बेटी

वर

marriageआज शर्मा जी के घर में बड़ी रौनक थी, उनकीएकलौतीबेटी ममता की शादी जो थी.

 

बहुत से मेहमानों से घर भरा हुआ था, दरवाजे पर शहनाई बज रही थी, खुशियों का दौर था.

 

शर्मा जी बड़े व्यस्त थे. फेरे हो रहे थे.बेटी की विदाई के बारे में सोच सोच कर ही शर्मा दम्पति का दिल दुःख जाता था. शर्मा जी की पत्नी की आँखों से आंसू बह रहे थे. शर्मा जी भी थोड़ी थोड़ी देर में आंसू पोंछ लेते थे.फेरे हो गए, सभी दावत में व्यस्त हो गए.शर्मा जी बात बात में अपनी पत्नी से उलझ जाते थे.दोनों में कभी भीएक बात पर एकमत नहीं हो पाता था.

 

पार्टी में शर्मा जी हर किसी से बस यही कह रहे थे कि आजउनकी बिटिया के जीवन का सबसे अच्छा दिन है, वो एक राजकुमार जैसे इंसान से शादी कर रही है, जो उसे राजकुमारी की ही तरह रखेंगा.

 

ममता बहुत खुश थी, बस उसके मन में एक ही उदासी थी कि उसे अब ये पीहर का घर छोड़कर जाना होंगा. उसे पता है कि उसके पिता की वो सबसे बड़ी कमजोरी है वो कैसे उसके बिना रह पायेंगे. बस यही सोच उसके मन में चल रही थी. एक और बात थी जो उसे बहुत परेशान कर रही थी, वो थी उसके माता पिता का आपस में बार बार हर दूसरी-तीसरी बात में लड़ना. वो सोच रही थी और फिर उसके मन में एक विचार आया.

 

दावत करीब ख़त्म होने पर थी. थोड़ी देर में ही विदाई की रस्म थी.

 

ममता स्टेज पर पहुंचीऔर उसने माइक पर सबको संबोधन करना शूरू किया.

 

“आप सभी का धन्यवाद कि आप लोग यहाँ आये. मेरे पिताजी और माताजी का आप सभी ध्यान रखना क्योंकि मेरे जाने के बाद वो अकेले ही हो जायेंगे. मैं एक बात कहना चाहती हूँ. मेरे पिता से और सभी लडकियों के पिताओं से. आप हम लड़कियोंको बड़े प्यार से पालते है और शादी करते समययही चाहते है किहमें पति के रूप में कोई ऐसा इंसान मिले जो हमें राजकुमारी की तरह रखे और एक ऐसी ज़िन्दगी दे, जो परीकथाओ जैसी हो.”

 

सब शांत हो गए थे. सभी ध्यान से  ममता की बाते सुन रहे थे.

 

ममता ने आगे कहा, “ आप सभी से मैं एक ही बात कहना चाहूंगी कि क्या आपने जिस लड़की से ब्याह किया है, उसे क्या आपने राजकुमारी की तरह रखा, क्या उसे परिकथा जैसा जीवन दिया. उसके साथ लड़ने झगड़नेमें जीवन गुजारने के अलावा क्या आपने उसे वो सारी खुशिया दी, जिनकी कल्पना, उनके पिता ने आपके साथ उनकीशादी करवाते वक़्त की थी या जैसे मेरे पिता इस वक़्त मेरे लिए कर रहे है, यादुसरे पिता अपनी बेटियों के लिए करेंगे.”

 

हाल में सन्नाटा छा गया था. ममता की माँ की आँखे मानो बारिश बरसा रही थी. हाल में मौजूद कई स्त्रियाँ रो रही थी, पुरुष चुप थे. शर्मा जी का सर झुक सा गया था.

 

ममता ने फिर कहा, “अब भी समय है, मेरे जाने के बाद या आपकी बेटियों की विदाई के बाद आप उस औरत के साथ वही व्यवहार करिए, जो आप अपनी बेटी के साथ उसके पति या ससुराल के द्वारा होते देखना चाहते है.इससे उन औरतो को उनका खोया हुआ मान मिलेंगा, उनके पिता के चेहरोंपर ख़ुशी आएँगी और आप सभी को जीने का एक नया सहारा मिलेंगा. बस मेरी इतनी सी बात मान लीजिये, यही मेरी सच्ची विदाई होंगी.”

 

ये कहकर ममता नीचे आ गयी, उसकीमाँ और पिता ने उसे गले से लगा लिया, सारा हाल तालियों  की गड़गड़ाहट से गूँज गया था.

 

एक बेटी ने अपना हक अदा कर दिया था.

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विजय कुमार सप्पाती
मेरा नाम विजय कुमार है और हैदराबाद में रहता हूँ और वर्तमान में एक कंपनी में मैं Sr.General Manager- Marketing & Sales के पद पर कार्यरत हूँ.मुझे कविताये और कहानियां लिखने का शौक है , तथा मैंने करीब २५० कवितायें, नज्में और कुछ कहानियां लिखी है

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