बनी शिवसेना ने राज्य में अपनी अलग पहचान व तेवरों के चलते अमिट छाप छोड़ी थी। १९८० के दशक में पहली बार मुंबई महानगर पालिका की सत्ता पाने वाली शिवसेना १९९५ में भाजपा से गठजोड़ कर राज्य में अपना मुख्यमंत्री तक बना चुकी है। और यह सब हुआ बाल ठाकरे की राजनीतिक सूझबूझ और मराठी मुद्दे को लेकर उनकी प्रतिबद्धता को लेकर। किन्तु अब सेना का कुनबा बिखराव की ओर है। बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे उद्धव से अपनी आपसी अदावत के चलते महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से अलग दल बना ही चुके हैं और अब तक की उनकी राजनीतिक यात्रा को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शिव सेना को एम्एनएस ने तगड़ा नुकसान पहुँचाया है। न केवल वोटों को काटकर बल्कि मुद्दों को छीन कर भी एम्एनएस ने शिवसेना की कमर तोड़ दी है। हालांकि शिवसेना और भाजपा का राज्य में सियासी गठजोड़ है किन्तु राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए समर्थित उम्मीदवार पी ए संगमा की बजाए प्रणब मुखर्जी को समर्थन देकर बाल ठाकरे ने भाजपा से भी दूरी बढाने की शुरुआत कर ली है। वैसे शिवसेना की चिंताएं यहीं खत्म नहीं होतीं। पिछले ४६ वर्षो से परंपरा बन चुकी शिवसेना की दशहरा रैली में इस बार बाल ठाकरे नहीं आ सके। हाँ, पहले से तैयार उनकी सीडी से उनका सन्देश ज़रूर सेना कार्यकर्ताओं तक पहुँच गया। बाल ठाकरे को इससे पहले कभी इतना निरीह, असहास और टूटा हुआ कभी नहीं देखा गया। उन्होंने कार्यकर्ताओं व जनता से आवाहन करते हुए भावपूर्ण अपील की कि जैसे मराठी मानुष ने उनका साथ दिया है, इसी तरह उनके पुत्र उद्धव का भी साथ दिया जाए ताकि पार्टी की प्रासंगिकता बरकरार रहे। इसी प्रकार की भावपूर्ण अपील बाल ठाकरे एक बार पूर्व में भी कर चुके हैं किन्तु इस बार उनके स्वर इतना कातर था कि आभास ही नहीं हुआ कि क्या यह वाही ठाकरे हैं जो एक इशारे पर मुंबई तो क्या महाराष्ट्र तक ठप करवा देते थे?

 

तो क्या समझा जाए, क्या शिव सेना का वजूद सच में खत्म हो रहा है? क्या बाल ठाकरे के साथ ही उद्धव भी अपनी सेहत के चलते पार्टी को उतना समय नहीं दे पा रहे जितना की देना चाहिए? क्या दोनों के बाद कोई ऐसा चेहरा है जो पार्टी में नयी जान फूंक कर उसे अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले खड़ा कर सके? क्या बाल ठाकरे के पोते आदित्य में वह बात है जो उन्हें अपने दादा के समकक्ष लाकर खड़ा कर दे? इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो भविष्य में मिल ही जाएगा किन्तु वर्तमान में जिस तरह राज अपने चाचा के करीब हैं उससे यह आशंका भी बलवती हुई है कि क्या राज उद्धव से अपनी अदावत भूलकर पार्टी का झंडा थामेंगे। इससे पहले भी राज ने कभी बाल ठाकरे की बात नहीं टाली है। चाहे वह उद्धव को अस्पताल जाकर देखते की बात हो या बाल ठाकरे के कार्टून संग्रह की विरासत को आगे बढाने की जद्दोजहद; राज ने अपने चाचा का खूब ख्याल रखा है। अपनी राजनीतिक रैलियों में भी उन्होंने शिवसेना और उद्धव के खिलाफ कितना भी ज़हर उगला हो मगर बाल ठाकरे के बारे में उनके मुंह से कोई आपत्तिजनक कथ्य नहीं निकला है। शुक्रवार को भी राज ने बाल ठाकरे से मुलाक़ात की है और यह मुलाक़ात ऐसे समय में हुई है जबकि शिवसेना के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न-चिन्ह लगे हैं। हालांकि मुलाक़ात का एजेंडा तो पता नहीं चला है किन्तु इतना तय है कि बदले हालातों में निश्चित रूप से दोनों के बीच राजनीतिक चर्चा ही हुई होगी। यह भी संभव है कि राज बाल ठाकरे की बात मानकर शिवसेना के प्रति नरम रुख अपना लें या समझौते की सूरत में एम्एनएस का शिवसेना में विलय हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो राज ठाकरे की बढती लोकप्रियता और आकर्षक व्यक्तित्व शिवसेना को संजीवनी प्रदान करेगा। हाँ, इस सूरत में शिवसेना छोड़कर एम्एनएस में आए सैकड़ों समर्पित कार्यकर्ताओं का राजनीतिक भविष्य अधर में पड़ जाएगा जो न तो शिवसेना के साथ रह पाए और न ही एम्एनएस में। फिलहाल तो महाराष्ट्र के कद्दावर राजनीतिक क्षेत्रीय दल में उठे नेतृत्व संकट पर देश भर की नज़रें टिकी हुई हैं। और हो भी क्यों न, आखिर बाल ठाकरे और शिवसेना का अतीत तथा वर्तमान इतना विवादित रहा है कि कोई भी राजनीतिक दल इनके बयानों के तीर से नहीं बच पाया है। अपनी पार्टी के निर्माण से उत्थान और फिर पतन के साक्षी रहे बाल ठाकरे फिलहाल तो इसकी दुर्दशा और भावी भविष्य को लेकर आंसू बहा रहे होंगे।

 

सिद्धार्थ शंकर गौतम

Previous articleजय हो बाजार की!
Next articleकरवा चौथ
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

1 COMMENT

  1. siddaarth जी का लेख पड़कर लगा की क्या वे अपने को विश्लेषक या चिन्तक मानते है,?
    शिवसेना के पास कार्यकर्ता हैं,मनोहर जोशी जैसे नेता है तो उसके अवसान के बारे में अटकल लगना मूर्खत ही कही जाये गी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here