सुरेश हिन्दुस्थानी
मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान एक स्वर्णिम मिसाल बनकर उभरे हैं, उनकी अपरिमित कार्यक्षमता का कोई मुकाबला नहीं, मध्यप्रदेश की राजनीति में जिस प्रकार की राजनीति का सूत्रपात शिवराज ने किया है, वह राजनीति में वास्तविक जनसेवक की याद को ताजा कर देता है। भारत की आजादी के समय वास्तव में राजनीति जनसेवा का माध्यम हुआ करती थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों में जिस प्रकार से राजनीति में स्वार्थ और अपराध बढ़ा है उससे राजनीति को लेकर जन सामान्य की धारणा में आमूल चूल परिवर्तन आया, जनता का राजनेताओं से विश्वास उठ ही रहा था कि प्रदेश में शिवराज नाम का एक सितारा राजनीतिक जगत में उदीयमान हुआ और आज वह जनआंकाक्षाओं का केन्द्र बनकर एक जीती जागती उम्मीद बन गया है। कहना मुनासिब होगा कि देश को शिवराज जैसे नेता की बहुत जरूरत है क्योंकि वह वास्तव में जननेता बनकर उभरे हैं।
शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोडऩे में कामयाब हुए हैं। यह नया अध्याय है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा किसी अन्य राजनैतिक दल के मुख्यमंत्री के रूप में निरन्तर दो कार्यकाल की कालावधि पूरा करना, सिर्फ इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान अपने दल में भी यह गौरव हासिल करने वाले पहले व्यक्ति हैं। इसके अलावा यह बात भी गौर करने लायक है कि वे प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं जिनके कार्यकाल में कोई भी राजनीतिक दल लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुआ है। शिवराज सिंह चौहान की जनआशीर्वाद यात्राओं ने जिस प्रकार से आम जनता में स्थान बनाया, वह स्मरणीय अध्याय कही जा सकती हैं। अनथके पथिक की तरह ध्येय की ओर चलने वाले शिवराज आम जनता से सीधे संवाद करने वाले प्रदेश के पहले जननेता कहे जा सकते हैं, क्योंकि उनका संवाद ही ऐसा है कि जनता अपने आप उनकी तरफ खिची चली आती है। आम लोगों का विश्वास है कि सुनहरा भविष्य प्रदेश में आने वाला है। उनकी मंजिल है स्वर्णिम मध्यप्रदेश। ऐसा प्रदेश जो देश का अग्रणी प्रदेश हो।
असल में शिवराज सिंह चौहान को जानने वालों और नहीं जानने वालों को यह बिल्कुल स्पष्ट समझ लेना चाहिये कि वे दिन गिनने वाले लोगों में से नहीं, काम करने वालों में है। उन्होंने काम को प्रधानता दी। यह वही कर पाता है जो पद के आने-जाने की चिन्ता से मुक्त हो। जिसका लक्ष्य पद पाना या उस पर बने रहना नहीं होता बल्कि पद के अनुरूप दायित्वों के निर्वहन में प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना होता है। शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में ऐसा ही कर रहे हैं। वे ऐसा महज पिछले आठ साल में मुख्यमंत्री के रूप में ही कर रहे हो ऐसा भी बिल्कुल नहीं है। अब तक का उनका जीवन-क्रम बताता है कि आपातकाल के दौर में अपनी कच्ची उम्र में ही वे लोकतंत्र की रक्षा के उद्देश्य से कारावास जा चुके हैं। महज 13 वर्ष की उम्र में अपने गृह ग्राम जैत में मजदूरों को पूरी मजदूरी दिलाने के लिये गांव भर में जुलूस निकाल चुके हैं। इसके बाद विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा में विद्यार्थियों और युवाओं के लिये काम उन्हें अपरिमित राजनैतिक अनुभव देता है। सन 1990 में अल्प समय के लिये विधायक और फिर विदिशा से लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतकर 14 वर्ष तक की संसद सदस्यता ने उन्हें जो राजनैतिक परिपक्वता दी वह उन्हें कर्मठ जननेता और जनसेवी बना चुकी है। श्री चौहान अपने को प्रशासक नहीं जनता का विनम्र सेवक मानते हैं। उनकी अपरिमित ऊर्जा और कुछ करने की तड़प, धारा को विपरीत दिशा में मोडऩे का माद्दा और असंभव को संभव बनाने वाली जिद का सफल उदाहरण है उनका अब तक का सफर।
निरन्तर दो कार्यकाल पूरा करने वाले और तीसरे कार्यकाल का प्रारम्भ करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जब प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभाला था तो वह एक तरह से काँटों का ताज था। एक तरफ भारी जनाकांक्षाओं का बोझ था, जिसके चलते दस वर्ष पुराने शासन को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
प्रदेश के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को निर्विघ्न चलाने और अपने कामकाज के आधार पर फिर से जनादेश प्राप्त कर 165 सीट लाकर कांगे्रस को पिछली बार की अपेक्षा और अधिक कमजोर कर दिया, आज कांग्रेस अपनी स्थिति को लेकर गंभीर सदमे जैसी स्थिति में है, उसे सूझ ही नहीं रहा कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? कांग्रेस के नेताओं ने जिस प्रकार से प्रचार किया उससे तो ऐसा ही लगने लगा था कि कांग्रेस की स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन कांगे्रस की अंदर की राजनीति क्या गुल खिला रही थी, इसकी कल्पना शायद किसी को भी नहीं थी। चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस में जिस प्रकार की बयानबाजी की जा रही है, वह इस बात का द्योतक है कि कांग्रेसी मध्यप्रदेश में अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं, कि अब आगे क्या होगा? कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान के आगे अब कांग्रेस उठ ही नहीं सकती। ऐसा माद्दा केवल शिवराज सिंह चौहान के ही पास है जो विरोधी दलों को यह सोचने को विवश करता है कि भविष्य में शिवराज सिंह चौहान अगर इसी प्रकार से काम करते हैं, तब यह तो प्रदेश के हर व्यक्ति से सीधा तारतम्य स्थापित कर लेगा और फिर प्रदेश में केवल और केवल शिवराज ही होगा, और शिवराज में ऐसा करने की ललक है।