रवि श्रीवास्तव
महगाई और भ्रष्टाचार से परेशान ज़नता ने इस बार लोकसभा चुनाव में अपना फैसला 10 साल से राज कर रही यूपीए को ठुकराकर बीजेपी के हक़ में दिया। सरकार बने अभी एक महीने नही हुए थे कि रेल किराए और रेल भाड़े में बढ़ोतरी होने से विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। उसके बाद डीजल- पेट्रोल के दामों में बृद्धि और प्याज के बढ़े दाम ने विपक्षी दलों को सरकार पर निशाना साधने के लिए जैसे सोने पर सुहागा मिल गया हो। मोदी के 60 महीनों की मांग पर अभी एक महीने बीते है कि राजनीतिक दल उनकी आलोचनाएं करने में जरा सा नही चूक रहे है। घर के बजट को भी संतुलित करने के लिए 1 महीना कम पड़ जाता है, ऐसे में पूरे देश को अर्थव्यवस्था 1 महीने में कैसे सुधर सकती है। अब ज़नता के साथ-साथ राजनीतिक दलों को मोदी सरकार को तोड़ा वक्त ज़रूर देना चाहिए। अच्छे दिन के सलोगन पर कोई चुटकी लेता नज़र आ रहा है। जिस महगाई के मुद्दे को लेकर बीजेपी सत्ता में आई थी उसी को काबू में नही कर पा रही है।ऐसे में मोदी का बयान देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए कुछ कड़े निर्णय लेने की जरूरत है। तो क्या ये निर्णय फिर से जनता को रूलाएगें। दूसरी तरफ हम बात करें तो बीजेपी को लेकर हर राजनीतिक दल यही कह रहे थे कि ये सिर्फ हिंदुत्व के लिए है। ऐसे में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की साईं बाबा के खिलाफ विवादित टिप्पणी से पूरे देश में हड़कम्प मचा हुआ है। शंकराचार्य का यह बयान एक चिंगारी की तरह काम कर रहा है जो कभी भी भयंकर आग में बदल सकता है। वैसे शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती हमेशा से ही विवादों में घिरे रहने का नाता बना चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान एक पत्रकार को नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के सवाल पर थप्पड़ जडते हुए कहा कि राजनीति की बात मत करो पर अभी कुछ दिन पहले जम्मू में धारा 370 को हटाने के लिए मोदी सरकार से अपील की। साई बाबा के बयान पर अगर हम बात करें तो साई की पूजा बहुत वर्षों से लोग कर रहे हैं, ऐसे में पहले से इस बात का विरोध क्यों नही किया गया। इस देश में आस्था और धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा लूट होती है। इस पर किसी का ध्यान क्यों नही जाता है। कहा जाता है ईश्वर से ऊंचा दर्जा गुरू को दिया जाता है, तो साई के भक्त अगर उन्हें अपना गुरू मानकर पूजते हैं तो इसमें क्या गलत है। संविधान में सभी व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। ऐसे में व्यक्ति की स्वतंत्रता का भी तो हनन हो रहा है। अगर साई पर इतनी आपत्ति जताई जा रही है तो देश में बहुत सारे ऐसे बाबा है जिन्हें लोग अपना गुरू मानकर घर पर उनकी तश्वीर के सामने पूजा करते हैं तो उनका भी विरोध जरूर होना चाहिए। उनका भी तो उल्लेख शास्त्रों में नही है।शंकराचार्य ने कहा कि साई के मंदिर के नाम से आमदनी की जाती है। तो और जो देश में बाबा आश्रम में आस्था के नाम आमदनी करते है तो वो क्या है। निर्मल बाबा की तुलना साई से बाबा से की तो उन्हें ये पता है कि साई के नाम पर धन की उगाई की जा रही है तो निर्मल बाबा के नाम पर क्या होता है। उनके कार्यक्रम को कभी देखो तो पता चलता है कि भगवान के संदेशवाहक निर्मल बाबा है। ऐसी बाते करना अपने भक्तों से कि समोसे से चटनी मत खाओं। ऐसे अजीब गरीब उपाय जो पूर्णत: हास्य लगते हैं उसे लेकर कहते है की कृपा होगी। साथ ही समागम में जाने के लिए रूपये देना मतलब आप पर बिना पैसे खर्च किए कृपा के पात्र नही बन सकते। इस बात का विरोध क्यों नही किया गया। सिर्फ इसलिए क साई को हिंदु और मुस्लिम दोनों का प्रतीक माना गया है। जब इसका विरोध केंद्रीयमंत्री उमा भारती ने किया तो मांग उठी की उन्हें मंत्रिमण्डल से बाहर कर देना चाहिए। कहते है साधु संत दुनिया की मोह-माया से दूर रहते है पर अब क्या है अधिकतर साधु संतों के पास सारे सुख के साधन है ।जिसकी एक आम आदमी
कल्पना भी नही कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा साई की पूजा करने वालों को अपना धर्म बना लेना चाहिए तो जो हिंदु अपनी आस्था को लेकर मजार पर जाकर चादर चढ़ाते है उनपर क्या कहेंगे। किसी व्यक्ति की आस्था और सम्मान से नही खेला जा सकता है। शंकराचार्य के इस बयान से एक तरफ नागा भी उनके पक्ष में आ गए हैं तो दूसरी तरफ साई भक्त भी सड़को उतर कर उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करा रहे है। शंकराचार्य ने कहा कि अब विरोध बंद नही हुआ तो मंदिर में जाकर मूर्तियां तोड़ी जाएगी ऐसे में क्या साई के उपासक चुप बैठेगें। एक बात और है मीडिया को भी ऐसी भड़कीली बातों को लोगों के सामने नही पेश करनी चाहिए। ऐसी बात करने वाले तो हमेशा की तरह सुरक्षित रहेंगें पर इस बात को लेकर लड़ मरने वालों का नुकसान तो होना निश्चित है। जैसा कि हर दंगो में होता आया है। संत समाज को देश और समाज के हित में कार्य करने के बारे में सोचना चाहिए न कि अलग करने के बारे में। सरकार को भी समय रहते इस चिंगारी को शोले में बदलने से पहले पानी डालने की जरूरत है । नई नवेली बनी इस सरकार के सामने देश को पटरी पर लाने की इतनी बड़ी चुनौती है ऐसे में ये हालात पैदा कर सरकार के रास्ते में मुश्किलें खड़ी की जी सकती है।
अभी महगाई पर सरकार को घेरा जा रहा है पर समय रहते इस बात को न दबाया गया तो इस भंयकर होने वाले परिणाम पर भी घेरा जाएगा। ऐसे में सरकार को अपना हर कदम फूंक-फूंककर रखने की जरूरत है, क्यों कि 10 सालों के इंतजार के बाद बनाई गई इस साख पर कही दाग न लग जाए