भारतीय भूकम्प से नुकसान को रोकने की एक पहल
मनोज श्रीवास्तव ‘‘मौन’’
अठ्ठारह सितम्बर की शाम हो रही थी अभी सूरज आधा ही डूबा था समय छः बजकर ग्यारह मिनट ही हो रहा था। तभी सिक्किम स्थित मंगल में छः दशमलव आठ की रिक्टर तीव्रता का एक जोरदार भूकम्प आया जिसने उत्तर पूर्वी भारत के साथ साथ इससे सटे हुए नेपाल और तिब्बत के काफी हिस्सों में जोरदार नुकसान किया। इसमें नेपाल का विराट नगर जिले में भी काफी क्षति हुई। इस भूकम्प ने सिक्किम में गैगटोंक, मंगन सहित तिब्�¤ �त के काफी भाग में क्षति पहुचायी। भारत में छः दशमलव आठ की तीव्रता का इससे पूर्व में 29 मार्च 1999 में उत्तराखण्ड के चमोली जिले में भी भूकम्प आया था।
भारत में यह भूकम्प एक पखवारे में लगातार तीन बार भूकम्प आये। इस भूकम्प पहले 7 सितम्बर को ही 4.2 की तीव्रता वाला एक भूकम्प आया था जिसका केन्द्र बिन्दु सोनीपत था जो भारत की राजधानी दिल्ली से काफी करीब था। भूकम्प के अगले ही दिन भारत के दूसरे हिस्से में महाराष्ट्र के सोलापुर, लातूर, उस्मानाबाद तथा कर्नाटक के गुलबर्गा सहित कई क्षेत्रों में 3.9 तीव्रता वाले भूकम्प के झटके दर्ज किए गये।
भारतीय भूकम्प के प्रमाणिक इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि यह लगभग 191 वर्ष पुराना है। सबसे प्राचीन दर्ज भूकम्प 16 जनवरी 1819 में गुजरात के कच्छ में 8 तीव्रता वाला था और वर्तमान में आया भूकम्प 6.8 तीव्रता वाला सिक्किम में 18 सितम्बर को आया था। भारत में अब तक सबसे तीव्रतम भूकम्प 12 जनवरी 1897 में शिलांग में 8.7 की तीव्रता का आया था जो कि वर्तमान में सिक्किम में आये भूकम्प के काफी करीब आने वा�¤ �ा भूकम्प था। यदि अन्तराल को गौर किया जाय तो यह लगभग 114 वर्ष पर आया है जो पहले आये भूकम्प से थोड़ी ही कम तीव्रता का रहा है। 16 जनवरी 1819 से लेकर सितम्बर 2011 तक भारत में आये भूकम्प पर एक नजर दौड़ाने पर एक बात सामने आती है कि यहां पर 6 तीव्रता से लेकर 8.7 तीव्रता वाले भूकम्प आते रहे है। भारत में विभिन्न तीव्रता वाले आये भूकम्प में राज्यवार जम्मू काश्मीर, अरूणान्चल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में एक-एक बार हिमान्चल प्रदेश, विहार नेपाल सीमा, उत्तराखण्ड में दो-दो बार, गुजरात में अकेले ही कच्छ में दो बार और भुज में एक बार आया। अण्डमान व निकोबार में तीन बार, आसाम में चार बार और सिक्किम नेपाल तिब्बत सीमा पर अभी सितम्बर माह में आये हैं।
भारतीय क्षेत्र में हिमालयी श्रृंखला भूकम्प के लिए अतिसंवेदनशील मानी जाती है क्योंकि भारतीय प्लेट हर वर्ष करीब 2 सेन्टीमीटर उत्तर की ओर युरेशियन प्लेट की ओर खिसक रही है। यह सिलसिला आज से पचास लाख वर्ष पहले से शुरू हुआ है जिसके कारण ही हिमालय पर्वत श्रृंखला का निमार्ण हुआ है। जब दो चट्टाने अपने आप को स्थापित करने के लिए खिसकती है तो एक दूसरे के उपर या नीचे हो जाती है जिसमे विशाल म ात्रा में उर्जा उत्पन्न होती है जो सिस्मोग्राफ के माध्यम से पता लगायी जाती है। इस तरह के भूकम्प को ‘स्ट्राईक-स्लिप’ कहते है। भूकम्प विभाग रूड़की के एम.एल.शर्मा के अनुसार सिक्किम या हिमालय क्षेत्र में आने वाले अन्य भूकम्प अन्य भूकम्प से अलग होते है। दरअसल ये दो भूगर्भीय रेखाओं यानी लीनियामेन्ट्स से जुड़ी होती हैं। एक लीनियामेन्ट्स का रूख 220 डिग्री है जिसे कंचनजंगा लीनियामेन्ट् स कहते हैं दूसरा लीनियामेन्ट्स 130 डिग्री का रूख लिए हुए है जिसे तीस्ता लीनियामेन्ट्स कहते हैं। इस तरह के क्षेत्र में होने वाले भूकम्प को ‘डिप-स्लिप’ कहते हैं। सिक्किम में आये भूकम्प की वजह इन्हीं दोनों लीनियामेन्ट्स के टकराहट वाले क्षेत्र में होने की वजह से यह भूकम्प डिप-स्लिप प्रकृति वाला भूकम्प था। वर्तमान में सिक्किम में आया भूकम्प भविष्य के लिए गम्भीर खतरे की ओर संकेत कर रहा है।
सिक्किम में भूकम्प से निपटने के लिए भारत सरकार के द्वारा राहत आपदा प्रबन्धन टीम को 4 घन्टे के भीतर ही भेजा गया। यह टीम एक बड़े दल के रूप में थी जिसमें राहत आपदा प्रबन्धन दल में 5500 सेना के जवानो, 2200 आई टी बी पी के जवान, 200 एन डी आर एफ के जवानों को 6 मालवाहक विमान और 15 हेलीकाप्टर के साथ सिक्किम में गये। लेकिन इस क्षेत्र में ग्राउण्ड जीरो तक पहुॅचने में लैण्डस्लाइड से राजमार्ग कई जगह से क्षतà ��ग्रस्त हो जाने और खराब मौसम खासकर बारिश होने के कारण सेना और राहत आपदा प्रबन्धन दल को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। 48 घण्टो के बाद भी पूर्णरूप से दल अपनी सेवाए नहीं दे पाया। एक ओर जहां राहत दल भूकम्प पीड़ितों तक पहुच भी नहीं पाया था तभी भारत के दूसरे हिस्से में महाराष्ट्र के सोलापुर, लातूर, उस्मानाबाद तथा कर्नाटक के गुलबर्गा सहित कई क्षेत्रों में 3.9 तीव्रता वाले भूकम्प के झटके �¤ �र्ज किए गये।
धरती के हिलने की घटना से होने वाले विनाश को जानने के लिए जापान में हुए विनाश से समूचे विश्व के लिए सबक है। भारत में जमीन के टुकड़ों को गगनचुम्बी आकार देने में कहीं न कहीं हम भूकम्परोधी, अग्निशमन, तथा पर्यावरण आदि के मानकों के उपकरणों रहित अवस्था में भी इजाजत दे कर काम कर रहे हैं जिससे भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदा में जानमाल के अधिकाधिक नुकसान को दावत देने में मदद ही कर रहे हैं। भारत को विगत 20 वर्षों में कई बार भूकम्प, भूस्खलन और धरती फटने जैसी तमाम प्राकृतिक आपदाओं से रूबरू होना पड़ रहा है। इस तरह के विनाश से होने वाली अनुमानित क्षति भारतीय अर्थव्यवस्था (जीडीपी) का 2 प्रतिशत वार्षिक खर्च करने पर विवश होना पड़ रहा है। अखिल विश्व में केवल भूकम्प से सबसे ज्यादा नुकसान जापान को हुआ है।
भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तराखण्ड, गुजरात, असम, सिक्किम, अरूणान्चल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमान्चल प्रदेश, जम्मू काश्मीर व आंशिक रूप से उत्तर प्रदेश भूकम्प से अक्सर प्रभावित होते रहते हैं। कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सम्पूर्ण भारत ही बाढ, भूकम्प, सुनामी, भूस्खलन व धरती फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहा है। जिससे प्रभावित होने वाले लोगों को संवारनà �‡ में खरबों रूपये भारत सरकार के प्रतिवर्ष ही खर्च हो रहे हैं। आज सरकार के साथ ही निमार्ण के लिए एक भी ईंट रखने के पूर्व भूकम्परोधी, अग्निशमक, पर्यावरण संरक्षण, भूर्गभ जल संचयी आदि उपकरणों के प्रयोग को सुनिश्चित करके सामाजिक दायित्वों का निवार्ह सभी के अनिवार्य करने की आवश्यकता है। आपदा काल के लिए संरक्षण की दृष्टि से उपयुक्त स्थान का भी ध्यान रखने की जरूरत है और साथ ही पुरानी जीर्णशीर्ण इमारतों को भी उचित प्रबन्धन देने की आवश्यकता है। पर्याप्त पर्यावरणीय नियंत्रणों का प्रयोग भी आवश्यक है ऐसा करने के लिए सरकारी बजट के माध्यम से भी जनता के सुविधा सरकार को सस्ती और सर्वसुगम करने की आवश्यकता है तभी हम प्राकृतिक आपदाओं में सरकार के नुकसान को कम कर सकते है और जान माल को भी सुरक्षा प्रदान कर पायेंगे।
लेख में काफी जानकारी है
लेख बहुत उत्तम है