इतना तो आसान नहीं

-दीपक शर्मा ‘आज़ाद’-

poem
पंछियों के जैसे पर फैलाना, इतना तो आसान नहीं;
खुले आसमान में मंजिल पा जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 1 )

मुझे सबने अपनी उम्मीद का एक जरिया माना है ,
सबकी निगाहों से छिप जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 2 )

सच पाने की जिद में आशियाँ उजड़ गया था उनका ;
तिल-तिल कर जीना आजाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 3 )

मेहरबाँ खुदा कई बार यूँ ही बन जाता है ,
गर्दिशों में बुलंदी पा जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 4 )

तंग हाली में आजकल खुशहाली का मजा लेने लगे है लोग ,
यूँ बदहाली में खुशियां मिल जाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 5 )

बड़े दिन हो गए किसी ने पूछा ‘आज़ाद’ नहीं मिले कई रोज ,
यूँ ‘ईद का चाँद’ हो जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 6 )

सोने की मुहरों का धंधा जिनका वो भूख से मरने लगे हैं दोस्त ,
अमीरों को भुखमरी की लत लग जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 7 )

फैसला कई सूबों ने गरीब की इज्जत लूट कर किया ,
गिद्धों के सामने बोटी बच जाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 8 )

बात-बात पर जिंदगी को दांव पर लगा देते हो ,
शर्त लगे और जीत जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 9 )

तुम बेवफा हो , बड़ी जल्दी मान जाते हो ,
वरना रूठे हुए को मनाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 10 )

दोस्तों के साथ रहो ये नुस्खा है खुशियों का ,
वरना बिगड़ी तबियत ठीक हो जाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 11 )

इस बार सावन मुझसे रूठा-रूठा लगता है ,
वरना बारिश आना और मेरा न भीग पाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 12 )

मौका न दो किसी को की वो नाराज हो जाए तुमसे ,
टूटी डोर का फिर जुड़ पाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 13 )

कुछ दिन आये हो इस बस्ती में, प्यार से रहो सब मिलजुलकर ,
कल बिछुड़ कर फिर मिल पाना , इतना तो आसान नहीं ; ( 14 )

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