अविकसित मानव बच्चे की सच्ची कहानियां (चार )
डा. राधे श्याम द्विवेदी
एक सात या आठ माह का लड़का यातो खो गया था या मां बाप द्वारा छोड़ दिया गया था। न जाने कैसे वह चिकारों के झुण्ड में पहुच गया था। वह उनमें घुल मिल गया और उनके साथ रहने के कारण उसका विकास भी चिकारों की तरह हुआ था। उसकी मांसपेशियां, खोपड़ी, नाक और कान उसी चिकारों के अनुरूप ही विकसित हो गई थी। वह रेगिस्तान में जड़ों को खाने का आदी हो गया था। वह छिपकली व कीड़ा भी खा जाता था। उसके किनारे के दांत शाकाहारियों की तरह के थे। उसके हाथ पैर बहुत पतले तथा मांस पेशिया सुडौल थीं।
वास्क देश से ज्याॅ बरमा एक मानवविज्ञानी थे जो 1960 में स्पेनिश सहारा के रियो डी ओरो नामक स्थान में यात्रा कर रहे थे। उसने अगले दिन क्षितिज पर सफेद चिकारों ( गजलों ) का एक लम्बा काफिला देखा था जिनके बीच एक नग्न बालक को चलते हुए उन्होंने देखा था।
लगभग 10 वर्ष की आयु के इस लड़के को सीरिया देश के रेगिस्तान में चिकारों के झुण्ड में 1946 ई. में पाया गया था। यह लगभग 9 साल तक जंगलों व रेगिस्तान में अपना जीवन बिताया था। यह 50 मील प्रति घंटे की रफतार से दौड़ सकता था। इसे पकड़ने के लिए एक ईराकी सेना की जीप प्रयोग में लायी गयी थी। इसे हेलीकान्टर से जाल डाल कर पकडने का उल्लेख भी मिलता है। यह अपने झुण्ड से कभी हटा ही नहीं और बहुत मुश्किल से पकड़ा जा सका था। इसे आर्मेन के एक जेल में रखा गया है। इसने जेल से भागने का भी प्रयास किया था। कहा जाता है कि यह 1955 तक जिन्दा था।
9 सितमबर के लाइफ पत्रिका में इसी से मिलती जुलती एक कहानी प्रकाशित हुई थी। इसमें कहा गया है कि शिकारियों के एक समूह ने सीरिया के मैदान में चिकारों के एक झुण्ड से इस जंगली लड़के को पकड़ा था। यहां उसकी उम्र 10 साल जंगल में बिताने की बताई गयी है तथा खोज के समय वह 14 साल का बताया गया है। इसे पागल कहा गया है। इसे एक अस्पताल में लाया गया था। इस कहानी में इस बालक की गति 50 मील के बजाय 50 किमी. कहा गया है।