गम्भीर मुद्दा फैसले कहा से होगे ,जज साहब ही नही

फरवरी 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त हुए मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशो की नियुक्ति में पारदिशर्ता की जरूरत है कहते हुए एक ब्यान दिया था। 2005 में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर सी लाहोटी ने सार्वजनिक रूप से ये कहा था कि आने वाले दिन एलपीजी के है। एलपीजी मतलब लिबलाइजेशन, प्राईवेटाइजेशन, और ग्लोबलाइजेशन यानी उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरणभोपाल गैस त्रासदी पर अदालत के आये फैसले पर भारत सरकार के कानून एंव विधि मंत्री वीरप्पा मोइली का ये कहना कि ‘न्याय को दफना दिया गया है और इस फैसले से सबक सीखने की जरूरत है।’ एकदम सही है कानून मंत्री ही क्यो आज पूरा का पूरा देश अदालत के द्वारा 25 साल बाद आये इस फैसले और इस व्यवहार से आहत है। भारत की न्याय व्यवस्था आज समय पर न्याय नही कर पा रही है। नई अर्थव्यवस्था और नई तकनीके कैसी है। आज अदालतो का रूख ऐसा हो चला है मानो वे सरकार की नीतियो के अनुरूप अपने आप को बदल लेना चाहती है। न्याय जब तक होता है’ तब तक न्याय पाने वाला भगवान को प्यारा हो जाता है या न्याय के प्रति उस की आस पूरी तरह टूट जाती है। तब कही जाकर उस के हक में अदालत का फैसला आ पाता है। आखिर अदालतो को न्यायालयो में विचाराधीन मुकदमो का फैसला देने में इतनी देर क्यो हो रही है।

वजह बिल्कुल साफ है आज देश की हर एक अदालत में मुकदमो का अम्बार लगा हुआ है। कोर्ट कचहरी में वादी और प्रतिवादी की उम्र मुकदमे की तारीखो पर आते जाते ही बीत जाती है। तारीख पर तारीख लगते लगते कई लोग जवान से बूढ़े और बूढ़े परलोक सिधार जाते है। किन्तु अदालत का फैसला आना तब भी बाकी रहता है। कुछ लोग दीवानी का मुकदमा लडते लडते दीवाने हो जाते है। कुछ के मुकदमो में इतनी तारीखे लगी की वादी और प्रतिवादी की दूसरी जायदाद इन मुकदमो की पैरवी करते करते बिक गई पर अदालत का फैसला नही आया। सरकारी आंकडो और विधि मंत्रालय के पास ताजा मौजूद आंकडो के मुताबिक देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालय में करीब 265 न्यायाधीशो की आज भी कमी है। और इस कमी के चलते लंबित मुकदमो की संख्या लगभग 39 लाख हो गई है वही देश की विभिन्न अदालतो में तकरीबन 3.128 करोड लंबित मामले चल रहे है। एक अनुमान के अनुसार यदि इसी प्रकार से अदालतो में न्याय प्रकि्रया चलती रही तो इन्हे निपटाने में लगभग 320 साल लगेगे। आज इन्सान की उम्र औसतन 60 से 65 साल के बीच हो रही है ऐसे में जब इन मुकदमो में अदालत का फैसला आने में 320 साल का वक्त लगेगा तो आखिर कितनी पी एक मुकदमे को लडेगी कितनी तारीखे लगेगी। कब फैसला होगा किस के हक में होगा कौन बचेगा कौन मरेगा भगवान जाने।

आखिर हमारी सरकार इस ओर ध्यान क्यो नही दे रही। आज देश भर में कॉईम तेजी से बढ़ता जा रहा है। जिस की सब से बडी वजह समय पर मुकदमो का न निपटना, लोगो को इन्साफ मिलने में देरी होना भी है। कानून मंत्रालय के पास इस वक्त जो ऑकडे है उन के अनुसार यदि आज देश की कानून व्यवस्था पर नजर डाले तो देश के 21 उच्च न्यायालयो में न्यायाधीशो के स्वीकृत पदो कि संख्या 895 है और महज 630 न्यायाधीश विभिन्न मामलो की सुनवाई कर रहे है। इलाहबाद उच्च न्यायालय में तो जजो कि कमी के कारण कामकाज बुरी तरह प्रभवित है उत्तर प्रदेश इलाहबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशो के स्वीकृत पदो की संख्या160 है। जब कि 77 उत्तर प्रदेश इलाहबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश विभिन्न मामलो की सुनवाई कर रहे है। यानी 83 न्यायाधीशो की कमी है। इस उच्च न्यायालय में स्थाई न्यायाधीशो के 30 और अतिरिक्त न्यायाधीशो के 53 पद रिक्त है। देश भर के उच्च न्यायालयो में सब से ज्यादा इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिये जजो के पद स्वीकृत है। सितम्बर 2009 में प्राप्त आंकडो के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट में 160 में से 54 पद रिक्त थे जबकि अब इन रिक्त पदो कि सॅख्या 83 पहुच गई है। ये 160 न्यायाधीश जो विभिन्न मामलो की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर रहे थे इन में से भी कुछ जून 2010 में सेवानिवृत्त हो चुके है। ऐसे में लंबित मामलो की संख्या और बेढ़गी। जजो की भारी कमी को देखते हुए लखनऊ अवध बार एसोसिएशन ने पिछले दिनो सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश से जल्द जजो की नियिुक्त की अपील की थी किन्तु अभी तक इस ओर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा कोई ठोस कदम नही उठाया गया है जिस कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलो की संख्या दिन प्रतिदिन बने से एक ओर जहॉ लोगो को इन्साफ मिलने में देरी हो रही है वही दूसरी ओर आज देश की हर एक अदालत में मुकदमो का अम्बार लगा हुआ है। सरकार को कानून व्यवस्था चुस्तदुस्त बनाने में बडी परेशानी का सामना करना पड रहा है।

आज गॉव कस्बो में लगभग 60 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह मुकदमेबाजी में फॅसे है। खास कर हमारे गॉवो का तो बुरा हाल है। कोई ऐसा घर होगा जिस घर में मुकदमेबाजी न हो। खेतो की डोल पर झगडा, आने जाने के रास्ते पर झगडा,पानी की निकासी और नहर के पानी पर मुकदमा, जरा जरा सी बात को गॉव के लोग अपनी मूछ का सवाल बना लेते है। और सीधे चले आते है कोर्ट कचहरी। आज किसी भी कोर्ट कचहरी में माननीय वकीलो की संख्या इतनी ज्यादा है कि ये गॉव के लोग ही इन वकीलो की खूब सेवा कर रहे है। दूसरी ओर भला हो उत्तर प्रदेश पुलिस का जो बडी से बडी डकैती को छोटी मोटी चोरी दिखाती है लूट, चोरी, बालात्कार, राहजनी, हत्या जैसी तमाम घटनाओ की रिपोर्ट ही दर्ज नही करती और यदि ऊपर से दबाव पडता है केस किसी रसूख वाले व्यक्ति का होता है तब मजबूरी के तहत पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती है। पर यहॉ भी हमारी पुलिस डंडी मार लेती है और बडी घटना को छोटी छोटी धाराओ में दर्ज कर ऊपरी अदालतो तक पहुॅचने ही नही देती है। यदि हमारी पुलिस सही तरीके से केस दर्ज कर आईपीसी की धाराओ के अर्न्तगत सही सही कार्यवाही करे तो देश भर की अदालतो सहित उत्तर प्रदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलो की संख्या कई गुना तक ब सकती है। जजो की कमी और मुकदमो का अंबार सरकार के लिये कोढ़ में खाज वाला काम कर सकता ह

1 COMMENT

  1. बिलकुल सही कह रहे है श्री शादाब साहब.
    वाकई आज की तारिख में कैंसर की बीमारी से ज्यादा खतरनाक है कोर्ट के चक्कर में पड़ना.

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