मौन

2
174

विजय निकोर

तुम्हारी याद के मन्द्र – स्वर

धीरे से बिंध गए मुझे

कहीं सपने में खो गए

और मैं किंकर्तव्यविमूढ़

अपने विस्मरण से खीजता

बटोरता रहा रात को

और उस में खो गए

सपने के टुकड़ों को |

कोई गूढ़ समस्या का समाधान करते

विचारमग्न रात अँधेरे में डूबी

कुछ और रहस्यमय हो गयी |

यूँ तो कितनी रातें कटी थीं

तुमको सोचते-सोचते

पर इस रात की अन्यमनस्कता

कुछ और ही थी |

 

मुझे विस्मरण में अनमना देख

रात भी संबद्ध हो गयी

मेरे ख्यालों के बगूलों से

और अँधेरे में निखर आया तुम्हारा

धूमिल अमूर्त-चित्र |

मै भी तल्लीन रहा कलाकार-सा

भावनायों के रंगों से रंजित

इस सौम्य आकृति को संवारता रहा

तुमको संवारता रहा |

 

अचानक मुझे लगा तुम्हारा हाथ

बड़ी देर तक मेरे हाथ में था

और फिर पौ फटे तक जगा

मै देखता ही रहा

तुम्हारे अधखुले ओंठों को

कि इतने वर्षों की नीरवता के उपरान्त

इस नि:शब्द रात की निस्तब्धता में

शायद वह मुझसे कुछ कहें …

शायद वह मुझसे

कुछ तो कहें |alone-way

Previous articleबसंत बहार
Next articleमैने कहाँ मांगा था…
विजय निकोर
विजय निकोर जी का जन्म दिसम्बर १९४१ में लाहोर में हुआ। १९४७ में देश के दुखद बटवारे के बाद दिल्ली में निवास। अब १९६५ से यू.एस.ए. में हैं । १९६० और १९७० के दशकों में हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में कई रचनाएँ प्रकाशित हुईं...(कल्पना, लहर, आजकल, वातायन, रानी, Hindustan Times, Thought, आदि में) । अब कई वर्षों के अवकाश के बाद लेखन में पुन: सक्रिय हैं और गत कुछ वर्षों में तीन सो से अधिक कविताएँ लिखी हैं। कवि सम्मेलनों में नियमित रूप से भाग लेते हैं।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here