नींद तुम्हारी आंखों में

poem

-श्यामल सुमन-

नींद तुम्हारी आंखों में पर मैंने सपना देखा है

अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा हैकिसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है

बड़े लोग की सर्दी – खांसी अखबारों की सुर्खी में
फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना देखा है

धर्म-कर्म पाखण्ड बताकर जो मंचों से बतियाते
उनके घर में अक्सर यारो मन्त्र का जपना देखा है

चुपके से घायल करते फिर अपना बनकर सहलाते
हाल सुमन का जहां पे ऐसा वहीं तड़पना देखा है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here