शिव की तरह सती के शव की महापरायण यात्रा

odishaआकर्षक दर्शनीय स्थल वाला कलाहांडी की गरीबी 

डा. राधेश्याम द्विवेदी
कलाहांडी धान का कटोरा है :-उड़ीसा के कलाहान्डी जिले का एक शहर है। ओड़िशा का वर्तमान कलाहान्डी जिला प्राचीन काल में दक्षिण कोसल का हिस्सा था। आजादी के बाद इसे ओड़िशा में शामिल कर लिया गया। उत्तर दिशा से यह नवपाडा और बालंगीर, दक्षिण में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और पूर्व में बूध एवं रायगढ़ जिलों से घिरा हुआ है। पूर्वी सीमा पर स्थित भवानीपटना जिला मुख्यालय है। लगभग 11 लाख की आबादी वाला यह जिला देश के सबसे अधिक गरीबी वाले जिले में रखा जाता था। 1985 में जहां 88 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे थे, वहीं आज लगभग 33 फीसदी लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। एफसीआइ के अनुसार यहां 1997 में 40 हजार टन चावल खरीदा गया था। जबकि आज यहां 80 हजार टन चावल खरीदा जा चुका है और 1.25 चावल प्राप्त किए जाने की उम्मीद है। यह पूरे राज्य का एक तिहाई है। इस क्षेत्र में हुई पर्याप्त वर्षा ने किसानों की खुशियों में बढ़ोत्त्तरी कर दी थी। किसानों का कहना है कि इस साल कुछ और फसलों का उत्पादन हुआ है। 1998 में जहां 7883 से दोगुणा होते हुए 14959 हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसल हुआ था वहीं इस वर्ष 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसल हुआ है। भारत सरकार ने भी स्वीकार किया है कि 2003-04 से कालाहांडी क्षेत्र में कृषि उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। अपर इंद्रावती सिंचाई परियोजना के कारण कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है। क्षेत्र के वासी अथक मेहनत व गैर सरकारी संगठनों के जमीनी कार्य को हर कोई दरिकनार कर रहा है। गांव के सहयोग से गैर सरकारी संगठनों द्वारा किये गए कार्य का ही परिणाम है कि आज कभी भूखा रहने वाला कालाहांडी क्षेत्र चावल उत्पादन में देश में अग्रणी स्थान बनाने की ओर अग्रसर है। गैर सरकारी संगठनों ने लोगों को अपने अधिकार के प्रति जागरूक किया। कालाहांडी के लोगों में काफी जागरूकता आयी है। लोग पहले की अपेक्षा चीजों को ज्यादा समझ रहे हैं। 1991 के आर्थिक उदारीकरण का भी प्रभाव पड़ा है। आर्थिक उदारीकरण के बाद लोग बाहरी दुनिया से संपर्क में आया। तकनीकों के ज्ञान बढ़ने और आर्थिक उन्नति के कारण खेती में पैसा लगाना शुरू किया। कभी गरीबी व भूखमरी के लिए खबरों में रहने वाला कालाहांडी आज धान उत्पादन में रिकार्ड कायम करने के लिए चर्चा में है। कालाहांडी में धान का उत्पादन लाख टन से ऊपर पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि कालाहांडी के लगभग 52 फीसदी क्षेत्र पर धान का उत्पादन हो रहा है। क्षेत्र के लोग धान उत्पादन में रिकार्ड कायम करने के बाद रबी फसल और सब्जी का भी यहां पर्याप्त उत्पादन करने लगे हैं। यहां के लोग केले के उत्पादन के माध्यम से भी अपनी आमदनी में अच्छा खासा इजाफा कर लिया है। यह सिर्फ सरकारी प्रयासों का नतीजा नहीं है बल्कि सामुदायिक सहभागिता और गैर सरकारी संगठनों के अथक प्रयास के बाद कालाहांडी में हरियाली दिखाई दी है।
कलाहान्डी जिले के प्रमुख आकर्षण:- 8197 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैले इस जिले में जूनागढ़, करलापट, खरियर, अंपानी, बेलखंडी, योगीमठ और पातालगंगा आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
1. अमाथागुडा:- अमाथागुडा किला तेल नदी के दाएं तट पर स्थित है। यह क्षतिग्रस्त किला कितना पुराना है और कब बना था, इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इसकी स्थिति देखकर इतना जरूर कहा जा सकता है कि इसका अपने काल में बहुत अधिक सामरिक महत्व रहा होगा। किले के निकट ही तेल नदी पर एक पुराना पुल बना है। पुल से कुछ मीटर दूर एक नया पुल है जिसका एक हिस्सा 1977 में तेल नदी में आने वाली बाढ़ से बह गया था।
2. असुरगढ़ किला:- असुरगढ़ के बाहरी हिस्से में स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि एक जमाने में यह गोसिंहा दैत्य का निवास स्थल था। इस असुर के कारण ही इस स्थान का नाम असुरगढ़ पड़ा था। त्रिभुजाकार में बना यह किला वर्तमान में क्षतिग्रस्त अवस्था में है। इसके पूर्वी द्वार पर देवी गंगा को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है। इसी प्रकार अन्य द्वारों पर काला पहाड़, वैष्णवी और बुद्धराजा को समर्पित मंदिर बने हुए हैं। किले के भीतर देवी डोकरी मंदिर है। देवी डोकरी किले की मुख्य देवी है। असुरगढ़ जिला मुख्यालय भवानीपटना से 35 किमी. की दूरी पर है।
3. श्री रामकृष्ण आश्रम:- यह आश्रम कालाहांडी के मदनपुर-रामपुर ब्लॉक में स्थित है। आश्रम में रामकृष्ण परमहंस और उनकी पत्नी शारदामनी देवी व स्वामी विवेकानंद के विचारों की शिक्षा दी जाती है। आश्रम में बताया जाता है कि किस प्रकार मोक्ष प्राप्त किया जाए और जनसमुदाय के कल्याण हेतु किस प्रकार कार्य किया जाए। आश्रम दो हिस्सों में बंटा हुआ है। मुख्य आश्रम में एक मंदिर, आदिवासी छात्रों का हॉस्टल, वृद्धाश्रम, डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और साधुओं और कर्मचारियों के लिए कमरे बने हुए हैं। आश्रम ध्यान लगाने के लिए एक आदर्श स्थान है।
4. जूनागढ़:- कालाहांडी से 26 किमी. दूर स्थित जूनागढ़ एक जमाने में कालाहांडी रियासत की राजधानी थी। यह स्थान अपने किले और मंदिरों के लिए खासा चर्चित है। यहां के मंदिरों में उडिया भाषा में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं। सती स्तंभ यहां का मुख्य आकर्षण है। जूनागढ़ राउरकेला से 180 किमी. दूर है और भुवनेश्वर में यहां का करीबी एयरपोर्ट है।
5. बेलखंडी:- यह स्थान तेल और उत्तेई नदी के संगम पर स्थित है। यह स्थान धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ पुरातत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां होने वाली खुदाई से 12वीं शताब्दी की एक इमारत का पता चला है। साथ ही सप्त मातृका और उमाशंकर महेश्वर की प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं। इस स्थान से प्राप्त अनेक बहुमूल्य और प्राचीन वस्तुओं को मंदिर परिसर के साथ बने एक संग्रहालय में रखा गया है। बेलखंडी भवानीपटना से 67 किमी. की दूरी पर है।
6. अंपानी:- जिला मुख्यालय से 77 किमी. दूर स्थित अंपानी हिल्स से प्रकृति के सुंदर नजार देखे जा सकते हैं। यहां का जंगली वातावरण पर्यटकों को काफी लुभाता है। यहां की हलादीगुंदी घाटी पहाड़ियों की सुंदरता को और बढ़ा देती है। हिरण, सांभर, पेंथर आदि जानवरों को यहां उन्मुक्त विचरण करते हुए देखा जा सकता है। अंपानी से 5 किमी. दूर स्थित गुडाहांडी में प्रागैतिहासिक कालीन गुफाओं को देखा जा सकता है
7. फुरली झरना:- यह खूबसूरत झरना भवानीपटना से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। 30 फीट की ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल बेहद आकर्षक प्रतीत होता है। झरने के चारों तरफ की हरियाली इसे पिकनिक के लिए एक बेहतरीन जगह बनाती है।
8. वायु रेल व सड़क मार्ग:- जिला मुख्यालस से 25 किमी. दूर उत्केला में एक वायुपट्टी है। भुवनेश्वर एयरपोर्ट यहां से 418 किमी. की दूरी पर है। दक्षिण पूर्व रेलवे का राजपुर-विजियानगरम ब्रोड गैज रेलमार्ग इस जिले के 5 रेलवे स्टेशनों को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ता है। रायपुर, विजियानगर, राउरकेला, बालांगीर, संभलपुर, केसिंगा, नरला रोड और खरियर रोड आदि रेलवे स्टेशनों से कालाहांडी जुड़ा हुआ है। भवानीपटना जिला मुख्यालय राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है। कटक, भुवनेश्वर, राउरकेला, संभलपुर आदि शहरों से यहां के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
शिव की तरह सती के शव की महापरायण यात्रा:-कालाहांडी ज़िले के भवानीपटना में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा.जिस अस्पताल में महिला की मौत हुई थी, उस अस्पताल ने कथित तौर पर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस मुहैया कराने से इनकार कर दिया था. बारह किलोमीटर की पदयात्रा के बाद उस व्यक्ति को एंबुलेंस तब मिली जब कुछ लोगों ने मामले में दख़ल दिया. अब जिला प्रशासन ने उन्हें मुआवजे के तौर पर 12 हज़ार रुपये देने की बात कही है.दाना मांझी की पत्नी अमांग भवानीपटना के एक अस्पताल में टीबी के इलाज के लिए भर्ती थीं, जहां उनकी मौत हो गई.दाना के मुताबिक उनका गांव वहां से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है. वो ग़रीब है और उसके पास वाहन का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे. अस्पताल ने कथित तौर पर उसकी मदद नहीं की. अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी बी ब्रह्मा ने कहा, “महिला को 23-08-2016 को अस्पताल में दाखिल कराया गया था. उसी रात उसकी मौत हो गई. उसके पति अस्पताल के किसी कर्मचारी को जानकारी दिए बिना उसका शव ले गए.” उधर, दाना मांझी का कहना है कि पत्नी की मौत 23-08-2016 की रात को हुई. अस्पताल के कर्मचारियों ने उनसे बार-बार शव हटाने के लिए कहा. इसके बाद 24-08-2016 को वो शव लेकर चल पड़ा. उसने कहा, “मैं अस्पताल के कर्मचारियों से अपनी पत्नी का शव ले जाने के लिए वाहन की गुजारिश करता रहा लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. मैं गरीब आदमी हूं इसलिए किराए पर वाहन नहीं ले सकता. मेरे पास शव को कंधे पर ले जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था.”
दाना मांझी ने बताया कि 24-08-2016 की सुबह उसने अपनी पत्नी के शव को कपड़े में लपेटा और कंधे पर रखकर गांव की ओर चल दिए. उसके साथ 12 साल की बेटी चौला भी थी. वो करीब 12 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था, तब कुछ लोगों के प्रयासों से एक एंबुलेंस मिली. पत्नी का अंतिम संस्कार 24-08-2016 शाम को हुआ.कालाहांडी की कलेक्टर बृंदा डी ने बताया कि जैसे ही उन्हें इस मामले की जानकारी हुई उन्होंने अमांग के शव को लेकर जाने के लिए वाहन की व्यवस्था कराई. उन्होंने बताया, “मैंने स्थानीय अधिकारियों से उस परिवार को एक योजना के तहत 2 हज़ार रुपये मुहैया कराने को कहा. इसके अलावा परिवार को 10 हज़ार रुपये रेड क्रॉस की तरफ से भी मिलेंगे.” फरवरी 2016 में राज्य सरकार ने गरीबों के शवों को अस्पताल से उनके घर तक ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध कराने की योजना शुरु की. इससे पहले ऐसी ख़बरें भी आई हैं कि लगभग आधा दर्जन शवों को बाइक, ट्रॉली रिक्शा के जरिए ले जाया गया था.मांझी का मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने गुरुवार को मदद की योजना को औपचारिक तौर पर शुरू किया।
कहावत थी लाश को उठाने चार कंधे तो चाहिए ही। एक गरीब, लाचार, बेबस आदिवासी दाना माझी 23-08-2016 की रात को भवानीपटना जिला मुख्यालय अस्पताल में टीबी से काल के ग्रास में समा गई अपनी 42 वर्षीय मृत पत्नी अमंग के शरीर को कंधे पर टाँगे अपनी बेटी के साथ बाहर से शांत पर अंदर से सती का शव लिए विक्षिप्त से शिव की भाँति 10-12 किलोमीटर तक पैदल चलता है, तब मानवता सुशुप्त पड़े प्रशासन, चिकित्सालय की असंवेदनशील अनदेखी और योजनाओं की धज्जियाँ उड़ते देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकी। शव को सरकारी अस्तपताल से मृतक के घर तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा देने वाली ‘महापरायण’ योजना कहीं दूर पड़ी सिसकियाँ ले रही थी और माझी अपनी पत्नी के शव को एक कपड़े में लपेटे कंधे पर लादकर भवानीपटना से करीब 60 किलोमीटर दूर रामपुर ब्लॉक के मेलघारा गांव के लिए पैदल चला जा रहा था। दाना माझी मीडिया के लिए दिनभर सरकारी और प्रशासनिक कोसने की सामग्री बन गया है। वह देश और उड़ीसा का हीरो बन गया है, क्योंकि किसी फिल्म की तरह उसने वास्तविक जीवन में अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण बफादारी दिखाई है। इस सबसे प्रभावित हो किसी ने प्रशासन को इत्तला कर दिया गया था. शायद कहीं एक कोने में मानवता नगण्य दशमलवों में शेष थी। राजनीति के दूरगामी परिणामों से डरी धमकाई गई मानवता ने दाना माझी को अंतिम संस्कार मदद योजना के तहत 2000 रुपए और जिला रेड क्रॉस फंड से 10,000 रुपए देकर स्वयं को तुष्ट कर लिया। और दाना माझी सती के शव को उठाने वाले शिव की तरह कुछ दिनों के लिए समाज के विष को अपने कण्ठ में कहीं ठहरा लेगा, क्योंकि अभी उसकी 12 वर्ष की बेटी भी उसके साथ है। दुनिया से विदा लेने के बाद शेष 50 किमी उसकी मृत पत्नी तत्काल एंबुलेंस की व्यवस्था से पार कर चुकी है और हम क्रूरताओं की हदें पार करते जा रहे हैं।
कवि की धिक्कार वेदना :-
जो चार कंधे ना मिले, मैं अकेला ही बहुत हूँ।
चल सकूँ लेकर तुझे, मोक्ष के उस द्वार पर।
धिक्कार है संसार पर, धिक्कार है संसार पर।।
सात फेरे जब लिए थे,सात जन्मों के सफर तक।
एक जीवन चलो बीता,साथ यद्यपि मध्य छूटा।
किन्तु छः है शेष अब भी,तुम चलो आता हूँ मैं भी।
करके कुछ दायित्व पूरे , हैं जो कुछ सपने अधूरे ।
चल तुझे मैं छोड़ आऊँ,देह हाथों में उठाकर ।
टूट कर न हार कर , धिक्कार है संसार पर।
तू मेरी है, मैं तुझे ले जाऊँगा ,धन नहीं पर, हाँथ न फैलाउंगा।
है सुना इस देश में सरकार भी,योजनाएं है बहुत उपकार भी।
पर कहीं वो कागज़ों पर चल रहीं,हम गरीबों की चिताएँ जल रहीं।
मील बारह क्या जो होता बारह सौ ,यूँ ही ले चलता तुझे कंधों पे ढोकर।
कोई आशा है नहीं मुझको किसी से,लोग देखें हैं तमाशा मैं हूँ जोकर।
दुःख बहुत होता है मुझको,लोगों के व्यवहार पर ।
धिक्कार है संसार पर, धिक्कार है संसार पर।
एक कवि की शांति वेदना:-
कौन दोषी है कौन नहीं भूल के,
इस पति इस प्रेमी को नमन।
उसके कंधो पर,
गाय की लाश नहीं थी, मृत पत्नी थी,
इसलिए शांति थी-शांति थी।।
टी.बी से मरना कोई घटना नहीं,
शरीर नश्वर ही तो है,
इसलिए शांति थी-शांति थी।।
कालाहांडी भूख की आग से दहकता है,
उसे भूख से मुक्ति मिल गई,
इसलिए शांति थी-शांति थी।।
वो जिन्दा रहती तो,
बेबस पति को मरते देखती,
जवान बेटी को गिद्धों के बीच देखती,
इसलिए शांती थी-शांति थी।।
दलित-आदिवासी का जिन्दा रहना भी,
संस्कृति पर अतिक्रमण होता है,
इसलिए उसका मरना राष्ट्र का मसला नहीं है।
वो जिन्दा रहती तो मसला था,
क्योंकि उसकी मुरझाई काया,
भारत माता के सौन्दर्य को विद्रुप करती,
चमकते राष्ट्र की धवल छवि को ध्वस्त करती।
इसलिए उसका मरना राष्ट्र हित में था,
इसलिए शांति थी-शांति थी।।

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