जग मोहन ठाकन
हाल में राजस्थान की भाजपा सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य में वर्ष १९७५-१९७७ के दौरान मीसा एवं डी आई आर के अंतर्गत राज्य की जेलों में बंदी बनाये गए राज्य के मूल निवासियों को पेंशन दिए जाने सम्बन्धी “ मीसा एवं डी आई आर बंदियों को पेंशन नियम २००८ “ में कुछ संशोधन कर इसे बहाल किया है ! भाजपा सरकार ने २००८ के अपने पूर्व के कार्यकाल में मीसा बंदियों को पेंशन प्रारम्भ की थी , परन्तु कांग्रेस सरकार ने २००९ में सत्ता में आते ही इसे बंद कर दिया था ! अब भाजपा ने पुनः सत्ता सँभालते ही पेंशन को दोबारा से
शुरू करने का फैसला लिया है ! संशोधन के अनुसार पेंशन नियम २००८ के पैरा १०( क ) में वर्णित सभी मीसा व डी आई आर बंदियों एवं बंदियों की पत्नी या पति को अब हर महीने राजस्थान सरकार की तरफ से १२ हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी ! साथ ही सभी पेंशनर को पेंशन के साथ एक हजार दो सौ रुपये प्रतिमाह चिकित्सा सहायता भी नगद दी जाएगी , जिसके लिए किसी भी प्रकार का बिल प्रस्तुत नहीं करना होगा ! यह सुविधा १ जनवरी,२०१४ से लागु होगी ! सरकार के इस कदम पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने इस फैसले के प्रति सरकार का आभार प्रकट किया है ! दूसरी तरफ कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है ! प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार मीसा बंदियों के लिए पेंशन लागु करके सरकारी खजाने से अपनी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को लाभ पहुँचाने हेतु जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग कर रही है !
विचारणीय प्रश्न यह है की क्या किसी राजनितिक पार्टी द्वारा अपने राजनैतिक हित के लिए सरकारी खजाने से अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को पेंशन दिया जाना या कोई आर्थिक लाभ पहुँचाना जनहित में उचित है ? पर इस प्रश्न पर विचार करने से पहले यह जानना भी उचित रहेगा कि आखिर मीसा बंदी हैं कौन ? १९७५ में जब इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन नसबंदी व अन्य जन दमनकारी नीतियों के विरोध में जनता में आक्रोश प्रस्फुटित होने लगा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने इस आक्रोश से साधारण तरीकों से निपटने में असफलता के बाद देश में आपातकाल की घोषणा कर दी तथा आंतरिक सुरक्षा के नाम पर मेंटेनेंस आफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट यानि मीसा लागु कर दिया ! जिसके तहत सरकार के खिलाफ जनता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करने वाले विभिन्न राजनैतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया ! लगभग सभी विरोधी पार्टियों के बड़े नेता मीसा में बंदी बनाये गए थे ! लोगों ने मीसा ( MISA ) को मेंटेनेंस आफ इंदिरा संजय एक्ट नाम देकर खूब नारे बाजी की थी ! जबरन नसबंदी के खिलाफ भी खूब विरोध पनपा था और –“ नसबंदी के तीन दलाल , संजय , शुक्ला , बंसीलाल “ का नारा जन जन की जुबान पर चढ़ गया था !
१९ माह तक जेल की रोटियां खाने के बाद १९७७ में कांग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर के चलते विभिन्न राजनितिक पार्टियों के जमावड़े के रूप में जनता पार्टी की सरकार बनी ! वर्तमान भाजपा के भी अधिकतर बुजुर्ग नेता उस समय के आन्दोलनों में किसी न किसी दल के साथ भाग ले रहे थे ! भले ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर था , परन्तु राजनैतिक नेताओं का आन्दोलन कांग्रेस को हरा कर सत्ता प्राप्ति मुख्य ध्येय था ! वर्तमान भारतीय जनता पार्टी , राष्ट्रीय स्वम् सेवक संघ तथा पुराने जनसंघ के अधिकतर सक्रिय कर्येकर्ता व नेता कांग्रेस विरोधी आन्दोलनों में शामिल रहते थे !
परन्तु क्या राजनैतिक उदेश्यों के लिए यानि सत्ता प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा किसी दूसरी विरोधी सत्तासीन पार्टी के खिलाफ चलाये गए आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारों को सरकारी खजानों से आर्थिक लाभ पहुँचाना जनहित में सही कदम है ? क्या जनता से वसूले गए टैक्स व जनधन से ,अपनी पार्टी के कार्यकर्तायों व नेताओं को मात्र इस आधार पर कि उन्होंने विरोधी पार्टी को सत्ताच्युत करके अपनी पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की है . सरकारी खजाने से बंदरबांट करना उचित है ?
सरकार चाहे कितने ही बहुमत से क्यों न बनी हो वो सरकारी धन की कस्टोडियन है मालिक नहीं ! और कस्टोडियन अपने या स्वजनों के स्वार्थ साधने के लिए जनधन का दुरूपयोग करे , कदापि सही कदम नहीं हो सकता ! पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं को सम्मान देना किसी भी पार्टी का अधिकार भी है और कर्तव्य भी ! परन्तु ऐसा पार्टी के अपने फण्ड से किया जाये तो ही जनता में अच्छा सन्देश जाता है ! चिंता की बात तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान सरकार द्वारा डाली गई यह पेंशन की लीक कहीं भविष्य में खजाना लूट की परम्परा न बन जाये ! अत जरुरत है पुनर्चिन्तन की तथा दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए फैसले करने की !
१९७५-७७ का आपातकाल जिसे इंदिरा गाँधी ने लोकतंत्र और सम्विधान का गला घोंट कर देश पर थोपा था, न सिर्फ अन्यायपूर्ण था बल्कि असंवैधानिक भी था. बिना किसी अपराध के लोकनायक जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, चंद्रशेखर, चरण सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के अतिरिक्त देश के लाखों नागरिकों को मीसा और डीआई आर में गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया. आपातकाल काल के दौरान देशवासियों का संघर्ष देश, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए था. आज़ादी की यह दूसरी लड़ाई थी जिसमें कांग्रेस को छोड़ पूरा देश एक साथ था. जनसंघ, कम्युनिस्ट, जमाते इस्लाम, संगठन कांग्रेस सभी आज़ादी की इस दूसरी लड़ाई में एक साथ थे. पुरे देश ने इंदिरा गाँधी के खिलाफ क्रांति की थी. परिणाम भी आया. चुनाव हुए और इंदिरा की तानाशाही का अंत हुआ. देश में लोकतंत्र फिर से बहल हुआ. अतः उस संग्राम को राजनीतिक और सिर्फ एक पार्टी का कहना सत्य को झुठलाने के सामान है. उन्हें सम्मान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह पेंशन देना सर्वथा उचित है. कृपया ऐसे नेक निर्णय पर प्रश्नचिह्न न उठायें. धन्यवाद.
स्वंतंत्र व सटीक टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् . आशा है भविष्य में भी विचार अभिवक्ति करते रहेंगे . जग मोहन ठाकन