सामाजिक कुरीतियां हैं महिला शिक्षा की दीवार

शकिला खालिक

मैं अपने खानदान की ऐसी पहली लड़की हूं जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। मैंने अभी अभी स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। मुझे इस बात की खुशी है कि सभी तरह के विरोधों के बावजूद मेरे गरीब माता-पिता उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लगातार उत्साहित करते रहते हैं। मुझे अपने माता-पिता की मेहरबानी और अपनी खुशनसीबी का उस वक्त और ज्यादा अहसास होता है जब मैं अपने गांव सलामतवाड़ी, जिला कुपवाड़ा के अन्य अशिक्षित लड़कियों को देखती हूं। हमारे गांव में शत-प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और मुझे ताज्जुब होता है कि इस्लाम धर्म ने सबसे ज्यादा शिक्षा पर ही जोर दिया है। कुरान का पहला शब्द ”इकरा” अर्थात पढ़ो से ही शुरू हुआ है। स्वंय पैंगबरे इस्लाम ने शिक्षा प्राप्त करना सभी मर्द और औरत के लिए एकसमान अनिवार्य करार दिया है। वास्तव में शिक्षा ही वह चिराग है जिसकी रौशनी से इंसान अच्छे और बुरे की पहचान करता है। जिसके माध्यम से ही उन्नत समाज की सकंल्पना साकार हो सकती है। परंतु हमारे क्षेत्र की लड़कियां अधिक से अधिक आठवीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाती हैं। उसके बाद उनके न चाहते हुए भी घरेलू काम सीखने के नाम पर उन्हें घर में ही रहने पर मजबूर कर दिया जाता है। इसके पीछे अभिभावकों की यह सोच होती है कि ज्यादा शिक्षा प्राप्त करने से क्या फायदा? लड़की जितना अधिक शिक्षित होगी उसके लिए उतना ही अधिक शिक्षित लड़का ढ़ूढ़ना पढ़ेगा। जितना अधिक लड़का शिक्षित होगा दहेज की मांग उतनी ही ज्यादा होगी। जब दहेज हर हाल में देना ही है तो क्यूं न शिक्षा पर खर्च करने की बजाए उसके दहेज का सामान जुटाने पर खर्च किया जाए।

बहुत हद तक यह बात सच भी हो सकती है। परंतु ऐसा फरमान सुनाते वक्त यही अभिभावक यह भूल जाते हैं कि अच्छी शिक्षा ही उनकी बेटी का वास्तविक खजाना है। यही शिक्षा उनकी बेटी के भविश्य को संवार सकती है और बेटे की तरह यही बेटी उनका नाम रौशन कर सकती है। जब इस संबंध में मैंने कुछ अभिभावकों से बात की तो उनके विचार सुनकर मैं दंग रह गर्इ। उनका मानना था कि वह अपनी बेटी को शिक्षा तो दिलाना चाहते हैं परंतु जमाना खराब है ऐसी हालत में लड़की को घर से बाहर कैसे भेजें। प्रश्नब उठता है कि आखिर घर के दूसरे कामों के लिए लड़कियों को बाजार जाने की आज्ञा देते वक्त यही विचार क्यूं नही आता है? मेरे मन मस्तिष्कद मुझसे प्रश्नक कर रहे थे कि सिर्फ शिक्षा जो लड़की का असली जेवर है उसे ही प्राप्त करते वक्त यही सारे ख्यालात कैसे पनपने लगते हैं। ऐसे विचार रखने वालों से मैं एक प्रश्न पूछना चाहती हूं कि जो लड़कियां घरों से बाहर नहीं निकलती हैं क्या वह पूरी तरह से सुरक्षित हैं? यह कहना वास्तव में कठिन है क्यूंकि अक्सर समाचारपत्रों में ऐसी खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि जिस खतरे के डर से अभिभावक अपनी लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाते हैं, वही खतरा किसी न किसी स्वरूप में घर के अंदर भी घटित होता रहता है। मेरे कहने का अर्थ यह कतर्इ नहीं है कि अभिभावक अपनी बेटी की इज्जत आबरू का ख्याल न करें, यह तो हमारी जान से भी ज्यादा कीमती जेवर है। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा ही वह माध्यम से जिससे कोर्इ लड़की अपनी आत्मरक्षा के गुर सीख सकती है।

शिक्षा प्रापित के बाद ही कोर्इ भी इंसान अच्छे और बुरे के बीच अंतर को समझ पाता है। शिक्षित समाज के माध्यम से ही उन्नत देश की संकल्पना को साकार किया जा सकता है। कहा जाता है कि एक पुरूश के शिक्षित होने से एक व्यकित शिक्षित होता है परंतु एक नारी के शिक्षित होने से एक पूरी पीढ़ी शिक्षित होती है, क्योंकि मां की गोद बच्चे की पहली पाठशाला होती है। यदि मां अशिक्षित होगी तो उसका प्रभाव सिर्फ उस बच्चे तक ही सीमित नहीं रहेगा बलिक समाज पर भी उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ऐसे बहुत से महापुरूषों की कहानियां मौजूद हैं जिनसे पता चलता है कि समाज में उनके अमूल्य योगदान की शुरूआत उनकी मां द्वारा दी गर्इ शिक्षा के कारण संभव हुआ है।

आजकल पूरे देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलार्इ जा रही हैं। विशेषकर बालिका शिक्षा को बढ़ाने के लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न स्कीमों को सफलतापूर्वक लागू करने की कोशिश की जा रही है। परंतु कर्इ बार सरकार द्वारा र्इमानदारी से की जा रही कोशिशों का लाभ उसके वास्तविक हकदार तक नहीं पहुंच पाता है। सरकारी योजनाओं और जमीनी हकीकत में बहुत अंतर होता है। यह एक गंभीर प्रश्नं है कि सरकार द्वारा गरीब लड़कियों की शिक्षा के लिए जब कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय तथा इसके जैसी अन्य आवासीय विधालय चलाए जा रहे हैं और कर्इ स्कालरशिप प्रदान किए जा रहे हैं फिर क्या कारण है कि बालिका शिक्षा के ग्राफ में संतोषजनक वृद्धि नहीं हो पा रही है? आवश्यककता है ऐसी योजनाओं को ठोस रूप में लागू करने की। वहीं समाज विशेषकर माता पिता की मानसिकता को बदले बगैर यह संभव नहीं हो सकता है। उन्हें यह समझाने की आवश्यहकता है कि शिक्षा वह खजाना है जिसे कोर्इ चुरा नहीं सकता है। फिर ऐसे खजाने से मालामाल करने से लड़कियों को रोकना क्या उनके साथ नाइंसाफी नहीं होगी? (चरखा फीचर्स)

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