वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था

dayashankar singhबसपा नेताओं की उपस्थिति में पार्टी कार्यकत्र्ताओं ने दयाशंकरसिंह की पत्नी, बेटी, माता व बहन के लिए अपशब्दों को बोलने की सारी सीमाएं ही लांघ दीं। इसके पश्चात कु. मायावती की किरकिरी आरंभ हो गयी है। वह जिस लाभ को लेने के लिए चली थीं-अब वह उन्हें मिलता हुआ दिखायी नही दे रहा है। दयाशंकर सिंह की पत्नी बसपा नेताओं की अभद्रता के विरूद्घ न्यायालय जा रही है। यद्यपि उन्हें नही लगता कि कानून उनका साथ देते हुए मायावती जैसी प्रभावशाली नेता पर हाथ डालने का साहस कर पाएगा। पर श्रीमती स्वातीसिंह ने बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी को दिन में तारे दिखा दिये हैं।

भाजपा भावातिरेक में अपने आपको कुछ अधिक ही पवित्र सिद्घ करने के लिए दयाशंकर सिंह को अनुपात से अधिक दण्ड दे गयी है। अभी उन्हें प्रदेश पार्टी के उपाध्यक्ष पद से हटाना ही उचित था। श्री सिंह ने जो भी किया वह व्यक्तिगत शत्रुभावना से प्रेरित होकर नही किया

, अपितु पार्टी के लिए किया, इसलिए पार्टी को भी उनके लिए कुछ करना चाहिए था और भी कुछ नही तो कम से कम बसपा के कार्यकर्ताओं की ‘गुण्डई’ की तो प्रतीक्षा करनी ही चाहिए थी। बसपा ने चार दिन में ही स्पष्ट कर दिया कि भाजपा में तो एक ‘दयाशंकर सिंह’ था यहां तो सैकड़ों ‘दयाशंकर सिंह’ हैं जो नारी गरिमा का कोई मूल्य नही आंकते।
इस देश की राजनीति की दिशा ही गलत है। इस देश के राजनीतिज्ञ शत्रुपक्ष की नारी को भी सम्मान और आदर देने वाले महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी को महान न मानकर शत्रुपक्ष की नारी को

‘माल’ समझने वाले और अपनी वासना को शांत करने के लिए मीना बाजार सजाने वाले अकबर को महान मानते हैं, इसलिए हमारे राजनीतिज्ञों की नैतिकता मर गयी है। जैसा जिसका आदर्श होता है वैसे ही उसके कर्म होते हैं। किसी शायर ने कितना अच्छा कहा है :-
”वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था,

अब तो इत्र भी सूंघते हैं तो खुशबू नही आती।”

सचमुच हमारा लोकतंत्र इतना आभाहीन हो चुका है कि इसके इत्र को सूंघने पर अब सुगंध नही आती। हमारे लोकतंत्र की फिजा खराब हो चुकी है। यह संपूर्ण नारी जगत की अस्मिता को न्याय देने में असफल रहा है। मुस्लिम नारी का सम्मान करने का समय आया तो यह शाहबानो को न्याय और सम्मान नही दे पाया। बड़ा साहस करके एक नारकीय सामाजिक व्यवस्था के विरूद्घ शाहबानो उठी थी उसे आशा थी कि लोकतंत्र उसका साथ देगा। पर लोकतंत्र ने सही उस समय नीची गर्दन कर ली जब शाहबानो का

‘चीरहरण’ करते हुए भरी संसद में उसकी मांग को इसी लोकतंत्र ने अनुचित करार देते हुए उसके ‘पर्सनल लॉ’ की चक्की में उसे दल कर रख दिया। सारे लोकतंत्र ने और लोकतंत्र के रक्षकों ने एक महिला को लोकतंत्र के मंदिर की दहलीज तक नही चढऩे दिया उसे धक्का मारकर भगा दिया। दलन, शोषण उत्पीडऩ क्या कुछ नही हुआ शाहबानो के साथ पर सब मौन साध गये। दलन, शोषण, उत्पीडऩ और अन्याय के विरूद्घ आवाज उठाने वाली व्यवस्था ही दलन, शोषण, उत्पीडऩ और अन्याय की पैरोकार बन गयी। लोकतंत्र से लोगों की श्रद्घा घट गयी।
अब मायावती कह रही हैं कि वे गरीब लोगों की देवी हैं। उन्हें नही पता कि यह देश उन ऋषियों का देश है जो पैदा होते ही नारी को ‘देवी’ मानता है। इसीलिए कुंवारी कन्या से कोई पैर नही छुआता। उसके शरीर का कोई अंग हमारे शरीर को लगे यह ‘पाप’ माना जाता है। इससे अधिक नारी पूजा का भाव किसी देश में नही है। यह भारत ही है जहां 8 वर्ष के बच्चे ने भी मायावती को बहन मान लिया और 80 वर्ष के बूढ़े ने भी मान लिया। एक दयाशंकर सिंह की जुबान फिसल गयी तो क्या हो गया-सम्मान तो उन्हें इसी समाज में 8 वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष तक के बूढ़े ने दिया है। कुछ उनके द्वारा दिये गये सम्मान का भी ध्यान रखना चाहिए था और अपने ‘बेलगाम’ पार्टी कार्यकर्ताओं के आचरण पर दुख व्यक्त करते हुए दयाशंकर सिंह की मां, पत्नी, पुत्री व बहन से क्षमायाचना करनी चाहिए थी।

जिन लोगों को मायावती गरीब कह रही हैं उन्हें नही पता कि बसपा का या भाजपा का या कांग्रेस और सपा का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दर्शन क्या है? उनकी सोच क्या है और वे कैसे देश का कल्याण करना चाहते हैं? बसपा के ही एक धरना प्रदर्शन में कुछ पत्रकारों ने उन गरीबों से जिनकी मायावती स्वयं को देवी मानती हैं, यह पूछ लिया कि वे इस कार्यक्रम में क्यों आये हैं? इस पर कई लोगों का कहना था कि यहां उन्हें अपनी बिजली और मौहल्ले की पानी आदि की समस्याओं के लिए कहकर बुलाया गया है। जिन लोगों को इतना तक नही पता कि वे इस धरना प्रदर्शन में क्यों आये हैं-उनके ऊपर मायावती जी! आपको तरस आना चाहिए, उनके भोलेपन को गिनती के खेल में मत बदलो-उनका भाग्य बदलो। उनके भाग्य बदलने के संघर्ष को देखकर देश का निष्पक्ष बौद्घिक संपदा संपन्न प्रबुद्घ वर्ग जिस दिन आपको गरीबों की देवी कहने लगे उसी दिन आप गरीबों की देवी बनोगी।

इस देश की परंपरा रही है कि ‘राजा’ को तपे तपाये ऋषि लोगों का मंडल या सभा ही यह अधिकार देती थी कि आपके राज्य में कोई दुखिया नही है। कोई चोर उचक्का, बदमाश या अपराधी नही है, जार नही है, व्यभिचारी नही है, इसलिए आपको राजसूय यज्ञ करने का अधिकार है। विश्व में आज तक डंके की चोट यह कहने वाला एक ही राजा अश्वपति हुआ है कि मेरे राज्य में कोई चोर नही, कोई अपराधी नही, कोई भूखा, नंगा जुआरी या व्यभिचारी नही। कोई राजा ऐसा दावा अपनी किसी विशेष योग्यता के बल पर ही कर सकता है। क्या भारत का कोई भी राजनीतिक दल या किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री या देश का कोई प्रधानमंत्री अवश्वपति की उक्त घोषणा को आज पूर्ण दावे के साथ कह सकता है? जिनके राज्यों में केवल और केवल घोटाले हों, अपनी मूत्र्ति अपने आप स्थापित करने की बेतुकी सोच हो-उनसे ‘अश्वपति परंपरा’ के निर्वाह की अपेक्षा नही की जा सकती। जनहित साधने से निश्चय ही मायावती जी गरीबों की देवी न होकर देश की देवी हो सकती हैं। पर इससे पहले उन्हें दलित की बेटी से देश की बेटी बनने तक का सफर तय करना होगा। दलित और देश की दो ‘द’ के बीच से तीसरी ‘द’ अर्थात दयाशंकर को निकालकर चौथी ‘द’ अर्थात दयाशंकर की माता, पत्नी पुत्री बहन के प्रति ‘दया’ भाव दिखाते उनसे क्षमायाचना कर प्रदर्शित करनी होगी। बहनजी! आप किन छोटी बातों में उलझ गयी हो। दयाशंकर जैसे छोटे लोग पीछे रह गये और आप जीवन की गति को रोके वहीं खड़ी हो, जबकि आप को तो समय की सरिता के साथ बहते हुए आगे बढऩा चाहिए था।

”गिरते है ख्याल तो गिरता है आदमी,

उठते हैं तो ख्याल तो उठता है आदमी।

अब यह हमारे ऊपर है कि हम गिरते ख्यालों को पकड़ते हैं या उठते ख्यालों को।

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