कुनबा बदलेंगे शिवराज

विनोद उपाध्याय 

भारतीय जनता पार्टी अब पार्टी विथ डिफरेंस के बजाय पार्टी इन डिलेमा (भंवरजाल) बन गई है। दूसरे दलों से अलग होने का दंभ भरने वाली पार्टी अब असमंजस और विरोधाभास से ग्रसित हो चुकी है। केन्द्रीय संगठन से लेकर राज्यों की सत्ता और संगठन तक में गुटबाज़ी है, जिसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ता आम जनता से दूर होते जा रहे हैं और पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में दूरियां बढ़ गई हैं। ऐसे ही भाजपा शासित राज्यों में मध्यप्रदेश भी शामिल है जहां कुलीनों का कुनबा दूषित हो गया है। प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता का स्वाद चख रहे कुछ नेताओं का चाल-चरित्र और चेहरा ऐसा बदनाम हो गया है कि इनके दम पर तीसरी बार सत्ता में लौटना भाजपा के लिए मुश्किल नजर आ रहा है। यह हमारा आकलन नहीं है बल्कि मध्यप्रदेश में सत्ता, संगठन और संघ द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आया है। जिसको देखते हुए आलाकमान ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपना कुनबा बदलने के लिए फ्री हैंड दे दिया है। मुख्यमंत्री के इस कदम में संघ के साथ-साथ जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं उनमें प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन, सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर शामिल हैं।

देश का हृदय प्रदेश होने के कारण भाजपा ने सत्ता और संगठन को दुरुस्त करने की तैयारी मप्र से ही शुरू करने का वीडा उठाया है। आलाकमान का मानना है कि अगर हृदय यानी दिल ठीक हो गया तो धमनियां और अन्य अंग अपने आप सही ढंग से काम करने लगेंगे। दरअसल 2013 में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती है। इसके लिए संगठन और संघ की पहल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबसे पहले अपनी सरकार के कामकाज का आकलन कराया फिर सरकारी और निजी एजेंसी द्वारा अलग-अलग होने वाले इस सर्वे की जद में मंत्रियों के साथ सरकारी अमला भी रहा। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर सरकार बाकी बचे ढाई साल में अपने कामकाज की नई रणनीति बना रही है। सूत्र बताते हैं कि राज्य योजना आयोग द्वारा समय-समय पर की जाने वाली विभागों के कामकाज व योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के बीच जन अभियान परिषद और एक निजी एजेंसी की मदद से किए गए इस सर्वे में यह बात सामने आई है कि शिवराज कैबिनेट के करीब एक दर्जन मंत्री ऐसे हैं जिनका परफार्मेंस तो पुअर रही है साथ ही उनके विधानसभा और प्रभार वाले क्षेत्र में सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी सही ढंग से नहीं हो सका है। वहीं कई मंत्री ऐसे हैं जो अपने विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के ही आंख की किरकिरी बन गए हैं।

प्रदेश संगठन के एक पदाधिकारी बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंत्रियों के विभागों की समीक्षा में यह बात हमेशा सामने आती रही है कि मंत्रियों की हीला-हवाली और अधिकारियों की नाफरमानी के कारण लोक कल्याण की जितनी योजनाएं हैं उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा पार्टी की सभी राज्य सरकारों को अपने कामकाज की सालाना रिपोर्ट तैयार करने संबंधी सलाह पर प्रदेश में भी सर्वे कराया गया है। ऐसी रिपोर्ट के आधार पर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व एक राज्य की अच्छी योजनाओं को दूसरे राज्य में लागू करने व आवश्यकता के अनुसार सरकार की नीतियों में बदलाव जैसे सुझाव देता है।

सर्वे की रिपोर्ट में स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने का संकल्प लेने वाली प्रदेश की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार के एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं। खुद को मध्यप्रदेश की साढ़े छह करोड़ जनता का हमदर्द बताने वाले इन मंत्रियों ने दोनों हाथों से लूट-सी मचा रखी है। कोई राज्य की योजनाओं को चूस रहा है तो किसी ने केंद्रीय योजनाओं पर बट्टा लगाने की ठान ली है। ऐसे मंत्रियों के भरोसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनता को स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सपना दिखाया है। सरकार की प्राथमिकताएं और संकल्प चाहे जो हों, लेकिन विभागों में इन्हीं का एजेंडा काम कर रहा है। किसी ने विभाग में अपने ठेकेदार छोड़ रखे हैं, तो किसी ने तबादलों को ही अपना व्यापार बना रखा है। मंत्रियों की इस भर्राशाही का फायदा उठाते हुए दबंग अधिकारियों ने मंत्री को ही हाईजेक कर लिया है। जिससे स्थिति ऐसी हो गई है की मंत्री कितना भी टर्टराते रहें अधिकारी उनकी सुनते ही नहीं।

सर्वे की खबर से ऐसे मंत्री खासे सहमे हुए हैं, जिनकी अपने विभाग के सचिवों से पटरी नहीं बैठ रही है और इसके चलते विभाग का प्रदर्शन मुख्यमंत्री की अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। उन्हें डर है कि इस खामियाजे का असर उनकी कुर्सी पर न पड़ जाए। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि कई मंत्री अपने अधिकारियों के असहयोग के चलते काम नहीं कर पा रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण किसी से उनका विभाग नहीं छीना जाना चाहिए। वहीं कुछ मंत्रियों का कहना है कि तारीफ या खिंचाई करने से पहले मुख्यमंत्री को विभागों के कार्यों के विभिन्न आयामों को भी परखना चाहिए। उधर खबर यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आधे मंत्री खफा हैं। यह मंत्री न तो उनकी सुनते हैं और न ही कोई तवज्जो देते हैं। नाराजगी के बावजूद यह मंत्री खुलकर बगावत नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि संघ और संगठन में शिवराज की पकड़ दिन पर दिन मजबूत होती जा रही है। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अधिकांश मंत्रियों को मौके की तलाश है। जब उन्हें ऐसा सरपरस्त नेता मिल सके जिसके साथ खड़े होकर वे शिवराज के खिलाफ मैदान में उतर सकें।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार ने किसान, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यकों सहित हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ किया है। ऐसी स्थिति में पार्टी और सरकार अगले चुनाव को लेकर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती।

भाजपा के एक पूर्व मंत्री कहते हैं कि यह सच है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के दर्जनों बड़े मामले उजागर हुए, विभिन्न छापों में अफसरों के यहां से अरबों की काली कमाई का पता चला, लगभग एक दर्जन मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतें हैं तथा प्रदेश का लगभग हर आदमी निचले स्तर तक जड़ें जमा चुके भष्टाचार से त्रस्त है, लेकिन प्रदेश की जनता को शिवराज सिंह चौहान पर विश्वास है।

उधर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, आधा दर्जन से अधिक घोटालों में भ्रष्टाचार से जुड़े ऐसे बड़े मामले हैं जिन्हें लेकर भाजपा, उसकी सरकार तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान परेशानी में आते रहे हैं। यह बात अलग है कि इनसे अब तक उन्हें कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। समय गुजरने के साथ अब मनरेगा में भ्रष्टाचार, गेहूं घोटाला तथा किसान ऋण घोटाला आदि भी सरकार के खिलाफ मुद्दों में जुड़ गए हैं, बावजूद इसके भाजपा सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोध में जनता मैदान में नहीं उतरी। लोग मंत्रियों, विधायकों तथा भाजपा पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार से खफा हैं तब भी चुनाव निकायों के हों, विधानसभा के या कोई अन्य, भाजपा ही जीत का परचम फहराती आ रही है। क्या वास्तव में जनता की नजर में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं रहा, कांग्रेस अपेक्षा के अनुरूप मजबूत नहीं हो पा रही या फिर भाजपा सरकारी मशीनरी और धन-बल के जरिए विजय पथ पर अग्रसर है। इस सवाल को लेकर राजनीतिक हलकों में मंथन चल रहा है।

प्रदेश भाजपा के एक उच्च पदस्थ पदाधिकारी के अनुसार राज्य सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान, लोकसेवा गारंटी, जननी एक्सप्रेस जैसी कई जनहितैषी योजनाएं आम जनता के लिए शुरू की हैं। मध्यप्रदेश में लगभग पिछले आठ वर्षों से भाजपा की सरकार है और जिसमें छह वर्षों से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं। अपने शासनकाल में चौहान ने किसान हितैशी कई घोषणाएं की। मगर ये घोषणाएं और योजनाएं किसानों और उनके खेतों तक नहीं पहुंची हैं। इन घटनाओं से सत्य उजागर एवं झूठराज का पर्दाफाश हो गया है। अरबों-खरबों की योजनाएं अधिकारियों की भेंट चढ़ गईं। लोगों को उन्हें मिलने वाली योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाने के लिए अंत्योदय मेले आयोजित हो रहे हैं। लेकिन मंत्री ऐसी योजनाओं की सुध लेने के बजाय सभा और समारोह को तव्वजो दे रहे हैं और जब योजनाओं के क्रियावन्यन में पिछडऩे की बात आती है तो अफसरों के सिर पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। कहा जा रहा है कि 25 से 28 जुलाई तक मुख्यमंत्री द्वारा की गई विभिन्न विभागों की समीक्षाओं का जो सार निकला है वह न तो आम जनता और न ही सरकार के हित में है।

मुख्यमंत्री की समीक्षा ने सरकार के कई मंत्रियों की बेचैनी बढ़ा दी है, क्योंकि इस समीक्षा के तुरंत बाद मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल में फेरबदल करने जा रहे हैं। इस बात के संकेत उन्होंने पिछली कैबिनेट की बैठक के बाद अनौपचारिक चर्चा में भी दिए थे। कहा जा रहा है कि फेरबदल के लिए कवायद भी शुरू हो गई है। समीक्षा में जिन विभागों के काम की तारीफ होगी, उनके मंत्रियों का ग्राफ बढ़ेगा, वहीं अच्छा काम न करने वाले विभागों के मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगेगा। यही वजह है कि कुर्सी जाने और विभाग छीने जाने के डर से कई मंत्रियों की नींद उड़ गई है।

सूत्रों के अनुसार एक दो नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल भी किया जा सकता है। साथ ही भाई राघव जी, नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर, जल संसाधन व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया, स्वास्थ्य एवं संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा, सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन, महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल, पीडब्ल्यूडी मंत्री नागेंद्र सिंह, पर्यटन एवं खेल मंत्री तुकोजी राव का विभाग बदला जा सकता है। नगरीय प्रशासन एवं विकास राज्यमंत्री मनोहर ऊंटवाल, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री हरिशंकर खटीक और कृषि राज्यमंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह को स्वतंत्र प्रभार मिल सकता है। वहीं ऊर्जा व खनिज राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल को पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है।

भाजपा के सूत्र बताते हैं कि मंत्रिमंडल फेरबदल में इस बात को भी तव्वजो दी जाएगी की कौन मंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रोफाइल को सूट कर रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री के साथ कदम-ताल करने वाले मंत्रियों की संख्या पिछले कुछ सालों में कम हो गई है। अप्रत्यक्ष विरोध करने वाले गणों पर नकेल कसने में शिवराज भी नाकाम हैं। एक दर्जन से अधिक मंत्री ऐसे हैं, जो शिवराज की प्रोफाइल को सूट नहीं कर रहे। मंत्रियों की बढ़ती शिकायतों से सत्ता और संगठन की परेशानी बढ़ती जा रही है। जिलों से लगातार मिल रही रिपोर्ट को आधार मानकर शिवराज अपने गणों के पर कतरने का मंसूबा बना रहे हैं। कई जिलों के अध्यक्षों का मंत्रियों से समन्वय नहीं है तो कहीं पर मंत्री कार्यकर्ताओं की सुनने को तैयार नहीं है।

हालांकि सत्ता और संगठन ने कई बार ऐसे मंत्रियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फटकार लगाई है। प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार तो इसके लिए बदनाम भी हो गए हैं, लेकिन मंत्री हैं कि अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं। हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने भी अलग राह चल रहे मंत्रियों की दौड़ लगवाकर जमकर फटकार लगाई। सूत्र बताते हंै कि प्रभात झा ने 6 मंत्रियों को पार्टी कार्यालय में बुलवाकर साफ कहा है कि शिवराज का साथ नहीं देने का खामियाजा भुगतने को तैयार रहें। इनमें से कुछ मंत्रियों की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं और विरोध में बयानबाजी की शिकायत प्रभात झा को मिली थी। झा की घुड़की के बाद से मंत्री सहमे हुए हैं। शिवराज ने भी अपने अंदाज में मंत्रियों की खुमारी तोड़ी। शिवराज सिंह चौहान की क्लास के बाद पार्टी नेताओं और बंगलों पर बयानबाजी करने वाले नेताओं ने अब सहमे-सहमे बयान देना शुरू किया है।

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