फेसबुक पर सात साल

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लगभग सात साल से फेसबक से जुड़ी हूँ। फेसबुक के माध्यम से ही हिन्दी साहित्य की समकालीन गतिविधियों की जानकारी मिली और इसी के माध्यम से आज के साहित्यकारों से व उनकी लेखनी से परिचय हुआ।हिन्दी में आज भी बहुत अच्छा लिखा जा रहा है परन्तु जनमानस का रुझान हिन्दी से इतना हटा है कि लोग चेतन भगत को जानते हैं पर किसी को आज के हिन्दी साहित्यकारों के नाम भी नहीं पता हैं।50 , 60 साल पहले के साहित्यकारों के नाम के नाम भले ही पता होंगें पर1960 से लेकर आज तक हिन्दी में कौनसी प्रतिभायें उतरीं ये या तो साहित्यकार जानते हैं या हिन्दी के विद्यार्थी।

अब तक फेसबुक के सभी मित्र जान चुके होंगे कि मैं लेखन से अपने जीवन के पचास वर्ष पूरे होने के बाद जुड़ी थी।जिस तरह आजकल चिकित्सा में general practitioner नहीं दिखाई देते specialists और super specialist का ज़माना है उसी तरह साहित्यकार भी अपने क्षेत्र में विशिष्ठ योग्यता रखते हैं। यही नहीं कि कोई विशेष रूप से कविता लिख रहा है या गद्य अधिकतर साहित्यकार अपनी विशिष्ठ शैली और निश्चित विधा में लिख रहे हैं और बहुत अच्छा लिख रहे हैं वो अपने सुविधा क्षेत्र(comfort zone)में रहकर एक से एक सुन्दर रचना रच रहे हैं, बल्कि वो इस क्षेत्र और भी संकरा कर रहे हैं ,इससे उनकी एक छवि बन जाती है ।यह छवि ही पाठक को आकर्षित करती है।कोई बात शत प्रतिशत सही या ग़लत नहीं होती हो सकती है। कुछ साहित्यकार बहुमुखी प्रतिभा के कारण भी लोकप्रिय हुए हैं।

जब मैने लिखना शुरू ही किया था तबसे श्री Pran Sharma की प्रशंसा, आलोचना और मार्ग दर्शन मुझे मिला है , उनसे बहुत कुछ सीखा है उनकी लेखनी के विषय में कोई टिप्पणी करने की मेरी औकात नहीं है। वो मेरे लिये गुरु समान हैं।

फेसबुक पर आने से बहुत से साहित्यकारों से संपर्क बना कुछ से मिलना भी हुआ उनकी रचनायें फेसबुक के अलावा अन्य स्रोतों पर भी पढ़ीl

श्री Girish Pankaj जी और संतोष त्रिवेदी जी से एक बार pravkta.com के सम्मान समारोह मे मिलना हुआ था। जब भी मुझे किसी सलाह की ज़रूरत हुई उनसे संपर्क किया। दोनो बहुत सरल स्वभाव के है।दोनो व्यंग्यकार के रूप में विख्यात हैं धार दार व्यंग्य सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।गिरीश जी की फेसबुक पर ग़ज़लनुमा समसामयिक रचनायें आकर्षित करती हैं।भाषा हमेशा सरल और बोधगम्य होते हुए भी इंगलिश के शब्दों को लेखन में स्थान देने से बचते आयें है। उन्होने मेरे कविता संग्रह ‘मैं सागर में एक बूँद सही’ की प्रस्तावना लिखी थी। व्यंग्यकारों का ज़िक्र करूं तो AlankarRastogi का नाम न लूँ यह कैसे संभव है तीखे व्यंग्य लिख लिख कर इतना कुछ दे देते हैं कि हमारे पास लिखने के लिये कोई विकल्प नहीं बचता और ये कहते हैं सब विकल्प खुले हैं।इन्होने अभी मेरे व्यंग्य संग्र ‘झूठ बोले कौवा काटे’ और इंगलिश की कविताओं के संग्रह” I do not live in dreams” के लिये बहुमूल्य शब्द लिखेहैं।डा . Ramesh Tiwari से मेरी मुलाक़ात मेरे कविता संग्रह के अनावरण पर हुई थी।इनकी ई मेल आई डी ही व्यंग्यात्मक तो इनके व्यंग्य कैसे होंगे केवल अनुमान लगा सकते हैं! रमेश जी ने मेरे व्यंग्य संग्रह की प्रस्तावना लिखी है इसके लियें उनका आभार।यद्यपि पंकज प्रसून जी से मेरा व्यक्तिगत संपर्क नहीं हुआ है पर व्यंग्यकार के रूप मे फेसबुक के माध्सम से उनकी प्रशंसक हूँ।

अभी मैने जो लिखा है वह इन साहित्यकारों का बहुतअधूरा परिचय है जो केवल फेसबुक पर उनकी उपस्थिति के आधार पर लिखा है।इनके व्यक्तित्व और साहित्य के बहुत से पक्ष और हैं जो धीरे धीरे जानने की कोशिश जारी रखूँगी।

इन सब की रचनाये पढ़ पढ कर ही कुछ व्यंग्य मैने भी लिखे है। सफलता कितनी मिली यह झूठ बोलने वाला कौवा बतायेगा………….

कल मैने अपने फेसबुक मित्रों में से कुछ व्यंग्यकारों की बात की थी।फेसबुक पर लेकिन कविताऔर कवि छाये रहते हैं।

कविताओं के संग्रह प्रकाशक छापने में  हिचकिचाते हैं पर फेसबुक पर सबसे ज़्यादा कविता ही पढ़ी जाती है।काव्य की जितनी भी शैलियां है उन सब के कवि फेसबुक पर मौजूद हैं। दीक्षित दनकौरी जी  ग़ज़लकार मैं सागर में एक……….के अनावरण पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।ग़ज़ल का ज़िक्र करूं तो प्राण सर के अलावा अशोक रावत  जी, नीरज गोस्वामी,दीक्षित दनकौरी और नवीन त्रिपाठी की ग़ज़लें बहुत अच्छी होती है।यद्यपि श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मेरी मित्र सूची में नहीं हैं पर मैने एक कार्यक्रम में उनकी ग़ज़लें सुनी तो  मैं बहुत प्रभावित हुई थी। ग़ज़ल क्या है यह मैने फेसबुक पर आकर ही जाना, समझने भर की कोशिश की है अभी लिख  पाने की योग्यता नहीं है।दरअसल उत्तर प्रदेश में हमारे समय तक शिक्षा में उर्दू का प्रभुत्व समाप्त होचुका था इसलिये उर्दू के बारे में मेरा ज्ञान बस उन शब्दों तक है, जो रोज़ाना की हिन्दी में समा चुके है।

हिन्दी छँदो के बारे में पढ़ा था पर कभी ख़ुद लिखने कोशिश भी करूंगी ऐसा विचार मन में कभी नहीं आया।किसी ज़माने में शास्त्रीय संगीत विधिवत सीखा था पर वहाँ पुरानी बंदिशे ही सिखाई जाती हैं,  ग़जले सुनने और गाने का बहुत शौक था क्योंकि ये भी रागों में ही बद्ध होती है, बस गायिकी का अंदाज़ कुछ अलग रहता है। तब तक मैं ठुमरी, दादरा या ख़याल की तरह ग़ज़ल को भी संगीत की ही एक विधा समझती थी, साहित्य की नहीं।ग़ज़ल किसकी गाई हुई है ये पता होता था पर किसने लिखी है कभी  जानने की  कोशिश नहीं की, कुछ शब्दों का अर्थ नहीं भी समझ पाती थी तो भी सुनना अच्छा लगता था क्योंकि पूरा ध्यान गायिकी पर ही होता था।फेसबुक पर आने के बाद ग़ज़ल के साहित्यिक पक्ष को समझने की कोशिश की, जिसे हम मुखड़ा और अंतरा कहते थे वो ग़ज़ल का मतला और शेर होते हैं। ग़ज़ल की बहर के अनुरूप संगीतकार तालबद्ध करते हैं।ग़ज़ल का अपना ही छँद शास्त्र है।

हिन्दी में छँदमुक्त कविता को मान्यता इंगलिश के मुक़ाबले बहुत देर में मिली। छँदबद्ध और छँद मुक्तकाव्य   दोनों का अपना अलग आकर्षण हैं।छँदों में एक निश्चित लय का पैमाना होने के कारण भावों को कभी कभी शब्द नहीं मिलते दूसरी ओर छँदमुक्त लिखने में लय कवि को स्वयं निश्चित करनी है पढ़ने वाला सही जगह यति न दे प्रवाह अटकेगा इसलियें विराम चिन्हों महत्व बढ़ जाता है।

फेसबुक पर मेरी मित्र सूची में दो छँद शास्र के विशेषज्ञ हैं। आदरणीय प्राण शर्माजी और आचार्य संजीव ‘सलिल ‘वर्मा जी।दोनो को ही हिन्दी उर्दू के छँद विधान का पूरा ज्ञान है। प्राण सर का रुझान ग़ज़ल की ओर अधिक है और संजीव जी फेसबुक पर पाठशाला लगाये हैं इनकी पाठ शाला में प्रवेश लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई हूँ ,इतनी महनत करने की हिम्मत नहीं होती।

कवियों मे सबसे पहले अशोक आँद्रे जी का नाम लूँगी इनकी कविता में शब्द जो कहते हैं अर्थ कभी कभी बहुत गहराई में होते हैं। आजकल फेसबुक पर इनकी उपस्थिति कम है पर मेरी कविता को उन्होने हमेशा सराहा है। वह मैं सागर में…………… के अनावरण पर उपस्थित थे। इस पुस्तक में उनकी और से भी कुछ शब्द हैं।

विजय निकोर जी की कविताये पीड़ा दर्द को अपने मे समाहित किये रहती हैं। ये भी अपनी

कविता के साथ चित्र अवश्य लगाते हैं। इनकी कवितओं मे महादेवी जी जैसा छायावाद

और कभी मीरा की वेदना दृष्टव्य होती है। हिन्दी और इंगलिश दोनो में बराबर की पकड़ के साथ कवितायें लिखते है।विजय मेरे भाई जैसे हैं मेरी दो पुस्तकों के लिये इन्होने अपने प्रोत्साहन के शब्द दिये हैं।अटलाँटा से पिछली बार जब दिल्ली आये तो मेरे परिवार के साथ कुछ समय गुज़ारा था।

छँदमुक्त कविता वंदना वाजपेयी और कल्पना मनोरमा जी की भी अच्छी लगी हैं। मुझे संध्या सिंह की कवितायें बहुत भाती हैं, छँद मुक्त लिखने के साथ कभी कभी दोहा चौपाई भी बहुत सुन्दर लिखती हैं और साथ में चित्र लगाना इनकी विशेषता है।इनकी कविताओं के प्रतीक, बिम्ब और उपमायें निराली होती हैं कई बार ईर्ष्या भी होती है कि ये भाव मुझे क्यों नहीं सूझे, इनको लाइक्स और कमैंट कम देती हूँ, क्योंकि पहले से ही उनकी इतनी भीड़ होती है कि उसमें मेरे लाइक्स और कमैंट खो जायेंगे।

कविता के साथ चित्र लगाने का शौक पंकज त्रिवेदी जी को भी है। ये हिन्दी की पताका विश्वगाथा के रूप में गुजरात से लहरा रहे हैं। मेरे व्यंग्य संग्रह झूठ बोले में इनके प्रोत्साहन के दो शब्द शामिल है।फेसबुक पर कविताओं की भरमार किसी कवि की कोई रचना अच्छी लगती है तो कभी निराश भी करती है।

फेसबुक पर उपस्थित कवियों का जिक्र हो उसमें लालित्य ललित जी का नाम न लिया जाये यह तो संभव ही नहीं है। फेसबुक द्वारा ये हमें अपनी यात्राओं की सचित्र जानकारी देने के साथ साथ अपने परिवार से भी मिलवाते रहते हैं।ललित जी मेरे कवितासंग्रह  मै सागर में………….के अनावरण के समारोह में मुख्य अतिथि थे, तब इन्होने अपनी कविता लड़की सुनाई थी जिसने सबको सम्मोहित कर लिया था कवि जब अपनी कविता अपने स्वर मेसुनाये तो भाव और निखर कर आते हैं। बहुत सारे सम्मान और पुरुस्कार मिलने के बावजूद वे बहुत सरल स्वभाव के हैं। ललित जी की मैने कोई छँदयुक्त रचना नहीं देखी है इसलियें मानकर चलती हं कि वो छँदमुक्त ही लिखते हैं छँदमुक्त ही नही वो  स्वछंद लिखते अनकी कविता बातें करती है कभी ख़ुद  से कभी प्रेयसी से जहाँ वाक्य पूरा भी नहीं होता और कुछ नई बात शुरू हो जातीहै तुम बैठो/ पानी पियोगी/नहीं तुम्हे भूख लगी होगी/कुछ खा कर पानी पीना/( ये मेरे शब्द हैं ललित जी के नही) ऐसे साधारण से वार्तालाप सेशुरू हुई उनकी कविता कहीं उत्कर्ष पर चमत्कार कर देती है। जैसे तुम तो स्वयं पानी जैसी सरल हो/ऐसी ही रहना/ कहो कि बदलगी नहीं/ । कहने का तात्पर्य यह है कि ललित जी न छँद मे उलझते हैं न अलंकार में फिर भी लोकप्रियता में अग्रणी हैं अपनी सरलता की वजह  से।

फेसबुकपर मेरी मित्र सूची में कहानीकार और उपन्यासकार भी है। लघुकथायें तो हर दिन फेसबुक पर पढ़ने को मिल जाती हैं प्राण सर के अलावा गिरीश पंकज जी, संजीव सलिल वर्मा जी की लघुकथायें फेसबुक पर बहुत पढ़ी हैं । लघुकथायें सोचने के लिये सामग्री दे देती हैं।सुश्री रजनी गुप्त विख्यात उपन्यासकार हैं, उनके लिखे उन्यासों पर शोध हो रहे हैं  विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल है।कभी कभी ये ऐसी भ्रामक पोस्ट फेसबुक पर डाल देती हैं कि समझ में नहीं आता कि ये इनके उपन्यास का अँश है या इनकी उस पल की स्वयं की अनुभूति! वैसे बहुत सरल स्वभाव की हैं, लखनऊ में एक बार इनही के निवास पर इनसे मुलाक़ात हुई थी।

श्री रूप सिंह चंदेल भी आजके बड़े उपन्यासकार हैं, मिलना तो नहीं हुआ पर फोन पर बात हुई है। किसी विशेष कारण से ये मैं सागर में एक बूँद सही के अनावरण पर मुख्य अतिथि का निमंत्रण स्वीकार नहीं कर पाये थे। फेसबुक पर इनकी उपस्थिति कम है , इनके एक उपन्यास पर फिल्म भी बन रही है।इन्होने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर उपन्यास लिखे हैं। सबसे अधिक चर्चित ख़ुदी राम बोस रहा है।

वीणा वत्सल सिंह का हाल मे तिराहा उपन्यास आया था । इनसे भी लखनऊ में इनके निवासस्थान पर मुलाक़ात हुई थी। hindi pratilipi.com का कार्य भार पूरी तरह से संभाले हुए हैं और प्रतिलिपि पर बढ़िया साहित्य उपलब्ध कराने के काम में संलग्न हैं।

प्रतिष्ठित साहित्यकारों के अलावा फेसबुक पर कुछ नवांकुरों से परिचय हुआ बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति ।सुन्दर भावों से रची कविता लिखते  हैं, हिन्दी और इंगलिश दोनो में लिखते हैं हिन्दी कविता में अनावश्क रूप से इंगलिश के शब्द डालना इनकी आदत है।ये कविता लिखने के लक्ष्य तक निर्धारित कर लेते हैं  कि इस साल में इन्हे ५०० कवितायें लिखनी ही है।एक और युवा कवि है पीयूश कुमार पारितोष, इनकी कवितायें अच्छी लगी है।एक अन्य युवा कवि अच्छी कवितायें लिख रहे थे आजकल फेसबुक पर नज़र नहीं आरहे हाँ याद आया नाम कुमार राज समीर। इन सब को शुभकामनायें।

 

फेसबुक के इस सात साल के सफ़र में बहुत से साहित्य कार से जुड़े, लोगों से परिचय हुआ जो अपनी अपनी शैली अपनी अपनी विधा में आज के हिंदी साहित्य के शिखर पर हैं।इनमें से अधिकतर आयु में मुझसे छोटे हैं,  मैं लिख रही हूँ और लिखती रहूँगी हिन्दी में भी और इंगलिश में भी। कुछ अनुवाद भी कर रही हूँ।

ललित की कविता भावों और शब्दों दोनो लिहाज़ से सरल हैं इसी वजह से सबसे पहले मैंनेअपना अनुवाद का शौक पूरा करने केलिये उनकी कविताओं को इंगलिश में अनुवादित करने की अनुमति ली है। ये अनुवाद प्रकाशित होंगे या नहीं कब तक होंगे, कितनी कवितायें करूंगी ये अभी भविष्य के गर्भ में है।

प्राण सर मैं आपके निर्देश की अवमानना नहीं कर रही,यदि ये अनुवाद प्रकाशित भी हो गये तो भी मेरे नाम के साथ अनुवादक का ठप्पा कभी नहीं जुड़ेगा। मैं एक जगह टिक कहाँ पाती हूँ। हमेशा कुछ नया करने की इच्छा होती है।अब देखिये हिंदी में लिखते लिखते अचानक इंगलिश में लिखना शुरू कर दिया, इंगलिश मेरी कमज़ोरी तो नहीं थी पर इंगलश मैने केवल इंटरमीडिएट तक ही पढी थी,इसलिये सोचा भी नहीं था कि उसमें लिख सकूंगी और अब इंगलिश की कविताओं का संकलन आ चुका है। यहाँ किसी विधा या शैली का ही ठप्पा लगने की कोई संभावना नहीं है।आदरणीय राण शर्माजी ने मुझे चेतावनी दी थी कि यदि मैं अनुवाद करने लगूंगी तो मेरे नाम पर अनुवादक का ठप्पा लग जायेगा, इसलिये जो लिखूं जिस भाषा में लिखूँ  अपना ही लिंखूँ। उनके निर्देश का पालन करके मैने फेसबुक पर अनुवादित रचनायें डालनी बन्द कर दी थी

मैं किसी प्रतिस्पर्द्धा में नहीं हूँ न इतना लिखा है कि कोई नाम बनाया हो! पर जो मिला है वह उम्मीद से कहीं ज्यादा है।वैसे भी न मेरी विधा निश्चित है ,न शैली। छँदमुक्त लिखते लिखते कुछ हाइकु लिख डाले फिर कछ नया करने की चाह में २५० दोहे लिख दिये, व्यंग्य प्रहसन, कहानी ,  संस्मरण, यात्रा संस्मरण, रिपोतार्ज,चुटकुले, व्यंजन बनाने की विधियाँ, अचार बनाने की विधिया, साहित्यिक निबंध, मनोविज्ञान की आधारभूत जानकारी से भरे लेख और अब अनुवाद भी।इगलिश और हिन्दी दोनो में लिखना इसलिये मैं तो

Jack of all trades, master of none ही हूँ परन्तु.जो कुछ लिख पाई उससे संतुष्ट हूँ।

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