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मौन - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विजय निकोर तुम्हारी याद के मन्द्र - स्वर धीरे से बिंध गए मुझे कहीं सपने में खो गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ अपने विस्मरण से खीजता बटोरता रहा रात को और उस में खो गए सपने के टुकड़ों को | कोई गूढ़ समस्या का समाधान करते विचारमग्न रात अँधेरे में डूबी…