सहिष्णुता का समीकरण

1
276

डॉ. मधुसूदन

(एक) कुछ प्रश्न:
प्रश्न (१): सहिष्णुता शब्द किस भाषा का है?
उत्तर(१): अंग्रेज़ी का तो लगता नहीं। फिर क्या अरबी का है, या फारसी का है?
नहीं। तो लातिनी, ग्रीक इत्यादि में से किस भाषा का है?
नहीं जी, यह शब्द तो हिन्दी का है।
पर महाराज, हिन्दी में कहाँ से आया?
अब क्यों हमारी परीक्षा ले रहे हैं, आप?
लगता तो है संस्कृत का। संस्कृत में ही ऐसे सुंदर सुसंस्कृत शब्द होते हैं।
संस्कृत में, गाली तो एक भी नहीं है। आप किसी को मूर्ख, महामूर्ख, मूर्खशिरोमणि कह सकते हैं।{कोई प्रतिक्रिया?}
और संस्कृत है हिन्दू धर्म की भाषा। यह तो निर्विवाद है। तो यह शब्द और सहिष्णुता हिन्दुत्व की देन है। हो गया प्रमाणित। {प्रतिक्रिया–>तो क्या हुआ?}
ये तो चमकते सूरज जैसी सच्चाई है। {प्रतिक्रिया==>तो, इसे कहने की क्या आवश्यकता?}
अच्छा बुद्धिमानों और एक समीकरण पर विचार कीजिए।
कौनसे?

(दो) भारत –हिन्दू=?
पल भर मान लो, कि, भारत से हिन्दुत्व यदि हटा दिया जाए, तो क्या होगा?
{तो मज़ा आ जाएगा।}
उत्तर: सरल है; सीधा पाकिस्तान ही होगा। {चलाइए लेखनी, प्रतिक्रिया दीजिए।}
पर मैं आप को नहीं पूछूँगा कि किसी और मत को हटाने से क्या होगा?
वैसे मुझे कुछ अभारतीय लोगों ने ऐसे प्रश्न अवश्य पूछे हैं।
{प्रतिक्रिया: आप कपोल कल्पित मनगढन्त बात तो नहीं बोल रहे? उत्तर हाँ जी, मैं झूठ बोल रहा हूँ।}
ऐसे प्रश्न क्यों नहीं पूछूंगा? क्यों कि मैं सहिष्णु हूँ; और आपकी स्वतंत्र विचार-शक्ति और विवेक में मुझे विश्वास है। बिना पूछे भी आप समझ तो सकते हैं।
अच्छा; यदि आप विचार करने में मानते हैं, तो, बात आगे बढाना चाहता हूँ।
बढाइए बढाइए।

(तीन) सर्वधर्म समभाव:
{यह भी संस्कृत ही लगता है।}
जी हाँ, और कौनसी भाषा ऐसे उदार शब्द दे सकती है?
पर प्रश्न: क्या *सर्वधर्म-समभाव* सिद्धान्त के अंतर्गत हम उन मतों को भी समान मानते हैं, जो अपने मत के सिवा दूसरे किसी को अपने बराबर (समान) मानते ही नहीं? कुछ तो दूसरे मतों का अस्तित्व भी सह नहीं सकते।
उत्तर: जी हाँ, पर इस पर तो, हमने कभी सपने में भी सोचा नहीं था।
(चार) सहिष्णुता:
{यह भी संस्कृत शब्द है।}
क्या अर्थ है?
अर्थ है; आदर करो उनका भी जो दूसरों का आदर नहीं करते।
और? प्रेम से व्यवहार करो उनसे भी जो दूसरों से प्रेम नहीं करते।
और? अहिंसा से व्यवहार करो, उनसे भी जिन्हें हिंसा ही सिखाई गई है।
और? जो अपने मत के सिवा किसी का अस्तित्व भी स्वीकारते नहीं है; उन्हें समभाव से देखो।
कुछ सूक्ष्मता से देखने पर निम्न संभावनाएँ उभरती हैं।

(पाँच) अहिंसक संभावनाएँ:
(१)अहिंसक के प्रति अहिंसा का व्यवहार। —सही है।
(२)अहिंसक के प्रति हिंसा का व्यवहार। य तो,कदापि नहीं होना चाहिए।
(३) हिंसक के प्रति भी अहिंसा का व्यवहार (यह गलत है) वो अहिंसकों को ही खतम कर देगा। {फिर हरि हरि करते बैठना।}और सारे संसार से बची एक अच्छाई को खतम करने में सहायक बनना।
(४) हिंसक के प्रति हिंसा का व्यवहार तो सही ही होगा। {इसी लिए आतंकवादियों को दण्ड दिया जाता है।}

(छः)धर्म=रिलिजन=मज़हब?
अन्य भाषाओं की कठिनाई:
पर, एक कठिनाई और भी है,अंग्रेज़ी में धर्म के समानार्थी शब्द नहीं है। संसार की किसी भाषा में धर्म के समानार्थी शब्द नहीं है। बिलकुल किसी भी भाषा में। {टिप्पणीकार चाहे तो, ढूँढ लाएँ।}-येनिश कहता है, की भाषा के शब्द, उस संस्कृति के विकास के परिचायक होते हैं।
सहिष्णुता के लिए Tolerance शब्द प्रयोग किया जाता है। उसका अर्थ भी सहनशीलता ही होता है; सहिष्णुता नहीं।
बहुत सारे अंग्रेज़ी भाषी भी अहिंसा (Nonviolence)को अन्य मनुष्यों तक ही सीमित मानते हैं। अन्य प्राणियों की हिंसा, हिंसा नहीं मानते।
तो धर्म, रिलिजन और मज़हब इन शब्दों के अर्थ प्रत्येक मत वाला अपने अपने अर्थ के अनुसार ही करता है।

(सात)अर्थ की विकृति:
ऐसी अनर्थकारी अंग्रेज़ी से हमें अपूरणीय़ घाटा हुआ।
अचरज है, कि, भारत के बुद्धिमान भी इस घाटे को ६८ वर्ष समझ नहीं पाए?
इस विषय पर विचार करने पर ही भारत में प्रतिबंध है।
वैचारिक NO! NO!! NO!!!
शब्द लिया धर्म। इस *धर्म शब्द* के विशाल और उदार अर्थ का, संकुचन कर अर्थ को घटा दिया। दूसरी ओर थे, संकीर्ण और हीन अर्थवाले शब्द मज़हब और रिलिजन। इन शब्दों के अर्थों को बढा कर, सर पर चढा लिया। परिणाम क्या हुआ? रिलिजन और मज़हब ऐसे सर पर चढ बैठे, कि, जिस धर्म के अर्थ के साथ बराबरी भी नहीं थी; उससे भी स्वयं को बडा बताने लगे।
(आठ)विरोधाभास देखिए:
हिन्दुओं से *सर्वधर्म समभाव* की अवधारणा ली।
और फिर सबको समान मान लिया। तो क्या हुआ धर्म=रिलिजन=मज़हब? (गलत समीकरण)
हमारे शब्द का अर्थ घटाना और पराए शब्द का अर्थ बढा चढाकर बताना। और फिर दोनो को समान बताना। ये अंधेर नगरी का (अ)न्याय था।
यहाँ टके सेर रिलिजन और टके सेर मज़हब है। और फिर टके सेर है धरम।
यहाँ अंधेर नगरी और चौपट राजा का नाटक ही स्मरण हो रहा है।
जहाँ “टके सेर भाजी और टके सेर खाजा” होता है। ऐसा अंधेरनगरी का न्याय है। जो न, तर्क-सम्मत है न सयुक्तिक है।
सहिष्णु धर्म की उदारता ने असहिष्णु धर्मों को सहा है। पर असहिष्णु धर्म रत्तिभर कृतज्ञता भी व्यक्त करने से गए।
(नौ) धर्म की संस्कृत व्याख्या:
धर्म की संस्कृत व्याख्या से दो आवश्यक गुण निकलते हैं।
(१) अपने अनुयायियों का आध्यात्मिक विकास करे।
(२) अन्य मतों के अनुयायियों के साथ उसे सुसंवादिता से रहना सिखाएँ।
यदि आप अन्य मतावलम्बियों के साथ सुसंवादिता से रहना नहीं सिखाते तो आप न रिलिजन है; न मज़हब है, न धर्म है।

(दस)संसार में संतुलन
पर संसार में संतुलन भी होता ही रहता है।
दुर्जन और सज्जन दीर्घ काल तक साथ रहें, तो संतुलन सधने की प्रक्रिया भी होती है।
(१) सज्जन या तो दुर्जन से सीखकर थोडा दुर्जन बन कर संतुलन कर देता है।
ऐसा नहीं करेगा तो स्वयं खतम हो जाएगा।
(२) और साथ साथ दुर्जन भी कुछ सज्जन हो कर संतुलन बना देता है। ऐसा नहीं करेगा; तो, संसार उसकी ओर सदैव संदेह से देखेगा, और शत्रुत्व से व्यवहार करेगा। यह प्रक्रिया धीरे धीरे विस्तरित हो रही है।कुछ, विदेशों में अलिखित नीति व्यवहार में लायी जा रही है। भारत जैसे सहिष्णु ये संघर्षवादी देश नहीं है।

(ग्यारह) सद्‍गुण का आरोपण:
किसी दुर्गुणी व्यक्ति को सद्‍गुणी मानने पर कभी कभी वह सचमुच सद्‍गुणी हो जाता है। महात्माजी जैसे देश के सहिष्णु और उदार हित-चिन्तकों ने शायद यही सोचा होगा। इसे सद्‍गुण आरोपण कहा जा सकता है। दुर्जनों पर सद्‍गुणों का आरोपण कर उसे सज्जन बनाने की प्रक्रिया। लगता है, भारत के नेतृत्व ने इस प्रक्रिया का असफल(?) अनुसरण किया।

इतिहासकार डॉ. अर्नोल्ड टॉयनबी कहते हैं।
Dr Arnold Toynbee, British Historian: “It is already becoming clear that a chapter which had a Western beginning will have to have an Indian ending if it is not to end in the self-destruction of the human race. At this supremely dangerous moment in history, the only way of salvation for mankind is the Indian way.”

एक सत्य उभर कर सामने आ रहा है, यदि मानव जाति को, सर्वनाश से बचना है; तो, जिस अध्याय का प्रारंभ पश्चिम ने किया, उसका अंत भारत को ही करना होगा।
इतिहास कि इस अत्यंत भयानक और निर्णायक घडी में मात्र, एक ही बचाव का रास्ता है; और वो है भारत का रास्ता। —–ब्रिटीश इतिहासकार डॉ. अर्नोल्ड टॉयनबी।

सूचना: किसी का द्वेष अभिप्रेत नहीं है। विचारकों को मात्र आवाहन है, चिन्तन का। और भारत की अतुल्य सहिष्णुता को बचाए रखनेका।

1 COMMENT

  1. उत्तम, अति उत्तम ।

    वैसे धर्म वह है जिसे धारण करने से मनुष्य सत्य को आलिंगन कर लेता है, उसको परमात्मा का ज्ञान हो जाता है । सत्यदृष्टि से देखा जाए तो religion भी वही है । Re का मतलब पुनः से है जैसे कि review, revisit, reconsider, इत्यादि; तथा legion का मतलब जोड या मिलना जैसे V.F.W. Legion No. 22 यानी वेटरन ऑफ फोरिन वार के लोगों के मिलने का स्थान या क्लब नम्बर 22। तो हम क्या करे, किन गुणो को अपने मे धारण करे कि हमे योग हो जाय अपने परमात्मा संग। वही धर्म है जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रतिहार, धारणा, ध्यान और समाधि तक ले जाकर उस सत्त, चित्त, आनन्द स्वरूप प्रीतम परमात्मा के साथ मिला कर रखता है । इसी तरह मजहब शब्द की भी खोज की जाय कि यह शब्द कहाँ से निकला, वो भाषा कब बनी, कैसे बनी, इत्यादि । चूँकि मनुष्य सभी एक ही तरीके से पैदा होते हैं, जिन्दा रहते हैं और मरते है मात्र भिन्नताए मनुष्य ने बनाई है । इसलिए सर्वधर्म समभावः सद्भावना प्रेम आदर सत्कार से रह कर ही हम मनुष्यता मानवता को रखते हुए अपने मनुष्य जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने मे सफल हो सकतेहै अन्यथा कदापि नहीं।

    मधुसूदन जी को कोटि कोटि धन्यावाद जिन्होंने सहिष्णुता पर उत्तम चर्चा की ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here