मैं गुनाहगार हूं तो मुझे फांसी पर लटका दो: नरेन्द्र मोदी

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से नई दुनिया के संपादक शाहिद सिद्दीकी की बातचीत

दो सप्ताह पूर्व जब मैं हेमा मालिनी की पुत्री की शादी में भाग लेने के लिए मुंबई गया था। शाम को हम बांद्रा के एक फ्लैट में बैठे हुए थे। हमारे साथ विख्यात फिल्म निर्देशक महेश भट्ट, सलमान खान के पिता सलीम खान और उद्योगपति जफर सुरेशवाला थे। बातों बातों में गुजरात का जिक्र निकल आया। मोदी के जुल्मों सितम की गुजरात के मुसलमानों से अन्याय की बात भी निकली। सलीम खान कहने लगे शाहिद साहब आपने दुनिया भर के नेताओं का इंटरव्यू लिया है नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू क्यों नहीं लिया? मैंने पलटकर कहा मोदी कभी नई दुनिया को इंटरव्यू नहीं देगा। नई दुनिया मोदी का सबसे बड़ा विरोधी है और मैं हर टीवी चैनल पर मोदी के विरोध में बोलता हूं। महेश भट्ट बोले कि कोशिश तो कीजिए। क्योंकि हमारे सामने मोदी की राय कभी सीधी नहीं आई। नरेन्द्र मोदी भी मीडिया से दूर भागता है और मीडिया भी नरेन्द्र मोदी की बात नहीं सुनना चाहता। मैंने जफर सुरेशवाला से कहा कि कोशिश करके देख लो। अगर वे राजी हो जाएं तो मुझे कोई एतराज नहीं है। मैंने 1977 में इंदिरा गांधी का इंटरव्यू उस वक्त लिया था जब इमरजेंसी के खात्मे के बाद सब उन्हें नफरत की नजर से देखते थे। इंदिरा गांधी क्या सोचती थी? क्या चाहती थी? यह पहली बार मैंने दुनिया के सामने पेश किया था। मैंने अटल बिहारी बाजपेयी का भी इंटरव्यू लिया और आडवाणी का भी। यह तो पत्रकार का कर्तव्य है। खासतौर पर जो विरोधी हैं और जो बदनाम हैं। जिनकी राय से हम सहमत नहीं हैं। उनकी सोंच भी हमारे सामने आनी चाहिए। एक सप्ताह बाद एक दिन मुझे संजय बाउसर का टेलीफोन मिला जो मोदी के सेक्रेटरी हैं। उन्होंने मुझे मोदी का इंटरव्यू करने की दावत दी। मैंने कहा कि एक शर्त यह है कि मोदी मेरे हर सवाल का जवाब देंगे। दूसरा जो मैं चाहूंगा उनसे सवाल करूंगा। मोदी के बारे में मैं जानता हूं कि उन्होंने कई बार टीवी चैनलों को इंटरव्यू देते हुए किसी सवाल से नाराज होकर इंटरव्यू को बीच में ही खत्म कर दिया था। मैं जानता था कि मेरा इंटरव्यू बहुत कड़ा होगा। मेरे सवाल हिंदुस्तान के हर सेकुलर इंसान के जहीन में उठने वाले सवाल होंगे। क्या नरेन्द्र मोदी इन सवालों को बर्दाश्ती करेंगे। अगले दिन संजय का फोन आया कि मोदी जी राजी हैं आप कब आएंगे? मेरे दिल में कशमकश थी कि मैं मोदी से इंटरव्यू करूं या न करूं। आखिरकार मैंने फैसला किया कि अपने सवाल रखने में क्या हर्ज है? गांधीनगर में मुख्यमंत्री का निवास स्थान बहुत शांत जगह पर है। हर चीज बहुत सिस्टम से थी। मोदी ने मेरे इंटरव्यू की वीडियो फिल्म बनाने और उसे टेप करने का भी फैसला किया। ताकि मैं उनकी कही हुई बातों में कोई नमक मिर्च न लगाऊं।

आधी आस्तीन के गुलाबी कुरते में नरेन्द्र मोदी मेरे सामने बैठे थे। एक शख्स जिसे डिक्टेटर भी कहा जाता है और हिटलर भी। मुस्लिम दुश्मरन और फिरकापरस्त भी मोदी के होठों पर मुस्कुराहट थी। मगर उनकीं आंखें नहीं मुस्कुरा रही थीं। मोदी ने वायदे के अनुसार मेरे सभी सवालों के जवाब दिए मगर बहुत से सवाल वे टाल गए। अपना दामन बचा गए। मोदी बहुत मंजे हुए सियासतदान और बहुत तजुर्बेकार खिलाड़ी की तरह मेरे हर बाउंसर से बचने की कोशिश कर रहे थे। मैं मोदी के बहुत से शर्त से सहमत नहीं हूं। और न ही जवाबों से संतुष्ट हूं। फिर भी मैं उनका इंटरव्यू पेश कर रहा हूं। ताकि मोदी की सोंच से वाकिफ हो सके। अगले सप्ताह मैं मोदी के इंटरव्यू पर अपना व्यक्तिगत विश्ले।षण पेश करूंगा ताकि मोदी के सच और झूठ को बेनकाब करूं। –शाहिद सिद्दीकी

[ मूलतः यह साक्षात्कार उर्दू में नई दुनिया साप्ताहिक (30 जुलाई 2012) में प्रकाशित। हिंदी अनुवाद: भारत नीति प्रतिष्ठान के सौजन्य से। नोट: इसी चर्चित साक्षात्‍कार के चलते शाहिद सिद्दीकी को समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिया गया। (सं.)] 

>>शाहिद सिद्दीकीः नरेन्द्र मोदी जी, हिंदुस्तान का आपका तस्वर (कल्पना) क्या है? क्या आप हिंदुस्तान को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं? अगले पचास वर्षों में आप कैसा हिंदुस्तान बनाना चाहते हैं?

नरेन्द्र मोदीः हम एक खुशहाल भारत देखना चाहते हैं। एक मजबूत भारत देखना चाहते हैं। 21वीं सदी भारत की सदी हो यह हमारा स्वप्न है। जिसे साकार करना है।

>>कहा जाता है कि आप गुजरात को हिंदू राष्ट्र की प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर आप केंद्र में सत्तारूढ़ हो गए तो आप भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहेंगे। इसमें मुसलमानों और दूसरी अल्पसंख्यकों की कैसी जगह होगी?

पहली बात तो यह है कि आज गुजरात में अल्पसंख्यकों की जो जगह है वह पूरे देश की तुलना में ज्यादा अच्छी है। और दूसरे बेहतर होने की गुंजाइश इतनी ही है जितनी किसी हिंदू की। मुसलमान को भी आगे बढ़ने का उतना ही मौका मिलना चाहिए। जितना किसी हिंदू को। अगर तशब हो तो एक घर भी नहीं चल सकता। एक बहु अच्छी लगे और दूसरी न लगे तो घर में सुकून नहीं हो सकता।

>>मान लीजिए कि घर में चार बच्चे हैं। इनमें से एक किसी भी वजह से कमजोर है, पिछड़ गया है तो क्या उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए? उसे बढ़ने के लिए अधिक अवसर नहीं मिलने चाहिए?

यह तो हमारे संविधान में भी कहा है कि जो कमजोर है, पिछड़ा है, उसे अलग से सहारा मिलना चाहिए। अगर समाज इसकी जिम्मेवारी नहीं उठाएगा तो भला कौन उठाएगा? मान लीजिए कि एक बच्चा मानसिक रूप से कमजोर है इसके मां-बाप की जिंदगी तो उसे पालने में खप गई। मेरा मानना है कि अगर कमजोर बच्चा है तो उसकी जिम्मेवारी सिर्फ माता-पिता की नहीं बल्कि पूरे समाज की है। अगर हम यह कहें कि यह तुम्हारे घर में पैदा हुआ है सिर्फ तुम इसे संभाल लो तो गलत होगा।

आरक्षण

>>इस मुल्क में जितने भी सर्वे हुए हैं। चाहे वह सच्चर कमेटी हो या रंगनाथ मिश्र कमीशन। सबका कहना है कि खासतौर से मुसलमान जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह शिक्षा हो या आर्थिक बहुत से कारणों से पिछड़ गए हैं। आपके विचार में उन्हें आगे लाने के लिए, उनका हक दिलाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? क्या उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए? जबकि 50 फिसदी नौकरियां आरक्षण में चली गई हैं। बाकी 50 प्रतिशत में मुसलमान मुकाबले में पीछे रह जाता है। उसके लिए सभी दरवाजे बंद हैं। उसको आगे लाने के लिए क्या करना चाहिए?

ऐसा नहीं है। गुजरात में ओबीसी में 36 मुस्लिम बिरादरियां हैं जो पिछड़ों में आती हैं। उन्हें वे सभी सुविधाएं मिलती हैं जो दूसरे पिछड़ों को मिलती हैं। मैं भी पिछड़ी जाती से हूं। हमें रास्ता ढूंढना होगा कि 3 सबको इसमें हिस्सेदारी मिले। जेसे आज स्कूल हैं, टीचर हैं। इसके बावजूद लोग अनपढ़ हैं। इसका हल हमने गुजरात में ढूंढा। हमने यह अभियान चलाया कि शत प्रतिशत लड़कियों को शिक्षा मिले। जून के महीने में जब बहुत गर्मी होती है तो सारे अधिकारी, सारे मंत्री, सारी सरकार गांव-गांव और घर-घर जाते हैं। ये देखते हैं कि क्या लड़कियां पढ़ रही हैं आज 99 प्रतिशत लड़कियां स्कूलों में हैं। इनमें सभी धर्मों की लड़कियां हैं। पहले ड्रॉप आउट 40 प्रतिशत था। आज वह मुश्किल से 2 प्रतिशत ही रह गया है। अब इसका फायदा किसको मिल रहा है? मेरी हिंदू मुसलमान की फिलॉस्फी नहीं है। मैं तो सिर्फ यह देखता हूं कि गुजरात में रहने वाले हर बच्चे को हक मिले। मेरी दस साल की कोशिशों में सबसे खुशी इस बात की है कि मैं किसी हिंदू स्कूल में अभिभावकों की बैठक बुलाता हूं तो उसमें साठ प्रतिशत आते हैं। जबकि मुसलमान क्षेत्रों की बैठकों में शत-प्रतिशत लोग आते हैं।

मुसलमान ज्यादा जाग रहे हैं

>>आपने मुसलमानों के इलाकों के स्कूलों में जाकर ऐसी मिटिंगें की है।

बिल्कुल, ढेर सारी। बल्कि मेरा तजुर्बा यह है कि आज शिक्षा के बारे में मुसलमान ज्यादा जागे हुए हैं। अभी मैं आपको बताऊं कि दान्ता के पास एक गांव में मैं गया। वह 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी का था। वहां तीन बच्चियों ने मुझसे कहा कि उन्हें मुझसे अलग से बात करनी है। मुझे नहीं पता था कि वे किस धर्म से हैं। बच्चियां सातवीं-आठवीं कक्षा की थीं। मैंने जब उनसे अलग बात की तो यह पता चला कि वे तीनों मुसलमान हैं। उनका कहना था कि वे आगे पढ़ना चाहती हैं मगर उनके माता-पिता इसके खिलाफ हैं। उनकी इस बात ने मेरे दिल को छुआ कि मेरे राज्य में तीन लड़कियां ऐसी हैं जो आगे कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए मुख्यमंत्री से मदद मांगने से हिचक नहीं रही हैं। मैंने इनके मां-बाप को कहलवाया कि वे लड़कियों की बात मानें। यह दो साल पहले की बात है। दोनों लड़कियां पढ़ रही हैं।

>>आप ठीक कहते हैं कि पिछड़ों में मुसलमानों को हिस्सा तो दिया गया मगर मंडल के आने के बाद से पिछले 20 वर्षों में यह बात सामने आई हैं कि मुसलमानों को उनका हक नहीं मिलता। मिसाल के तौर पर दस नौकरियां हैं और अप्लाई करनेवाले पांच सौ हैं। इनमें 50 प्रतिशत मुसलमानों ने भी अप्लाई किया है। मगर सभी नौकरियां हिंदू पिछड़ों को दी जाती हैं। मुसलमानों को कुछ नहीं मिलता। इसलिए सच्चर कमेटी ने इस बात पर जोर दिया कि पिछड़ों को आरक्षण में से मुसलमानों का अलग हिस्सा होना चाहिए।

भारत के संविधान निर्माताओं ने इस बात पर बहुत गहराई से विचार किया था और यह फैसला किया था कि धर्म के आधार पर कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। यह खतरनाक होगा। उस वक्त तो कोई आरएसएस वाले या बजरंग दल वाले नहीं थे।

>>मुस्लिम लीडरों ने और यहां तक मौलाना आजाद तक ने धर्म के आधार पर आरक्षण का विरोध किया था। पिछले 64 वर्षों के अनुभव से हमें भी तो सिखना चाहिए। संविधान में हमने बहुत से संशोधन किए हैं। इसलिए अब 64 वर्ष बाद यदि हम मुसलमानों को उनका पिछड़ापन दूर करने के लिए आरक्षण देते हैं तो उसमें आपको क्या परेशानी है।

नहीं, नहीं, वह यह बदलाव नहीं है। यह एक बुनियादी बात है। संविधान के बुनियादी ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। मगर मैं दूसरी बात कहता हूं कि जिन राज्यों को आप प्रगतिशील और सेकुलर कहते हैं वहां मुसलमान नौकरियों में दो प्रतिशत हैं, चार प्रतिशत हैं। गुजरात में मुसलमानों का आबादी में अनुपात 9 प्रतिशत है। मगर नौकरियों में 12 से तेरह प्रतिशत हैं। बंगाल में 25 प्रतिशत मुसलमान हैं। मगर नौकरियों में 2 प्रतिशत हैं। यह मैं नहीं कह रहा। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कह रही है।

>>गुजरात में तो मुसलमान पहले से ही आगे था। आपने कोई ऐसा कारनामा नहीं दिखाया है। मुसलमान बिजनेस में भी आगे था और तालीम में भी आगे था।

चलिए आपकी बात मान लें। पिछले 20 सालों से गुजरात में बीजेपी की हुकूमत है। अगर हम उन्हें बर्बाद कर रहे होते तो क्या आज भी इतने ही आगे होते। अगर हमारा रूख मुस्लिम विरोधी था तो वे क्या 20 सालों में पिछड़ न जाते? सच्चर कमेटी का सर्वे उस वक्त हुआ जब मेरी सरकार थी। गुजरात में 85 से 95 तक सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद थी। भर्ती तो मेरे जमाने में हुई। कुल छह लाख सरकारी नौकरियों में से तीन लाख मेरे समय में भर्ती किए गए।

>>आपके समय में जो भर्ती हुई उसमें 10 से 12 प्रतिशत मुसलमान थे।

नहीं मैंने हिसाब नहीं लगाया है। यह मेरी फिलॉसफी नहीं है। न हीं मैं हिंदू मुसलमान के बुनियाद पर हिसाब लगाऊँगा। मेरा काम है कि मेरिट के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सबको मौका दिया जाए। अगर वे मुस्लिम हैं तो भी मिले। अगर वे हिंदू और पारसी हैं तो भी उन्हें मिलेगा। आप सच्चर कमेटी की हर बात पर विष्वास करते हैं। फिर सच्चर कमेटी ने मेरे वक्त की जो रिपोर्ट दी है। उसपर भरोसा क्यों नहीं करते?

दंगों में क्या हुआ?

>>अब हम गुजरात दंगों की तरफ आएं। इस दौरान क्या हुआ। गोधरा में जो लोग जले उनकी लाशों को अहमदाबाद क्यों लाया गया। क्या आपको अंदाजा नहीं था कि इसके नतीजे क्या होंगे?

इस सवाल का जवाब विस्तृत रूप से मैंने एसआईटी को भी दिया है और सप्रीम कोर्ट को भी कोई भी लाश होगी तो उसे वापस तो करना ही होगा। जहां सबसे ज्यादा तनाव है वहां कोई लाश ले जा सकता है? तनाव गोधरा में था। इसलिए वहां से जली हुई लाशों को हटाना जरूरी था। ये पैसेंजर कहां जा रहे थे? यह ट्रेन अहमदाबाद जा रही थी। इन लाशों को लेने वाले सब अहमदाबाद में ही थे। आपके पास लाशों को वापस करने का क्या तरीका है?

>>आप किसी अस्पताल में लाकर खामोशी से उन्हें रिश्ते दारों के हवाले कर देते। उन्हें घुमाया क्यों गया?

आप सच्चाई सुन लीजिए। इतनी लाशों को रखने के लिए गोधरा में जगह नहीं थी। लाशों को वहां से हटाना था। प्रशासन ने सोचा कि रात के अंधेरे में लाशें हटाई जाएं। इसीलिए उन्हें उसी रात वहां से हटाया गया। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में ला सकते थे। मगर वह भीड़भाड़ वाला इलाका था। तनाव पैदा होता। यह प्रशासन की समझदारी थी कि सभी लाशों को शोला के अस्पताल में लाया गया। शोला बिल्कुल उस वक्त अहमदाबाद से बाहर था, जंगल था। शोला से कोई जुलूस नहीं निकला। लाशें खामोशी से रिश्ते दारों के हवाले कर दी गईं। 13 या 14 ऐसी लाशें थीं जिनकी पहचान नहीं हो सकीं। उनका अंतिम संस्कार भी अस्पताल के पीछे ही कर दिया गया।

दंगे क्यों नहीं रूके

>>इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। लोग मारे जा रहे थे। घर जलाए जा रहे थे। आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आपको तो खबर थी कि क्या हो रहा है। अहमदाबाद में क्या हो रहा है। आपने इस खून-खराबे को रोकने के लिए क्या कदम उठाए?

इसके लिए सबसे पहले काम हम लोगों ने यह किया कि शांति और अमन बनाए रखने की अपील की। यह मैने गोधरा से ही किया। इसके बाद अहमदाबाद आकर शाम को रेडियो टीवी से अपील की। मैंने प्रशासन से कहा कि जितनी पुलिस है सबको लगा दो। हालांकि यह बहुत बड़ा वाकया था। पहले ऐसा नहीं हुआ। एक वह वक्त था जब पहले कोई वाकया होता था तो दूसरे दिन अखबार में खबर आती थी। फोटो आने में भी दो दिन लग जाते थे। इतने में आवश्यसक कदम उठाने का मौका मिल जाता था। फोर्स भेजने का भी मौका मिल जाता था। आज टीवी पर घटना के चंद मिनटो बाद खबर आ जाती हैं। तस्वीरें दिखानी शुरू हो जाती हैं। प्रशासन को आज टीवी की स्पीड से मुकाबला करना पड़ता है। अहमदाबाद से बड़ौदा तो फोन चंद मिनटों में हो जाता है। मगर पुलिस फोर्स भेजनी हो तो कम से कम दो घंटे लगेंगे। पुलिस फोर्स टीवी न्यूज की स्पीड की मुकाबला नहीं कर सकती। दूसरा मैं देश के अन्य भागों में हुए दंगों से तुलना करूं। मैं इस बात में विश्वाैस नहीं करता कि 1984 में दिल्ली में क्या हुआ? इसके लिए हमारे यहां हुआ तो क्या बात है? दंगा दंगा है। 1984 के दंगे में एक भी जगह गोली नहीं चली और न लाठी चार्ज हुआ। अगर लाठी चार्ज हुआ तो सिर्फ एक जगह हुआ। जहां इंदिरा गांधी की डेड बॉडी रखी हुई थी। वहां इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि उसको कंट्रोल करने के लिए लाठी चार्ज हुआ। लेकिन दंगा रोकने के लिए पुलिस का इस्तेमाल नहीं हुआ। गुजरात में 27 फरवरी को गुजरात में कितनी जगह गोली चली, लाठीचार्ज हुआ, कफ्र्यू लगाया गया। कार्रवाई हुई।

हिंदुओं को खुली छूट

>>लेकिन आपकी पार्टी के लोग आपकी प्रशासन के अफ्सर यह कहते हैं कि आपने कहा कि हिंदुओं को 48 घंटे गुस्सा निकालने दो। हरेन पांड्या और संजीव भट्ट ने यह आरोप लगाया। आप इसके बारे में क्या कहते हैं?

आपको किसी पर तो भरोसा करना होगा। मुझ पर नहीं तो सुर्पीम कोर्ट पर करें। सुर्पीम कोर्ट ने जांच करवाई। इसकी रिपोर्ट में क्या कहा गया। मैंने क्या कार्रवाई की। इसके बारे में मैं आपको पूरे तथ्य पेश कर रहा हूं। कहां-कहां गोली चली? कितने लोग मारे गए। आज तो मीडिया जागा हुआ है। कोई बात छुपती नहीं है। कोई झूठ चलता नहीं है। मैं एक बहुत महत्वपूर्ण बात बताता हूं। मगर छापना मत (इसके बाद मोदी नेुौज के बुलाने के बारे में कुछ बातें कहीं मगर उन्हें प्रकाशित करने से मना कर दिया) एक और झूठ है। 27 फरवरी को गोधरा का वाकया हुआ। 28 को दंगे भड़के। 1 मार्च को फौज बुलाई गई। मीडिया के कुछ लोग कहते हैं कि तीन दिन तकुौज नहीं बुलाई। वे यह भूल जाते हैं कि फरवरी में 28 दिन ही होते हैं। यानी हमने अगले ही दिन अहमदाबाद को फौज के हवाले कर दिया था। गाली देने से पहले तो सोच लीजिए।

दंगों की योजना पहले से ही थी

>>मगर दंगे तो ऐसे हुए जैसे उनकी पहले से तेयारी थी। मुसलमानों के घर और दूकानों को चुन-चुनकर जलाया गया। जैसे पहले से ही निशान लगाए गए थे। पहले से ही प्लान तैयार था। मुसलमानों की सूचियां बनी हुई थीं।

यह सब झूठ है। प्रॉपोगंडा है। उस वक्त की खबरें देखिए कि कितने मुसलमानों को बचाया गया है। अगर हम बचाने की कोषिश न करते तो कौन बचता? क्या-क्या कार्रवाई हुई इसका विवरण एसआईटी के पास है।

>>हिंदुस्तान के मुसलमानों के दिल में शक है, जख्म है। इसलिए लोग सच्चाई जानना चाहते हैं कि आपके मिनिस्टर पुलिस कंट्रोल रूम में मौजूद थे।

झूठ, सरासर झूठ। तमाम सच्चाईयां एसआईटी के पास हैं। सुर्पीम कोर्ट ने जांच की है। उन्होंने क्या पाया इसका इंतजार करिए। मेरे कहने न कहने सेुर्क नहीं पड़ता।

>>अहमदाबाद में जो दंगे हो रहे थे इसकी आपको पहले से ही खबर थी। क्या आपने शहर का राउंड लिया? रिफ्यूजी कैंपों में गए?

मैं सब जगह गया। सबकी फिक्र की। यह प्रॉपोगंडा फैलाया जाता है कि रिफ्यूजी कैंप सरकार ने नहीं चलाए। हमारे यहां गुजरात में सामाजिक ढांचा बहुत मजबूत है। जब भूचाल आया था तो भी हमने कैंप नहीं लगाए थे। हमने सारा इंतजाम अनाज, राशन आदि सामाजिक संगठनों के हवाले कर दिया था। इन शिविरों को चलाने वाले मुसलमान हो सकते हैं। मगर उनकी सारी जरूरतें सरकार पूरी कर रही थी। इसका पूरा रिकॉर्ड है। कहां क्या दिया गया। कितना अनाज और दूसरी चीजें दी गईं? इतना ही नहीं दसवीं के इम्तेहान थे। इसका पूरा इंतजाम हमने किए। मुसलमान बच्चों ने इम्तेहान दिए और पास हुए। इसपर भी लोग अदालत गए मगर गलत साबित हुए। मगर कुछ लोगों ने और मीडिया ने मेरे खिलाफ झूठ फैलाने का ठेका ले रखा है।

वाजपेयी ने क्या कहा?

>>उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने आपसे क्या कहा? उन्होंने आपसे कहा कि आपने राजधर्म नहीं निभाया।

यह झूठ चलाया जाता है। अटल जी ने जिस भाषण में कहा कि राजधर्म निभाना चाहिए। उसी में उन्होंने आगे कहा था कि मुझे मालूम है कि गुजरात में राजधर्म निभाया जाता है। इसी का अगला जुमला है। मगर मीडिया उसे गायब कर देता है। हालांकि उसका वीडिया रिकॉर्ड मौजूद है।

>>आज दस वर्ष दंगे को हो गए हैं। आपसे अटल जी ने क्या कहा? दंगा रोकने के लिए क्या कदम उठाए? आपसे प्रधानमंत्री की क्या बात हुई? कुछ तो बताइए।

उन्होंने कहा कि हम मिलजुलकर बेहतर करने की कोशिश करें और हालात पर काबू पाएं।

फांसी पर लटका दो

>>1984 की दंगों की राजीव गांधी ने माफी मांगी, एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार के खिलाफ कार्रवाई हुई। उनका राजनीतिक केरियर खत्म हो गया। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने भी माफी मांगी। फिर आखिर आपने 2002 के गुजरात दंगों पर माफी क्यों नहीं मांगी? अफसोस का इजहार क्यों नहीं किया? जबकि यह आपकी जिम्मेवारी थी।

पहली बात उस वक्त मैंने क्या बयान दिए थे। उन्हें देख लीजिए। उस गर्मा-गर्मी के माहौल में मोदी ने क्या कहा? 2004 में मैंने एक इंटरव्यू में कहा था मुझे क्यों माफ करना चाहिए? अगर मेरी सरकार ने यह दंगे करवाए। तो उसे बीच चैराहे पर फांसी लगनी चाहिए। और ऐसी फांसी होनी चाहिए कि अगले सौ साल तक किसी शासक को ऐसा पाप करने की हिम्मत न हो। जो लोग माफ करने की बात कर रहे हें वे पाप को बढ़ावा दे रहे हैं। अगर मोदी ने गुनाह किया है तो उसेुांसी पर लटका दो। मगर अगर राजनीतिक कारणों से मोदी को गाली देनी है तो इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है।

>>जो हुआ उसके लिए आपके दिल में कोई दुख है। हजारों लोग मरे इसके लिए आपको कोई अफसोस है? मैं एक अखबार का एडिटर हूं। अगर उसमें कोई गलत बात छपती है तो मैं माफी मांगता हूं।

आज माफी मांगने का क्या मतलब है। मैंने तो उसी वक्त जिम्मेवारी ली। अफसोस किया माफी मांगी। देखिए 2002 में दंगे के बाद क्या कहा? इसकी एक कॉपी मुझे उन्होंने दी। आप यह तो लीखिए कि हम दस सालों से मोदी के साथ अन्याय कर रहे हैं। हमें माफी तो मोदी से मांगनी चाहिए।

इंसाफ क्यों नहीं मिला?

>>चलिए दंगे हो गए। मगर इसके बाद क्या हुआ? मुसलमानों को आजतक इंसाफ नहीं मिला। आपके प्रशासन ने तो तभी सभी कातिलों को बरी कर दिया। जब तक सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी बनाकर आप पर सजा देने के लिए मजबूर नहीं किया। आपने कोई कदम नहीं उठाया।

आप झूठे प्रचार का शिकार हो गए हैं।

>>हम भी झूठ के शिकार हैं। पूरी दुनिया शिकार है।

एक स्वार्थी ग्रुप है वह शिकार है। जिस एसआईटी की आप बात कर रहे हैं उसने तो छह-सात मुकदमों की जांच की है। आपकी जानकारी के लिए गुजरात में तो हजारों एफआईआर दर्ज हुए। हजारों गिरफ्तार हुए। आज तक देश में जितने दंगे हुए। 1984 के दंगों में एक भी आदमी को सजा नहीं हुई। जबकि हमारे यहां 50 केसों में सजाएं हो चुकी हैं। आप जिन दो केसों की बात करते हैं वह गुजरात से बाहर ले गए। इनकी जांच किसने की? गुजरात पुलिस ने, गोवा कौन लाया? गुजरात पुलिस। चार्जशीट किसने बनाई? गुजरात पुलिस ने। हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। इस मामले को गुजरात से बाहर ले गए। वही कागज, वही गवाह, वही गुजरात पुलिस की जांच। महाराष्ट्र की अदालत ने सजा दी। कोई नई जांच तो नहीं की। आपने न्यायालय पर अविष्वास किया है। गुजरात पुलिस पर नहीं। बल्किस बानो केस की जांच गुजरात पुलिस ने की और बाद में उसे सीबीआई के हवाले कर दिया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गुजरात पुलिस ने इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया था। उन्हें सजा हुई। सीबीआई ने जिन्हें गिरफ्तार किया था वे निर्दोष सिद्ध होकर बरी हुए। एक पुलिस वाले ने सीबीआई को कागज देने में देर की तो उसे सजा हुई।

>>पिछले दस सालों में गुजरात में मुसलमानों के फर्जी एनकाउंटर हुए। इनके केस चल रहे हैं। आपके पुलिस अधिकारी जेल में है। आपका प्रशासन….

मोदी ने बात काटते हुए कहा सुन लीजिए..सुन लीजिए..मायावती जी ने चुनाव से पहले अपने विज्ञापन में लिखा है कि हमने 393 एनकाउंटर करके शांति स्थापित की है। मेरे यहां तो सिर्फ 12 एनकाउंटर ही हुए। इनके मुकदमें चल रहे हैं। अभी किसी को सजा नहीं हुई है। ह्यूमन राइट्स कमीशन ने कहा है कि देश में जो एनकाउंटर हुए उनमें 400 फर्जी थे। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगी है कि इन सबकी जांच होनी चाहिए। ऐसा क्यों नहीं हो रहा है। सिर्फ गुजरात के एनकाउंटरों की जांच हो रही है। देश के बाकी हिस्सों में होनेवाले एनकाउंटरों की जांच क्यों नहीं?

>>ऐसा क्यों हो रहा है?

क्योंकि गुजरात को निशाना बनाया गया है। मुंबई में एनकाउंटर हो रहे हैं। मगर उनकी जांच नहीं हो रही। हर पार्टी गुजरात को बदनाम करने लगी है। वह ऐसा कर रही है।

>>क्या कांग्रेस ऐसा कर रही है?

जो भी पार्टी गुजरात को बदनाम करने में लगी है वह ऐसा कर रही है। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता।

मोदी तानाशाह है

>>मगर आपकी अपनी पार्टी के लोग विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, आरएसएस के लोग यह इल्जाम लगाते हैं कि आप एक डिक्टेटर हैं। लोगों की जुबान बंद कर देते हैं। वे तो आपके विरोधी नहीं। आपके अपनी पार्टी के हैं।

मेरे पास कोई ऐसी जानकारी नहीं मगर फिर भी कोई ऐसा कहता है तो यह लोकतंत्र है।

मोदी प्रधानमंत्री

>>कहा जाता है कि आप देश का प्रधानमंत्री बनने की तेयारी कर रहे हैं। आप गुजरात से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति की जिम्मेवारी संभालना चाहते हैं। अगर आप देश के प्रधानमंत्री बनें तो आपके क्या पांच महत्वपूर्ण काम होंगे।

देखिए। मैं बुनियादी तौर पर संगठन का व्यक्ति हूं। कुछ खास परिस्थितियों में मैं मुख्यमंत्री बन गया। जिंदगी में मैं किसी स्कूल के मॉनिटर का भी चुनाव नहीं लड़ा था। मैं कभी किसी का एलेक्षन एजेंट भी नहीं बना। मैं तो इस दुनिया का इंसान ही नहीं हूं। ना ही इस दुनिया से मेरा कुछ लेना देना रहा। आज मेरी मंजिल है छह करोड़ गुजराती। उनकी भलाई, उनका सुख। मैं अगर गुजरात में अच्छा काम करता हूं तो यूपी और बिहार के दस लोगों की नौकरी लगती है। मैं हिंदुस्तान की सेवा गुजरात के विकास द्वारा करूंगा। गुजरात में अगर नमक अच्छा पैदा होगा तो सारा देश गुजरात का नमक खाएगा।

मैंने गुजरात का नमक खाया है और सारे देश को गुजरात का नमक खिलाता हूं।

मुसलमानों के लिए क्या किया?

>>आखिर आपने गुजरात के मुसलमानों की भलाई के लिए कोई काम किया?

मैं हिंदू मुसलमान की सोच नहीं रखता। मैंने तो यह देखा है कि जो पिछड़ा हुआ है उसे आगे बढ़ाया जाए। समुंदर के तटीय क्षेत्र में मुसलमान ज्यादा हैं। हमने 1500 करोड़ का पैकेज दिया है। वहां हमने आईआईटी खोले हैं। स्कूल खोले हैं। मछुआरों के बच्चों को विमान चालन के बारे में बताया है। मछुआरों को छह महीने रोटी मिलती है। मैंने वहां पर सीवीड उगाने का काम किया है। ताकि मछुआरों को रोजी मिल सके।

मोती की पतंग

>>अहमदाबाद में बहुत से इलाके दलितों और मुसलमानों के ऐसे हैं जो पिछड़े हैं। वहां बैंक नहीं हैं। अस्पताल नहीं हैं।

यहां शहरी समृद्धि योजना है। इसके तहत काम हो रहा है। कंप्यूटर की षिक्षा दी जा रही है। बैंक नहीं हैं। यह काम केद्र का है। आपकी प्रिय कांग्रेस सरकार का काम है। गुजरात में पतंगबाजी बहुत बड़ा उद्योग है। इसे 99 प्रतिशत मुसलमान चलाते हैं। मैंने इसका गहराई से अध्ययन किया है। मैं बोलना शुरू करूं तो आप भी पतंगबाजी पर मुझे पीएचडी की डिग्री दे देंगे। अहमदाबाद में जो पतंग बनती थी। वह 34 जगह जाती थीं। कही बांस बनता था तो कहीं गुंद, कही कागज। इससे काफी महंगा पड़ता था। मैंने रिसर्च करवाई। पहले यह पतंग उद्योग 8-9 करोड़ का था आज 50 करोड़ का है। पहले पतंग का कागज तीन रंगों का अलग-अलग लगता है। मैंने कागज वालों से कहा कि वो एक ही कागज का तीन रंग का छाप दें। पतंग का बांस असम से आता है। मैंने रिसर्च करवाया अब गुजरात में ही बांस पैदा हो रहे हैं। आज हम सबसे ज्यादा चीनी वाला गणना पैदा कर रहे हैं। यह फायदा किसे मिला? आप कहेंगे मुसलमान को मिला। मैं कहूंगा मेरे गुजरातियों को मिला।

मोदी का सेकुलरिज्म

>>मोदी जी, क्या आप हिंदुस्तान को सेकुलर मुल्क बनाए रखना चाहेंगे। क्या आपका सेकुलरवाद में विश्‍वास है?

जो लोग हिंदुस्तान को सेकुलरिज्म सिखा रहे हैं। वे अब देश की तौहीन कर रहे हैं। यह देश शुरू से ही सेकुलर है। भारत अफगानिस्तान का हिस्सा था तब भी वह सेकुलर था। पाकिस्तान में भी जब तक हिंदू थे। वह सेकुलर था। बांग्लादेश सेकुलर था। आप यह देखिए कि कौन सी पार्टी है जिसने देश से सेकुलरिज्म को खत्म किया?

>>आप एक शब्द इस्तेमाल करते हैं सुडो सेकुलरिज्म। इसका क्या मतलब है?

सुडो सेकुलर वे होते हैं जो नाम के सेकुलर होते हैं काम के नहीं। जो उपदेश बड़े-बड़े देते हैं काम फिरकापरस्ती के करते हैं। अब हमारे यहां भाजपा के एक लीडर थे। शंकर सिंह वाघेला। आज वे कांग्रेस के बहुत बड़े सेकुलर लीडर बन गए हैं। आप में से कोई उनसे यह पूछे कि जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया तो उस वक्त वे कहां थे? वे किस स्टेज पर खड़े हुए थे? अब वे कांग्रेस में शामिल हो गए तो सेकुलर हो गए। उनके सब पाप धूल गए। वे मुसलमानों से कहते हैं कि मुझे वोट दो। क्योंकि मैं मोदी से लड़ रहा हूं। हम इसको सेकुलरिज्म कहते हैं।

अखंड भारत

>>क्या आप फिर भारत को अखंड भारत बनाना चाहते हैं? क्या आपका यह स्वप्न है?

मेरा स्वप्न है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक रहे, नेक रहें। सब सुखी रहें। सबका कल्याण हो। जो साम्राज्यवादी मनोवृत्ति के लोग हैं वे पाकिस्तान में अखंड भारत का आंदोलन चला रहे हैं। पाकिस्तान में आदोलन चल रहा है कि पाकिस्तान, हिंदुस्तान और बांग्लादेश एक हो जाएं ताकि यहां पर मुसलमान बहुसंख्यक हो जाएं। आजकल आपलोगों के भी मुंह में पानी आ रहा है। इसलिए कि आप अखंड भारत के नाम पर मुस्लिम बहुल देश बनाना चाहते हैं। सब मुसलमानों को इकट्ठा करके हिंदुस्तानी मुसलमानों को आगे लाकर तनाव पैदा किया जाए। आपका भी यह सपना होगा।

सिद्दीकीः मेरा सपना तो संयुक्त हिंदुस्तान का था। मेरे पिता ने देश के विभाजन का विरोध किया था। पाकिस्तान बनने का विरोध किया था। हमारा स्वप्न तो पूरे उपमहाद्वीप में शांति स्थापित करने का है।

हिंदू आतंकवाद

>>गत दिनों आतंकवाद बढ़ा है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता मगर आज कुछ हिंदू भी आतंकवादी बने हैं तो इसका मुकाबला करने के लिए क्या कदम उठाएं।

सख्त कानून बनाया जाए।

>>आपने तो सख्त कानून पोटा के तहत सिर्फ मुसलमानों को पकड़ा है।

हमने जिन्हें गिरफ्तार किया। इनके मामले सुप्रीम कोर्ट तक गए। मगर अदालत में एक भी केस गलत नहीं पाया। देश के दूसरे हिस्से में पोटा का गलत इस्तेमाल हुआ हो। मगर गुजरात में नहीं हुआ। हमारा पोटा लगाया हुआ एक भी केस झूठा नहीं निकला। जब यहां कांग्रेस की सरकार थी। इसमें हजारों लोग टाडा में गिरफ्तार हुए। उस वक्त भाजपा के अध्यक्ष मक्रांत देसाई थे। उन्होंने टाडा के खिलाफ कांफ्रेंस की। उन्होंने दुनिया को दिखाया कि जिनलोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें 80 प्रतिशत मुसलमान थे।

>>सीमी पर तो पाबंदी तो लगा दी गई। मगर आपलोग अभिनव भारत पर पाबंदी लगाने की मांग क्यों नहीं करते?

अभी तक अभिनव भारत की संगठन की कोई तस्वीर सामने नहीं आई। इंडियन मुजाहिदीन की तस्वीर भी सामने नहीं आई। ये हैं क्या? उन्हे कौन चला रहा है? सरकार बताए। पहले पता लगे। तभी तो आप संगठन पर पाबंदी लगाएंगे। सिर्फ गुब्बारे छोड़ने से क्या फायदा। कांग्रेस कभी अभिनव भारत का गुब्बारा छोड़ती है और कभी इंडियन मुजाहिद्दीन का मगर सरकार के सामने न पूरी सच्चाई रखती है ना पूरी तस्वीर

>>गुजरात के चुनाव नजदीक हैं। आप क्या समझते हैं आपके लिए सबसे बड़ा चैलेंज क्या है?

हम खुद ही अपने लिए सबसे बड़ा चैलेंज हैं। क्योंकि हमने स्तर इतना बुलंद कर लिया है कि लोग हमारे स्तर पर हमें नापते हैं। मोदी 16 घंटे काम करता है तो लोग कहते हैं कि अठारह घंटे क्यों नहीं? लोगों की आकांक्षाएं मोदी से बहुत ज्यादा है। इसलिए हमें अपने रिकॉर्ड खुद ही तोड़ने पड़ते हैं।

मोदी के खिलाफ बगावत

>>आज आपकी पार्टी के अंदर बगावत है। आपके खिलाफ चैलेंज है।

यह मैंने जनता पर छोड़ दिया है। वह फैसला करे। मैंने पिछले दस वर्षों में हर चुनाव जीता है। मुझे उम्मीद है कि हम यह भी जीतेंगे।

>>आप मुसलमानों को कोई संदेश देना चाहेंगे।

भाई मैं बहुत छोटा इंसान हूं। मुझे किसी को पैगाम देने का हक नहीं है। खादिम हूं। खिदमत करता रहूंगा। मैं अपने मुसलमान भाईयों से कहना चाहूंगा कि वे किसी के लिए सिर्फ एक वोट बनकर न रहें। आज हिंदुस्तान की राजनीति में मुसलमान को सिर्फ वोट बना दिया गया है। मुसलमान स्वप्न देखें। उनके स्वप्न उनके बच्चों के स्वप्न पूरे हों। वे वोटर रहें और अपने वोट का खुलकर इस्तेमाल करें। मगर उन्हें इसके आगे एक इंसान एक भारतीय के रूप में देखा जाए। उनकी तकलीफों को समझा जाए। मैं अगर उनके किसी काम आ सकता हूं तो आउंगा। मगर उन्हें भी खुले दिमाग से देखना होगा। सोचना होगा।

सिद्दीकीः मेरे पास और भी अभी बहुत सारे सवाल थे। मगर इंटरव्यू चलते डेढ़ घंटा हो चुका था। मोदी को भी जाना था और मुझे भी फ्लाइट पकड़नी थी। इसलिए बहुत से सवाल रह गए। मगर फिर भी मैं ज्यादातर सवाल पूछने में सफल रहा।

2 COMMENTS

  1. बड़ा आश्चर्य होता कि आप जैसे बुद्धिजीवी लोग, घोर सांप्रदायिक और हिंसा वादी नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं.
    जनमत मिल जाने से किसी का पाप नहीं धुल जाता, अगर ऐसा होता तो किसी मंत्री पर कोई केस न चलाया जाता. २००२ की हिंसा नरेंद्र मोदी ही पर नहीं बल्कि भाजपा पर भी कलंक है लेकिन ये लोग इस कलंक को अपनी शोभा मानते है. इस पार्टी का नाम भारतीय जनता पार्टी न होकर भारतीय दंगा पार्टी होना चाहिए, क्योंकि ये लोग समय समय पर पूरे भारत में सुनियोजित दंगे कराते रहते हैं. इसमें नरेंद्र मोदी का ही दोष नहीं है बल्कि उनकी पार्टी ही ऐसी है.
    गुजरात के दंगो से पूरा देश कलंकित हुआ, अटल बिहारी ने खुद इसे कलंक बताया और कहा अब किस मुंह से विदेश यात्रा पर जाऊंगा. सब जानते है २००२ के बाद अमेरिका ने आपके विकास पुरुष को वीजा नहीं दिया.
    जो देश संसार की बड़ी से बड़ी ताकत से टकराने की हैसियत रखता हो, क्या वो दंगा करने वालों को नहीं रोक सकता? अगर रोक सकता है तो क्यों नहीं रोका?
    नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा कसूर यही है.
    हजारों लोग मारे गए और इसका जिम्मेदार कोई नहीं?
    देखो गे तो मिल जाएँगी हर मोड पे लाशें
    ढूँढो गे शहर में, कोई कातिल न मिले गा.
    आखिर इस धर्म निपेक्ष राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता कैसे कायम रहेगी अगर उसका प्रधानमंत्री एक साम्प्रदयिक आदमी होगा?
    एक ऐसा आदमी जो सांप्रदायिक संगठन संघ से सम्बन्ध रखता हो, क्या उसके शासन में दूसरे धर्म के लोग सुरक्षित रहेंगे?
    चुनाव आयोग को भाजपा की मान्यता ही रद कर देनी चाहिए क्योंकि ये एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्म के नाम पर राजनीती करते है. धर्म के नाम पर पक्षपात करते हैं और धर्म के नाम पर हिंसा फैलाते हैं.

  2. सेकुलरिज्म पर प्रश्न के उत्तर में ये छपा है की जब भारत अफगानिस्तान का हिस्सा था तब वो सेकुलर था. ये मिस्प्रिंट है. होना चाहिए था ‘ जब अफगानिस्तान भारत का हिस्सा था…’एक बात मोदी जी ने नहीं कही. आजाद हिंदुस्तान में जतने भी हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए थे वो, गुजरात को छोड़कर, सभी कांग्रेस अथवा तथाकथित सेकुलरिस्टों के राज में हुए थे और उनमे हजारों हिन्दू-मुस्लमान मारे गए थे.लेकिन मुस्लमान ज्यादा मारे गए थे. १९६९ में महात्मा गाँधी जन्म शताब्दी वर्ष में गुजरात में भयंकर दंगे हुए थे जिनमे सीमान्त गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान घिर गए थे और उन्हें सुरक्षित दिल्ली ले जाने के लिए इंदिराजी को दिल्ली से विशेष रेस्क्यू टीम भेजनी पड़ी थी. उन दंगों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार २६०० लोग मारे गए थे जबकि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार १५००० लोग मारे गए थे. सर्कार कांग्रेसी हितेंद्र देसाई की थी किसी ने उन पर कोई उंगली क्यों नहीं उठाई?१९७० महाराष्ट्र में वी.पी. नाईक की सर्कार के दौरान भरी दंगे हुए और सेंकडों लोग मारे गए लेकिन किसी ने वी पी नाईक के ऊपर आरोप नहीं लगाये जबकि मरने वालों में अधिकांश मुस्लमान थे. १९८० में मुरादाबाद में ईद की नमाज में सूअर किसने छुड़वाए थे? वी पी सिंह की सर्कार थी. किसी ने उनसे कोई सवाल किया? १९८० में ही अलीगढ और इलाहाबाद में दंगे हुए किसी ने वी पी सिंह से एक भी सवाल नहीं किया. इंदिराजी केंद्र में प्रधानमंत्री थीं.१९८४ में हजारों बेगुनाह सिखों को दिल्ली, गाज़ियाबाद, देहरादून, कानपूर, इन्दोर आदि स्थानों पर बेरहमी से सरे आम कांग्रेसियों ने क़त्ल कर दिय लेकिन नेताजी राजीव गाँधी ने एक लाईन का जवाब दे दिया “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है”. हो गयी छुट्टी. १९८७ में मेरठ में तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री(आंतरिक सुरक्षा) पी. चिदंबरम के इशारे पर कांग्रेसी मुख्या मंत्री वीर बहादुर सिंह की पी ऐ सी ने सेंकडों बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को घरों से उठाकर मुरादनगर में गंग नहर के किनारे गोली से उडा दिया. आज तक किसी को सजा नहीं मिली. कोई सेकुलरिस्ट इसका जिक्र भी नहीं करता जबकि इस घटना को चौथाई शताब्दी बीत चुकी है.इस बात पर भी चर्चा होनी चाहिए की जिनके शाशन में अधिकांश दंगे हुए और हजारों मुस्लमान मारे गए वो मुसलमानों के सच्चे दोस्त हैं या जिनके शाशन में दंगे नहीं हुए.(गुजरात के पोस्ट गोधरा दंगो के अपवाद को छोड़कर) वो मुसलमानों के सच्चे हमदर्द हैं. एक पुराणी कहावत है ” नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा”.आर एस एस या भाजपा वाले अपनी मुसलमानों के प्रति भावनाएं छुपाते नहीं हैं जबकि ये सेकुलरिस्ट उनकी पीठ में छुरा घोंपते हैं. आखिर इस देश के सभी मुसलमानों का रक्त भी हिन्दू पुरखों का ही है. हेदराबाद स्थित भारत सर्कार की प्रतिष्ठित लेबोरेट्री ‘सेंटर फॉर सेलुलर एंड मोलिकुलर बायोलोजी’ ने देश के विभिन्न हिस्सों से विभिन्न समुदायों के पांच लाख लोगों के रक्त के सेम्पल लेकर उनका डी एन ऐ टेस्ट किया तो सभी का डी एन ऐ एक ही पाया गया और सभी एक ही वंशवृक्ष की शाखाएं पाए गए. अर्थात सबके पुरखे एक ही थे. जब हिन्दू और मुस्लमान एक ही वंश वृक्ष से उत्पन्न हैं तो भाईचारे से क्यों नहीं रह सकते? सब मिलकर इस भारत माता को गौरव व परम वैभव के शिखर पर पहुँचाने के लिए संकल्प लें तो सारी समस्याएं समाप्त हो जाएँगी. नफ़रत की इन दीवारों को गिराने की शुरुआत करें.

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