धूम्रपान एवं तम्बाकू सेवन: खुशहाल जीवन का अजेय दुश्मन

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 राजेश कश्यप

धूम्रपान का सेवन करना, स्पष्टतः जीवन को नरक से भी बदत्तर बनाना है। इससे आर्थिक, शारीरिक और सामाजिक आदि हर स्तर पर नुकसान ही नुकसान होता है। एक तरह से धूम्रपान एवं तम्बाकू का सेवन, खुशहाल जीवन का अजेय दुश्मन कहा जा सकता है। यदि विशेषज्ञों की शोध रिपोर्टों का अवलोकन और धूम्रपान एवं तम्बाकू के कुप्रभावों का आकलन किया जाए तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में लगभग डेढ़ अरब लोग धूम्रपान करते हैं और लगभग 50 लाख लोग प्रतिवर्ष धूम्रपान के घातक प्रभावों के कारण अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन धूम्रपान करने वालों के सम्पर्क में रहने के कारण प्रतिवर्ष धूम्रपान न करने वाले 6 लाख अतिरिक्त व्यक्ति भी काल की भेंट चढ़ जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2030 तक तम्बाकू सेवन से होने वाली मृत्यु की संख्या बढ़कर 80 लाख प्रतिवर्ष हो जाएगी। एक ब्रिटिश शोधकर्ता डॉ. जॉन मूरेगिलान के अनुसार वर्ष 2050 तक धूम्रपान के कारण होने वाली बिमारियों से मरने वालों की संख्या 4 करोड़ तक पहुँच जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 18 लाख लोग तम्बाकू और सिगरेट के सेवन करने से होती हैं। एक अनुमान के अनुसार धूम्रपान के कारण होने वाले कैंसर से कुल 5.35 लाख लोगों की मौतें प्रतिवर्ष हो रही हैं, जिनमें 30 से 69 वर्ष की आयु के लोगों की संख्या 3.95 लाख है। इनमें 42 प्रतिशत पुरूष और 18 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। तम्बाकू के कारण सिर, मुंह और गले के 30 फीसदी टूयूमर होने का अनुमान भी लगाया गया है। एक अन्य अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में तम्बाकू से होने वाले कैंसर के कारण मरने वालों की संख्या एक करोड़ 15 लाख को पार कर जाएगी।

ये घातक स्थिति तम्बाकू में मौजूद अत्यन्त हानिकारक तत्व निकोटिन की वजह से है। निकोटिन से कैंसर व उच्च रक्तचाप जैसे गंभीर रोग पैदा होते हैं। तम्बाकू का विषैला प्रभाव मनुष्य के रक्त को बुरी तरह दूषित कर देता है। धूम्रपान करने वाले के चेहरे के मुख का तेज समाप्त हो जाता है। तम्बाकू से हमारी सूंघने की शक्ति, आँखों की ज्योति और कानों की सुनने की शक्ति बहुत प्रभावित होती है। निकोटिन विष के कारण चक्कर आने लगते हैं, पैर लड़खड़ाने लगते हैं, कानों में बहरेपन की शिकायत पैदा हो जाती है, पाचन क्रिया बिगड़ जाती है और कब्ज व अपच जैसी बिमारी का जन्म हो जाता है। निकोटीन से ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तदाब) बढ़ता है, रक्त-नलियों में रक्त का स्वभाविक संचार मंद पड़ जाता है और त्वचा सुन्न सी होने लगती है, जिससे त्वचा की अनेक तरह की बिमारियां पैदा हो जाती हैं। निकोटीन का धुँआ जीर्ण-खाँसी का रोग पैदा कर देता है। खाँसी का रोग बढ़ता-बढ़ता दमा, श्वाँस और तपैदिक का भयंकर रूप धारण कर लेता है।

एक पौण्ड तम्बाकू में निकोटीन नामक जहर की मात्रा लगभग 22.8 ग्राम होती है। इसकी 1/3800 गुनी मात्रा (6 मिलीग्राम) एक कुत्ते को तीन मिनट में मार देती है। ‘प्रेक्टिशनर’ पत्रिका के मुताबिक कैंसर से मरने वालों की संख्या 112 प्रति लाख उनकी है, जो धूम्रपान करते हैं। सिगरेट-बीड़ी पीने से मृत्यु संख्या, न पीने वालों की अपेक्षा 50 से 60 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों में 65 प्रतिशत अधिक होती है। यही संख्या 60 से 70 वर्ष की आयु में बढ़कर 102 प्रतिशत हो जाती है। धूम्रपान करने वालों में जीभ, मुँह, श्वाँस, फेफड़ों का कैंसर, क्रानिक बोंकाइटिस एवं दमा, टीबी, रक्त कोशिकावरोध जैसी अनेक व्याधियां पैदा हो जाती हैं। भारत में मुंह, जीभ व ऊपरी श्वाँस तथा भोजन नली (नेजोरिंक्स) का कैंसर सारे विश्व की तुलना में अधिक पाया जाता है। इसका कारण बताते हुए एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका लिखता है कि यहाँ तम्बाकू चबाना, पान में जर्दा, बीड़ी अथवा सिगरेट को उल्टी दिशा में पीना (रिवर्स स्मोकिंग) एक सामान्य बात है। तम्बाकू में विद्यमान कार्सिनोर्जिनिक्र एक दर्जन से भी अधिक हाइड्रोकार्बन्स जीवकोशों की सामान्य क्षमता को नष्ट कर उन्हें गलत दिशा में बढ़ने के लिए विवश कर देते हैं, जिसकी परिणति कैंसर की गाँठ के रूप में होती है। भारत में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि गालों में होने वाले कैंसर का मुख्य कारण खैनी अथवा जीभ के नीचे रखी जाने वाली, चबाने वाली तम्बाकू है। इसी प्रकार गले के ऊपरी भाग में, जीभ में और पीठ में होने वाला कैंसर बीड़ी पीने से होता है। सिगरेट से गले के निचले भाग में कैंसर होता पाया जाता है, इसी से अंतड़ियों का भी कैंसर संभव हो जाता है।

तम्बाकू में निकोटिन के अलावा कार्बन मोनोक्साइड, मार्श गैस, अमोनिया, कोलोडॉन, पापरीडिन, कोर्बोलिक ऐसिड, परफैरोल, ऐजालिन सायनोजोन, फॉस्फोरल प्रोटिक एसिड आदि कई घातक विषैले व हानिकारक तत्व पाए जाते हैं। कार्बन मोनोक्साइड से दिल की बीमारी, दमा व अंधापन की समस्या पैदा होती है। मार्श गैस से शक्तिहीनता और नपुंसकता आती है। अमोनिया से पाचन शक्ति मन्द व पित्ताशय विकृत हो जाता है। कोलोडॉन स्नायु दुर्बलता व सिरदर्द पैदा करता है। पापरीडिन से आँखों में खुसकी व अजीर्ण की समस्या पैदा होती है। कोर्बोलिक ऐसिड अनिद्रा, चिड़चिड़ापन व भूलने की समस्या को जन्म देता है। परफैरोल से दांत पीले, मैले और कमजोर हो जाते हैं। ऐजालिन सायनोजोन कई तरह के रक्त विकार पैदा करता है। फॉस्टोरल प्रोटिक ऐसिड से उदासी, टी.बी., खांसी व थकान जैसी समस्याओं का जन्म होता है।

जर्नल आर्काव्स ऑफ जनरल फिजिक्स के ऑन लाइन संस्करण में फरवरी, 2012 में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ। इस अध्ययन के अनुसार धम्रपान करने से दिमाग पर बेहद घातक असर होता है। खासकर 45 वर्ष की उम्र में अधिक होता है। कई विशेषज्ञों ने शोध के बाद दावा किया है कि तम्बाकू के कारण करीब 40 प्रकार के कैंसर होने का खतरा बना रहता है। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग 36 प्रतिशत लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें 20.3 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। विशेषज्ञों के अनुसार धूम्रपान पुरूषों की तुलना में महिलाओं को त्वचा का कैंसर, गले का कैंसर और इसी तरह की घातक बिमारियां अधिक होती हैं। धूम्रपान करने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए तो धूम्रपान और भी घातक होता है। इससे गर्भपात का भयंकर खतरा बना रहता है। धूम्रपान से समय से पहले बच्चा पैदा हो सकता है और बच्चे के अन्दर रक्त कैंसर की संभावनाएं भी प्रबल रहती हैं। एक शोध रिपोर्ट के अनुसार धूम्रपान से महिलाओं को स्तन कैंसर होने का खतरा सामान्य महिलाओं के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक होता है।

यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि विश्व में हर 8 सेकिण्ड में धूम्रपान की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो रही है। भारत में 20 करोड़ लोग धूम्रपान की चंगुल में हैं। देश में धूम्रपान के कारण 50 प्रतिशत पुरूष और 20 प्रतिशत महिला कैंसर का शिकार हैं। 90 प्रतिशत मुंह का कैंसर, 90 प्रतिशत फेफड़े का कैंसर और 77 प्रतिशत नली का कैंसर धूम्रपान सेवन करने से हुआ है। 45 लाख लोग दिल की बीमारी से ग्रसित हैं। 8 लाख लोगों की हर वर्ष तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने के कारण मौतें होती हैं। देश में प्रतिवर्ष 1.5 लाख व्यक्ति धूम्रपान जन्य रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।

शायद कम लोगों को पता होगा कि एक सिगरेट पीने से व्यक्ति की 5 मिनट आयु कम हो जाती है। 20 सिगरेट अथवा 15 बीड़ी पीने वाला एवं करीब 5 ग्राम सुरती, खैनी आदि के रूप में तंबाकू प्रयोग करने वाला व्यक्ति अपनी आयु को 10 वर्ष कम कर लेता है। इससे न केवल उम्र कम होती है, बल्कि शेष जीवन अनेक प्रकार के रोगों एवं व्याधियों से ग्रसित हो जाता है। सिगरेट, बीड़ी पीने से मृत्यु संख्या, न पीने वालों की अपेक्षा 50 से 60 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों में 65 प्रतिशत अधिक होती है। यही संख्या 60 से 70 वर्ष की आयु में बढ़कर 102 प्रतिशत हो जाती है। सिगरेट, बीड़ी पीने वाले या तो शीघ्रता से मौत की गोद में समा जाते हैं या फिर नरक के समान जीवन जीने को मजबूर होते हैं। भारत में किए गए अनुसन्धानों से पता चला है कि गालों में होने वाले कैंसर का प्रधान कारण खैनी अथवा जीभ के नीचे रखनी जाने वाली, चबाने वाली तंबाकू है। इसी प्रकार ऊपरी भाग में, जीभ में और पीठ में होने वाला कैंसर बीड़ी पीने के कारण होता है। सिगरेट गले के निचले भाग में कैंसर करती है और अंतड़ियों के कैंसर की भी संभावना पैदा कर देती है।

देश में बीड़ी, सिगरेट के साथ-साथ गुटखा भी खूब खाया जाता है। गुटखा भी सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है। हाल ही में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल एजुकेशन एण्ड रिसर्च, चण्डीगढ़ के एक अध्ययन के अनुसार गुटखा खाने से हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर बेहद घातक असर होता है। इससे हमारी सैक्स लाईफ बुरी तरह से प्रभावित होती है और हमारे डीएनए का भारी नुकसान पहुंचता है। जबलपुर (मध्य प्रदेश) में खाद्य एवं औषधि विभाग द्वारा गत जून माह में लिए गए कुछ ब्रांडेड और लोकल कंपनियों के गुटखों के नमूनों की जांच में खतरनाक जहर मैग्निशियम कार्बोनेट की मिलावट (2.09 से 4.2 प्रतिशत) तक पाई गई। यह मिलावट इसीलिए की जाती है, ताकि इसे एक बार खाने वाला व्यक्ति इसकी लत का हमेशा के लिए शिकार हो जाए। विशेषज्ञों के मुताबिक इस जहर से शरीर के अन्दर की म्यूकस मेम्बेन में अल्सर पैदा करता है। इससे तम्बाकू में मौजूद निकोटिन और भी घातक हो जाता है और कैंसर का कारण बन जाता है। गुटखे के बेहद घातक प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार द्वारा गुटखे पर प्रतिबन्ध की अधिसूचना जारी की जा चुकी है और उस पर अमल करते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने गत 1 अपै्रल से राज्य में गुटखे की बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध भी लगा दिया है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हल्फनामा दायर करके कहा है कि ‘खाद्य संरक्षा और मानक अधिनियम-2011’ की धारा 2.1.3 में तम्बाकू युक्त पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही है। अधिसूचना के मुताबिक गुटखा एक खाद्य पदार्थ है, इसलिए इसमें तम्बाकू और निकोटिन नहीं मिलाए जा सकते।

काफी बुजुर्गों का मानना है कि हुक्के में पानी के जरिए तंबाकू का धुंआ ठण्डा होकर शरीर में पहुंचता है। इसलिए हुक्के से तंबाकू पीने पर हमें कोई नुकसान नहीं होता है। हाल ही में जयपुर में हुए एक विषेष शोध में इस तथ्य का पता चला है कि हमारा पंरपरागत हुक्के का सेवन सिगरेट से दस गुणा अधिक हानिकारक है। जयपुर एसएमएस अस्पताल मेडिकल कॉलेज और अस्थमा भवन की टीम की रिसर्च के मुताबिक हुक्का और चिलम भी बेहद घातक है और इसे छोड़ देने में ही भलाई है, क्योंकि हुक्के में कार्बन मोनोक्साइड सिगरेट की तुलना में ज्यादा घातक है। बेहद चौंकाने वाली बात यह है कि हरियाणा में हुक्के की परंपरा के नाम पर शहरों में बड़ी संख्या में हुक्का बार खोले गए हैं। इन हुक्का बारों में दुबई, मुंबई और मुरादाबाद की मण्डियों का जहरीला तम्बाकू प्रयोग किया जाता है। प्रदेश की फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्टेªशन (एफडीए) विभाग के निरन्तर छापों के बाद यह सब चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इन हुक्का बारों में इलैक्ट्रिक हुक्के में तम्बाकू के बीच निकोटिन 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक बढ़ाकर दिया जाता है। खासकर युवा पीढ़ी में इसका घातक असर देखने को मिला है।

2 अक्तूबर, 2008 को गाँधी जयन्ती से पूरे देशभर में अधिसूचना जीएसआर 417 (ई) दिनांक 30 मई, 2008 के अनुरूप केन्द्र सरकार ने ‘सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान’ से संबंधित नियम संशोधित करके पूर्णत लागू कर दिया गया था। इन संशोधित नियमों के अन्तर्गत धूम्रपान सभी सार्वजनिक स्थानों पर सख्ती से निषिद्ध है। ‘सार्वजनिक स्थलों’ में आडिटोरियम, अस्पताल भवन, स्वास्थ्य स्थान, मनोरंजन केन्द्र, रेस्टोरेंट, सार्वजनिक कार्यालय, न्यायालय भवन, शिक्षण संस्थान, पुस्तकालय, सार्वजनिक यातायात स्थल, स्टेडियम, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, कार्यशाला, शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल, रिफ्रेशमेंट रूम, डिस्को, कॉफी हाऊस, बार, पब्स, एयरपोर्ट लॉज आदि शामिल किए गए हैं। इस एक्ट के तहत जो भी व्यक्ति उल्लंखन करेगा उस पर 200 रूपये के आर्थिक दण्ड के साथ दंडात्मक कार्यवाही करने का प्रावधान किया गया है। निश्चित तौरपर इस तरह के कानून की देश में सख्त आवश्यकता थी। भारत सरकार ने 18 मई, 2003 को तम्बाकू नियन्त्रण कानून का निर्माण किया था। मई, 2004 में देश में पहली बार धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगाया गया। इस प्रतिबंध के नियमों में मई, 2005 में संशोधन किया गया। वैसे तम्बाकू सेवन पर रोक लगाने के मामले में भारत का हमेशा अग्रणीय स्थान रहा है। इसी के चलते भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) पर भी भारत ने हस्ताक्षर किए हुए हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि ‘‘अब तक मैं यह न समझ पाया कि तंबाकू पीने का इतना जबरदस्त शौक लोगों को क्यों है? नशा हमारे धन को ही नष्ट नहीं करता, वरन स्वास्थ्य और परलोक को भी बिगाड़ता है।’’ कुल मिलाकर धूम्रपान से स्वास्थ्य, आयु, धन, चैन, चरित्र, विश्वास और आत्मबल खो जाता है और इसके विपरीत दमा, कैंसर, हृदय के रोग, विविध बिमारियों का आगमन हो जाता है। यदि हमें एक स्वस्थ एवं खुशहाल जिन्दगी हासिल करनी है तो हमें तंबाकू का प्रयोग करना हर हालत में छोड़ना ही होगा। ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। तंबाकू का प्रयोग दृढ़ निश्चय करके ही छोड़ा जा सकता है।

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