आईपीएल यानि खेल के पीछे का खेल

0
216

आईपीएल की पिच पर शशि थरूर के क्लीन बोल्ड होने के बाद अब ललित मोदी पर शिकंजा कसता जा रहा है। उम्मीद है कि जल्दी ही उनकी भी विदाई हो जायेगी। सचिन और सहवाग के चौके-छक्कों पर रीझने वाले नौजवानों और धोनी के बीए प्रथम वर्ष में फेल होने से आहत बालाओं की बात अगर छोड़ दी जाय तो लगभग पूरा देश यह समझ चुका है कि क्रिकेट के इस खेल के पीछे भी एक खेल चल रहा है।

आईपीएल के इस प्रकरण में जिस तरह परतें उधड़ रहीं हैं और एक के बाद एक नये नाम सामने आ रहे हैं उससे साफ है कि मनोरंजन के इस खेल में असली खिलाड़ी तो कोई और ही हैं। पिच पर खेलने वाले और गाहे-बगाहे पिच को खोदने वाले, दोनों की ही हैसियत इस खेल में जमूरों से ज्यादा नहीं है। दोनों की नकेल परदे के पीछे उन लोगों के हाथ में है जिनका प्रत्यक्ष रूप से क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं है।

वास्तव में क्रिकेट में यह युग परिवर्तन का दौर है। क्रिकेट के खिलाड़िय़ों को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने वाले लोग अभी एक दिवसीय क्रिकेट के जुनून से बाहर नहीं आ सके हैं। एक दिवसीय मैचों की खास बात थी पूरे देश की एक टीम होना। जब यह टीम पाकिस्तान से भिड़ती थी तो लोग बाउन्ड्री की ओर जाती बॉल को सांस रोक कर देखते थे और फील्डर की हथेलिय़ों में समाने वाली हर बॉल पर दर्शक को अपनी धड़कन रुकती सी लगती थी। वरिष्ट पत्रकार प्रभाष जोशी से सचिन का आउट होना देखा नहीं गया।

तब टीम किसी प्रदेश, शहर या कारोबारियों के किसी समूह का नहीं बल्कि देश का प्रतिनिधित्व करती थी। टीम की जीत का मतलब था देश की जीत और हार का मतलब था देश की हार। इसलिये जब भारत की टीम हारी तो प्रभाष जी के मुंह से निकले आखिरी शब्द थे – “अपन तो हार गये”। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि आज इस प्रकरण पर प्रभाष जी क्या प्रतिक्रिया देते। शायद वे आज भी यही दोहराते – “अपन तो हार गये”। क्योंकि देश की जीत के जज्बे के साथ वे जिस क्रिकेट के खेल के दीवाने थे, वह तो हार ही गया।

ऐसा नहीं है कि परदे के पीछे चलने वाले इस खेल का किसी को अंदाजा नहीं था। आईपीएल का यह अवतार जिस तरह से सामने आया वह संदेह पैदा करने के लिये काफी था। इसके बाद जब खिलाडियों की नीलामी शुरू हुई और जानवरों की तरह बोलियां लगने लगीं तो यह पूरी तरह साफ हो गया था कि अब यह खेल न होकर मुनाफे का धंधा बन गया है।

इन धंधेखोरों को मालूम था कि मुनाफे की रकम को अधिक से अधिक मोटा बनाने के लिये जनता के मन में बैठी खिलाड़ियों की राष्ट्रीय छवि को निचोड़ना होगा । खिलाड़ियों को भी अपनी इस छवि को भंजाने में कोई नैतिक रुकावट नहीं महसूस हुई। उन्होंने भी दोनों हाथों से रकम बटोरने के लिये बाजार में खड़े होना स्वीकार कर लिया। स्थिति यहां तक आ पहुंची कि हाल ही में जब पाकिस्तान के खिलाड़ियों की बोली नहीं लगी तो उन्होंने इसका बुरा माना। कुछ ने तो इसे साजिश तक करार दिया।

थरूर और ललित मोदी की नोंक-झोंक जब बाहर आ ही गयी तो कुछ न कुछ तो होना ही था। हो सकता है कि दोनों को ही यह अंदाज न रहा हो कि बात इतनी दूर तक जायेगी। लेकिन यह भी ध्यान देने लायक है कि ललित मोदी इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं कि इतनी सरलता से अंदर की बातें बाहर ले आयें। मुनाफे की बंदरबांट के लिये चल रही अंदर की रस्साकसी जब हद से ज्यादा बढ़ गयी होगी तभी मोदी ने यह तुरप का पत्ता फेंका होगा। हालांकि यह दांव भी उल्टा पड़ा और न केवल मोदी और थरूर को लेकर डूबा बल्कि कई और दिग्गजों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने की संभावना है।

अब आईपीएल में लगे बेनामी और विदेशी पैसे के निवेश, आईपीएल के पदाधिकारियों को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं, उनके द्वारा खड़ी की गयीं अकूत संपत्तियां, मंत्रियों ही नहीं उनकी प्रेमिकाओं तक को उपकृत करने के कारनामे आदि की खबरें धीरे-धीरे रिस कर बाहर आ रही हैं। जैसे-जैसे यह खबरें सुर्खियां बन रही हैं, क्रिकेट को देशभक्ति का पर्याय समझने वाले मासूम नागरिकों की नजरों पर पड़ा परदा हटता जा रहा है।

हो सकता है कि सचिन को भगवान का दर्जा देने वाले मासूमों (अथवा मूर्खों के स्वर्ग में जी रहे नौजवानों) के लिये यह आसमान से टपक कर खजूर में लटकने जैसी दुर्घटना हो किन्तु यह याद रहे कि जैसे-जैसे राज खुलते जायेंगे, यह खजूर भी सहारा देने से इनकार कर देगा। अंततः तो इन्हें जमीनी हकीकत का सामना करना ही पड़ेगा और यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उनका यह भगवान किसी ठोस जमीन पर नहीं बल्कि उस लिजलिजी कीचड़ में खड़ा है जिस पर पद्म पुरस्कारों और रंगीन विज्ञापनों के गुलाब बिखेरे गये हैं।

– आशुतोष

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here