तर्कशीलता के सामने गंभीर चुनौती ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच की जगह ले रही है कट्टरता !

20 अगस्त 2013 को नरेंद्र डाभोलकर, 20 फरवरी 2015 को गोविंद पानसरे और 30 अगस्त 2015 को एम एम कालबुर्गी की हत्या के बाद एक कट्टरपंथी संगठन के वरिष्ठ पदाकिारी ने बाकायदा ट्वीटर पर लिखकर ध्मकी दी है कि अगली बारी इस कड़ी में प्रोफेसर भगवान की है। इससे पहले अनंतमूर्ति और मीना कंडसामी पर जानलेवा हमले केवल उनके स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति के कारण हो चुके हैं। मुरूगन अपना लिखा वापस लेने के दबाव पर अपनी ही किताबें जलाने के बाद खुद को मृत घोषित करने को मजबूर होते हैं। इतना ही नहीं हमारे पड़ौसी देश बंग्लादेश में एक के बाद एक स्वतंत्र विचारक ब्लॉगर्स की हत्या की जाती है और वहां की सरकार कट्टरपंथियों के दबाव में हत्यारों के खिलाफ ठोस कार्यवाही तो दूर इन हत्याओं की निंदा तक करने को तैयार नहीं है।

महिलावादी और मानवतावादी निष्पक्ष लेखिका तसलीमा नसरीन को इसीलिये अपना देश छोड़ना पड़ता है और फिर हमारे यहां भी कट्टर मुस्लिमों की बार बार धमकी और हमले  से डरकर उनको यूरूप में शरण लेनी पड़ती है। इससे पहले पाकिस्तान में तालिबान आईएसआईएस और लश्करे तय्यबा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाकर क्या क्या गुल खिलाते रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। आज नतीजा यह है कि जिस पाक सरकार ने कट्टरपंथ और आतंकवाद के इस नाग को दूध पिलाकर पाला पोसा था आज वो उनको की डस रहा है।

जिस हिंदू धर्म को सहिष्णु और उदार बताकर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की पूरी दुनिया में दुहाई देते रहे हैं आज उसी को अपनी कट्टर और हिंसक हरकतों से तार तार करने पर उतर आये हैं। कुछ लोग हमारे देश में एक के बाद एक तर्कशील विद्वानों की हत्या और कट्टरपंथियों की हरकतों को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं लेकिन संकीर्ण और फासिस्ट शक्तियां इसी तरह छोटी छोटी घटनाओं से शुरू में समाज को आतंकित करके प्रगतिशील और तर्कशील लोगों का मुंह बंद करती हैं और उसके बाद जब इनको लगता है कि इनकी हरकतों पर सबने चुप्पी साध ली है तो ये खुलकर अपना नंगा खेल करने लगती हैं। धर्म जागरण मंच के नेnasreenता राजेश्वर सिंह ने ऐलान किया है कि 31 दिसंबर 2021 तक वे भारत से इस्लाम और ईसाइयत को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे।

इससे पहले बीजेपी सांसद प्रभात झा संसद में ईश निंदा कानून के लिये एक विवादित प्राइवेट बिल पेश करने की उसी तर्ज़ पर तैयारी कर रहे हैं जैसा पाकिस्तान में विवादित कानून बेकसूर और अल्पसंख्यकों को सताने के काम आ आ रहा है। जैन समाज के एक सप्ताह चलने वाले पर्यूषण पर्व पर मुंबई में एक सप्ताह मीट की बिक्री पर रोक लगाकर वहां की महानगर पालिका ने पहले ही विवादित कदम उठाकर हाईकोर्ट में किरकिरी होने के बाद मजबूरन वापस लिया है। इसी को देखकर हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी ऐसा ही विवादित क़दम उठाया है। इसके साथ ही दो राज्य सरकारों ने मुस्लिम पर्व बकरा ईद की छुट्टी की ख़त्म कर दी है। पता नहीं इससे वे क्या संदेश देना चाहती हैं?

मुंबई में कई साल पहले सड़कों पर जुमे की नमाज़ अदा करने से जब घंटों ट्रेफिक जाम होने लगा था तो लोगों ने पुलिस प्रशासन से शिकायत की लेकिन वोटबैंक के चक्कर में न कार्यवाही होनी थी और न हुयी तो शिवसेना ने जवाबी तौर हर मंगलवार को सड़कों पर महाआरती शुरू कर दी। इससे दोनों वर्गों में टकराव और तनाव बढ़ा लेकिन दंगे होने के बावजूद कोई तर्कसंगत हल नहीं निकला। रम्ज़ान में रात में मस्जिदों से रोज़े के लिये उठाने और सुबह 6 बजे से पहले रोज़ फज्र की अज़ान पर भी कई जगह विवाद चला आ रहा है लेकिन आस्था से जुड़ा भावुक मामला होने से कोई इस पर खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। ऐसे ही शिवरात्रि पर कांवड़तियों की वजह से और हरिद्वार व इलाहाबाद वगैरा में कुंभ पर लगने वाले जाम और रोड पर उनकी अचानक मामूली बातों पर हिसंा का अब तक कोई हल नहीं तलाश किया जा सका है।

शबे बरात पर रात भर नमाज़ पढ़ने के बाद बाइकर्स का दिल्ली में हंगामा कई बार चर्चा में आ चुका है। सच तो यह है कि मज़हब और तर्क का एक दूसरे से सदा बैर रहा है। एक समय था कि चार्वाकों ने पुरोहितों के कर्मकांड पर आवाज़ उठाई तो उनको सदा के लिये मिटा दिया गया। बू्रनो ने जब खगोल शास्त्र के बल पर ईसाई धर्मिक ग्रंथ पर ही उंगली उठाई तो उनको ज़िंदा ही जला दिया गया और अनलहक का नारा देने वाले मंसूर अल हजाज को मौत के घाट के उतार दिया गया। इतिहास ऐसी तमाम घटनाओं से भरा पड़ा है जहां तर्क पर आस्था को वरीयता देते हुए तर्कशील लोगों की जान ली गयी लेकिन इतिहास यह भी बताता है कि आज का लोकतंत्र प्रगति विकास विज्ञान समानता मानवता उन्नति और ताशाह राजाओं का अंत केवल और केवल तर्कशीलता से ही हो सका है।

अगर आज हमने इन फासिस्ट और कट्टर हमलों का निर्णायक विरोध नहीं किया तो हमारे देश में भी धीरे धीरे धार्मिक अंधराष्ट्रवाद तानाशाही अंधविश्वास और तालिबानी सोच लोकतंत्र धर्मनिर्पेक्षता वैज्ञनिकता प्रगतिशीलता और उदारता को दीमक की तरह चाट जायेंगे जिससे प्रतिक्रिया में हिंसा आतंकवाद अलगाववाद और ग्रहयुध््द की ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। प्रैस काउंसिल के प्रेसीडेंट और न्यायविद मार्कंडेय काटजू का कहना है कि जब भारत वैज्ञानिक रास्ते पर था, तब उसने तरक्की की। साइंस के सहारे हमने विशाल सभ्यताओं का निर्माण हज़ारों साल पहले किया, जब अधिकतर यूरूप जंगलों में रहता था, उन दिनों हम लोगों ने वैज्ञानिक खोजें कीं लेकिन बाद में हम लोग अंधश्रध्दा और कर्मकांड के रास्ते पर चल पड़े।

काटजू का यह बयान यहां हमने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के संदर्भ में पेश किया है जिसमें माननीय न्यायमूर्ति विपिन संघी ने आस्था के कंेद्रो पर लगे लाउडस्पीकरों से होने वाले ध्वनिप्रदूषण पर कानून के ज़रिये सख़्ती से अमल पर जोर दिया है। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि आस्था के नाम पर किसी को भी इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह अपने धर्म और उसके आचार विचारों को दूसरों पर जबरन लादे। कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि धार्मिक संस्थानों के प्रबंधको को यह लगता हो कि उनकी गतिविधियों की तेज़ आवाज़ वहां नहीं पहुंच पा रहे लोगों के लिये लाभप्रद हो सकती है लेकिन इस आधार पर उनको इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वे अपने आसपास के माहौल को बाधित करें या इलाके की शांति को भंग करें।

हमारी सलाह तो यही है कि आस्थावादी और कट्टर धार्मिक लोग अपने विरोधियों व असहमति रखने वालों को ख़त्म करने की नाकाम और बचकानी हरकत के बजाये एक दूसरे से संवाद स्थापित करें तो बातचीत से हर समस्या का हल निकल सकता है।

क़रीब आओ तो शायद हमें समझ लोगे,

ये फ़ासले तो ग़लतफ़हमियां बढ़ाते हैं।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. जहन्नुम में गयी तर्कशीलता.

    भारत के तमाम मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया पर पाकिस्तान नहीं गये.
    मुसलमान कितने अच्छे हैं हैं इसका पता सभी के सभी इस्लामी देशों की स्थिति को देख कर पता चलता है.
    साथ ही इसलाम किस प्रकार से शांति, अमन, प्रेम और भाई चारा का धर्म है, यह भी पता चलता है.
    जहाँ जहाँ भी मुसलमान की आबादी बढ़ी, वह जगह कैसे नरक बन गया, सबको पता है, शायद आपको भी.
    72 हूरों और लौंडो के सपने देखने वाले को क्या अधिकार कि वो हिन्दुओं के रीति रिवाज और उनके धर्म कर्म पर टिपण्णी करें.
    यदि एक बार तुम लोगों के विरुद्ध कोई हलकी सी बात भी बोली लाती है कि इसलाम खतरे में पड़ जाता है.
    कोई मुसलमान को किराये पर कमरा न दे, नौकरी पर न रखे तो दुनिया सर पर उठाने वाले करोड़ो मिल जाएंगे.
    मुसलमान मंदिर में घुसे, ये हुआ सेकुलर, मक्का में घुसने नहीं दोगे गैर मुस्लिम को.
    एक मुसलमान छोरा गैर मुसलमान छोरी को ले भागे, ये हुआ जिहाद (72 हूरें और लौंडे पक्के) इसका उल्टा हुआ तो दंगा।
    मियां अपने गिरेबान में झांको, यही अच्छा होगा।
    जहन्नुम में गयी तर्कशीलता.

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