Home कला-संस्कृति शस्त्र शास्त्र के पारंगत और कर्मवीर भगवान परशुराम

शस्त्र शास्त्र के पारंगत और कर्मवीर भगवान परशुराम

2
794

parshuramपरशुराम जी ने कभी क्षत्रियों को संहार नहीं किया. उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रिय वंश में उग आई उस खर पतवार को साफ किया जिससे क्षत्रिय वंश की साख खत्म होती जा रही थी. जिस दिन भगवान परशुराम को योग्य क्षत्रियकुलभूषण प्राप्त हो गया उन्होंने स्वत दिव्य परशु सहित अस्त्र-शस्त्र राम के हाथ में सौंप दिए
जन्म
जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी महर्षि थे।उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्’वानस और परशुराम।
भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था ! परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार है। जी बाल्यकाल से ही ये पार्वती वल्लभ भगवान शंकर की आराधना करने कैलास पर्वत पर चले गये। देवाधिदेव महादेव ने प्रसन्न होकर इन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्रों सहित दिव्य परशु प्रदान किया। वह दिव्य परशु भगवान शंकर के उसी महातेज से निर्मित हुआ था जिससे श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र और देवराज इंद्र का वज्र बना था। अत्यंत तीक्ष्ण धारवाला अमोघ परशु धारण करने के लिए भगवान ‘राम’का परशु सहित नाम ‘परशुराम’पड़ा।
परशुराम जी बाल्यकाल से ही अत्यंत वीर, पराक्रमी, अस्त्र-शस्त्र विद्या के प्रेमी, त्यागी, तपस्वी एवम् सुंदर थे। धनुर्वेद की विधिवत् शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही प्राप्त की थी।
माता भक्त, पिता के आज्ञाकारी परशुराम जी
श्रीमद्भागवत में दृष्टान्त है कि एक बार माता रेणुका हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने व सरितास्नान के लिये गई। गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्’वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवी रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर दे दिये।
संहार की शपथ
इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा।
इस घटना के समय वहाँ पर परशुराम उपस्थित नहीं थे। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले गये हैं
न्याय के लिए हमेशा युद्ध करते रहे
वे न्याय के लिए हमेशा युद्ध करते रहे, कभी भी अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया. न्याय के प्रति उनका समर्पण इतना अधिक था कि उन्होंने हमेशा अन्यायी को खुद ही दण्डित भी किया.
अमर है, परशुराम जी
कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषणरू
कृपरू परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनरू।। – श्रीमद्भागवत महापुराण

पौराणिक परंपरा में जिन सात व्यक्तियों को अजर अमर माना गया है, उनमें परशुराम एक हैं। कहते हैं कि राम के शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा को देख कर वे हिमालय चले गए थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों और धर्मपुरुषों की रक्षा के लिए उठाया परशु त्याग दिया।

तप, स्वाध्याय शिक्षण और लोकसेवा छोड़कर आपद्धर्म के रूप में शस्त्र उठाने का प्रायश्चित करने के लिए हिमालय क्षेत्र में समय व्यतीत किया। क्योंकि परशुराम चिरजीवी हैं, इसलिए माना जाता है कि आज भी सशरीर वे हिमालय के किन्हीं अगम्य क्षेत्रों में निवास करते हैं। परशुराम का कार्य क्षेत्र गोमांतक (गोवा) कहा जाता है। राम से साक्षात्कार होने और उन्हें अवतार के रूप में पहचानने के बाद वे हिमालय चले गए। ऋषि धर्म के विपरीत शस्त्र उठाने का प्रायश्चित करने के लिए कहते हैं कि परशुराम ने हिमालय की घाटी में फूलों की घाटी बसाई।
समाज सुधार व कृषि के प्रकल्प हाथ में लिए
परशुराम जी ने समाज सुधार व कृषि के प्रकल्प हाथ में लिए। केरल,कोंकण मलबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को बाहर निकाला जो खेती योग्य थी। इस समय कश्यप ऋषि और इन्द्र समुद्री पानी को बाहर निकालने की तकनीक में निपुण थे। अगस्त्य को समुद्र का पानी पी जाने वाले ऋषि और इन्द्र का जल-देवता इसीलिए माना जाता है। परशुराम ने इसी क्षेत्र में परशु का उपयोग रचनात्मक काम के लिए किया। शूद्र माने जाने वाले लोगों को उन्होंने वन काटने में लगाया और उपजाउ भूमि तैयार करके धान की पैदावार शुरु कराईं। इन्हीं को परशुराम ने शिक्षित व दीक्षित करके ब्राहम्ण बनाया। इन्हें जनेउ धारण कराए। और अक्षय तृतीया के दिन एक साथ हजारों युवक-युवतियों को परिणय सूत्र में बांधा। परशुराम द्वारा अक्षयतृतीया के दिन सामूहिक विवाह किए जाने के कारण ही इस दिन को परिणय बंधन का बिना किसी मुहूर्त्त के शुभ मुहूर्त्त माना जाता है। दक्षिण का यही वह क्षेत्र हैं जहां परशुराम के सबसे ज्यादा मंदिर मिलते हैं और उनके अनुयायी उन्हें भगवान के रुप में पूजते हैं
मार्शल आर्ट में योगदान
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं।ख्1, वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।

2 COMMENTS

    • You moron…don’t question anything about the God. God is universal and the time they incarnated…there was no land out of India. All were submerged in sea. Don’t ask silly questions here…read mythological books to explore further.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here