दिन सोमबार, दोपहर का समय सभी ओलम्पिक प्रेमियो कि नज़र टीवी स्क्रीन पर थी . शायद कोई चमत्कार भारतीय खिलाडी कर पाए. 8 स्वर्ण के साथ 14 पदक लेकर चीन शीर्ष पर था. सब यही सोच रहे थे कि आखिर कब हमारे खिलाडी पदक जीत पायेंगे? हमारा देश भी पदको कि तालिका में अपना स्थान बना पायेंगा? इस उम्मीद के साथ भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि हमें भी पदक मिल जाये .
अचानक टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आती है . भारत ने ओल्मपिक में खोला पदको का खाता. निशानेबाजी में गगन को मिला ब्रोन्ज. फिर क्या सारे भारतीय एक साथ खुशी के मारे नाचने लगे. आखिर वह हो ही गयी जिसकी उम्मीद ओल्मपिक काउंट डाउन शुरु होने के साथ ही हो गयी थी. भारतीय निशानेबाज गगन नारंग ने निशाना साधते हुए ओल्मपिक में अपना तीसरा स्थान पक्का कर लिया 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल और 2006 मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेल में 4-4 स्वर्ण पदक जितने बाले गगन ओल्मपिक में पदक जीत ही लिया.
पदक जीतते ही गगन को बधाई और पुरस्कारओं कि झड़ी लग गयी. कोई ट्विटर पर उन्हें बधाई दे रहा है तो कोई उनके घर जाकर उनके माँ-बाप को . हरियाणा सरकार ने 1 करोड रुपये देने की घोषणा कर दी . इस्पात मंत्रालय के तरफ से 20 लाख और स्पोर्ट्स ऑथारिटी के तरफ से तो सीधे कोच बनने का प्रस्ताव देने के लिए तैयार है .
गगन सिर्फ एक कांस्य ही नहीं जीता बल्कि ओल्मपिक पदक तालिका में भारत का नाम पक्का कर दिया. 6 मई 1983 को चेन्नई में जन्मे गगन को 10 मीटर एअर रायफल में तीसरा स्थान पक्का कर लिया. 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल और 2006मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेल में 4-4 स्वर्ण पदक जितने बाले गगन को 2010 में राजीव गाँधी खेल रत्न और पद्मश्री से सम्मानित किया गया. लेकिन क्यों हमें कांस्य मिला? 2004 एथेंस ओल्मपिक में तो हमें रज बर्धन सिंह राठोर ने रजत पदक, 2008 बीजिंग ओल्मपिक में हमारे निशानेबाज अभिनाब बिंद्रा ने तो कदम बढ़ाते हुये चमचमाती स्वर्ण तो अपने नाम कर लिया. फिर उम्मीद तो इस बार बढ़ ही जाती है. हम बढने के बजाए घट गये.आखिर क्यों? कहां गये हमारे अचूक निशानेबाज जिनके उपर उम्मीदें टीकी थी.? क्यों चूका निशाना ? क्या कमी रह गयी इन पदक विजेताओ में ? क्यों नहीं जीते हमारे और खिलाडी? वो तो अनुभवी थे. उनका पिछला रिकॉर्ड भी तो अच्छा था. वे भी बड़ी बड़ी पुरस्कारओं से नबाजे गये. हमारे और निशानेबाजों को क्यों 10 तक में जगह नहीं मिल पायी क्यों?
हम जनसंख्या के मामले तो सिर्फ चीन से पीछे है. जनसंख्या और छेत्र्फल्र के मामले में तो हम अमेरिका,इटली से तो आगे है फिर पदक में पीछे क्यों? पदको को कुल मिला कर देखा जाये तो हम अभी तक सिर्फ 19 पदक जीत पाए है यानि हम 22 साल में सिर्फ 19 पदक .क्या है हमारा एवरेज? आखिर क्यों नहीं हम जीत पाए हम स्वर्ण?
चलो हमें कम से कम कांस्य तो मिला. हम मुकाबला से खली हाथ तो नहीं लौटे.खैर कोई बात नहीं हम उम्मीद करते है कि बाकि सभी स्पर्धाओं में हमें स्वर्ण मिले या खली हाथ न लौटे हमारे खिलाडी. इस उम्मीद के साथ कि शायद कुछ बेहतर करे हमारे खिलाडी. इसके लिए एक बार फिर सभी खिलाडियो को सभी भारतीयों के तरफ से शुभकामनायें.