ओ मेरी प्रिय संगिनी,अष्ट भुजंगिनी,लड़ाकू दंगिनी,
नमन करता हूँ तुमको अपने ह्रदय के अंतर्मन से,
और खुदको समर्पित करता हूँ तुम्हे अपने तन मन से,
मत मारी गयी थी मेरी जब तुम्हे प्रेम का प्रस्ताव दिया था,
और किस मनहूस घडी में तुमने वो स्वीकार किया था,
मेरे दोस्त मुझे जोरू का ग़ुलाम बुलाते हैं तो कभी चूसा हुआ आम बुलाते हैं,
पर मुझे तो ताने सुनने पड़ते हैं,फूलों में कांटे चुनने पड़ते हैं,
रातों को सोने नहीं देती हो, दिन में खाने नहीं देती हो,
अकेला छोड़ती नहीं हो,और न ही कहीं जाने देती हो,
मुझ पर एक कृपा क्यों नही करती,ज़मीन पर एक गड्ढा क्यों नहीं करती,
फिर उसमे एक खूटा गाढ़ दो और मेरी गर्दन को उससे बांधदो,
पहले बताया होता तो एक कुत्ता लाके देता,
उसे बाँधने के लिए एक पट्टा लाके देता,
किताबो से दिल नहीं लगता,बिना पढ़े काम नहीं चलता,
दिन भर तुम्हारे साथ रहूँ,रात को फ़ोन पर बात करूँ,
चेहरा ऐसा फ्लैट हुआ है,बस एक ही भाव उसपे सेट हुआ है,
हंसता हूँ तब भी रोता हूँ, और जब सोता हूँ तब भी रोता हूँ,
सबके साथ होते हुए भी सबके साथ नहीं भी होता हूँ,
मेरी मुख मुद्रा पर लोग भी हंसने लगे हर बात पर ताने कसने लगे,
कन्या नामक बला से मन ही अब निकल गया,
इश्क़ का भुखार कुछ ही दिन में उतर गया,
बस अब दूर रखूँगा इसे अपने तन मन से,
और देवी नमन करता हूँ तुमको अपने ह्रदय के अंतर्मन से।