आजादी की दूसरी लड़ार्इ ग्राम निर्माण के लिए होनी चाहिए

अखिलेश आर्येन्दु

मौजूदादौर में देश में चल रहे तमाम आंदोलनों की दिशा देश से भ्रश्टाचार की समापित, बढ़ते पलायन और बढ़ती गैरबराबरी को लेकर है। ऐसा कोर्इ आंदोलन नहीं दिखार्इ पड़ रहा है जो ग्राम स्वराज के लिए हो। अन्ना का चलाये गए आंदोलन भी केवल इस दिशा में नहीं रहा कभी। जबकि इस आंदोलन से सारे देश की तस्वीर बदल सकती है। हां, अन्ना जरूर कहते रहे हैं, उनका आंदोलन गांधी के ग्राम स्वराज को लेकर है। गौरतलब है गांधी जी ने कहा था, जब तक गांवों के लोगों को अपने विकास, कार्य और कानून बनाने के लिए अधिकार नहीं मिल जाते तब तक असली लोकतंत्र देश में नहीं आ सकता है। इसके अलावा किसान, मजदूर और गरीबों की दशा सुधारने की दशा के बारे में भी पहल करने की बात कही। आजादी के बाद ग्राम निर्माण के क्षेत्र में अभी तक कोर्इ सार्थक पहल नहीं की गर्इ है जिससे गावों का विकास होता और हर स्तर पर बेहतरी आती। जाहिरतौर पर गांवों से षहरों की तरफ हो रहे पलायन की वजह गांवों में खुषहाली का अभाव और समस्याओं का बढ़ते जाना है। आजादी के बाद गांवों में समस्याएं लगातार बढ़ती गर्इं और आज स्थिति यह हो गर्इ है कि उन समस्याओं से निजात पाने के लिए लोग षहरों की तरफ भाग रहे हैं।

गांवों के नवनिर्माण को गांधी जी देश और सारे समाज का असली निर्माण मानते थे। लेकिन इस सबसे महत्त्वपूर्ण विशय को आजादी के बाद ही क्रेन्द्र में आर्इ कांग्रेस सरकार ने नजरअंदाज करना षुरु कर दिया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि गांव और गरीब विकास और उन्नति की दौड़ में लगातार पिछड़ते चले गए। और आज तो स्थिति यह हो गर्इ है कि लोग गांवों में रहना ही नहीं चाहते हैं। इसका

सबसे बड़ी वजह गांवों में हर तरह की सुविधाओं और विकास का अभाव। मूलभूत सुविधाओं से भी लाखों गांव नहरूम हैं। आजादी के बाद से देश में गौरबराबरी, भ्रश्ठाचार अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, गरीबी और मंहगार्इ इतनी तेजी से बढ़ी कि चारों तरफ समस्याओं का ठेर नजर आने लगा। और आज स्थिति तो यह है कि देश इतने अधिक समस्याओं से घिर चुका है कि गिनाया ही नहीं जा सकता है। जिधर देखों उधर ही समस्याओं के ठेर नजर आते हैं। ये समस्याएँ समाज के हर वर्ग को असर नहीं डाल रहीं हैं बलिक भारत जो गांवों मे बसता है या षहरों में झुग्गी-झोपडि़यों में बसता है। अब एक ही देश में भारत और इणिडया साफतौर दो देश दिखार्इ देने लगे हैं। भारत गांवों, झुगिगयों और फुटपाथों पर बसता है और इणिडया षहरों या नगरों के आलीशान वातानुकूलित कोठियों या महलों में । श्री अन्ना गांवों और झुगिगयों में बसने वाले भारत के नवनिर्माण की बात कह रहे हैं। वे देश को भ्रश्टाचार, पापाचार, अपराध, हिंसा, गैरबराबरी, अशिक्षा और अन्याय से छूटकारा दिलाकर एक बेहतर भारत के नवनिर्माण की बात कह रहे हैं। वाकर्इ में देखा जाए तो देश के लिए अभिशाप बन चुकीं इन समस्याओं को जब तक हल नहीं निकाल दिया जाता तब तक भारत का पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता है।

जिस तरह से अन्ना के इस आंदोलन ने युवाओं में देश प्रेम का जो जज्बा पैदा किया है उससे कर्इ तरह उम्मीदें जगी हैं। लेकिन जो जज्बा युवाओं में जगा है उसे बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है। जो जागरण देशभर के युवाओं में हुआ है उसे ग्राम्य निर्माण के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस आंदोलन की आधी में संयम रखना जरूरी है। आधी के बाद जिस तरह से संनाटा पसरता है, ऐसी स्थिति न बन जाए, इसपर शिददत से गौर करना जरूरी है ।

1 COMMENT

  1. आज शहरों की स्थति गाँव से बदतर होती जा रही है कारन रोटी खाकर सोने वाला भी शहर की शानो शोकत मैं रना चाहता है फुटपाथ पर सो सकता है. शहर की गलियों मैं घूम सकता है लेकिन गाँव मैं नहीं कुछ कर सकता है. इस सभी के लिया जिमेदार है सर्कार नेता राजनेता. हर गाँव से आने वाला नेता भी शहर मई अपना डेरा दल देता है कमिसन की कमी करता है लेकिन जनता के सेवा के लिया उसके पास अपने क्षेत्र मैं जाने के लिया समय नहीं है जनता उससे मिलने का लिया कज्र्जा लेकर शहर हजारों किलोमीटर दूर आती है और फुटपाथ पर सो कर वापस चली जाती है नीरस होकर यहों सब कुछ राम भरोसे होता है आज कोई निस्वार्थ सेवा नहीं करना चाहता

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