सोशल मीडिया का धमाल  

2
200

  मेरे बच्चे कभी औरकुट पर चैट करते दिखते थे तो बस एक रटी रटाई डाँट लगा दिया करती थी, पढ़ाई करो …….समय बर्बाद मत करो……….. उस समय तक कम्पूयूटर मुझे हउआ सा लगता था कभी छुआ नहीं था,सीखना तो दूर की बात है। अब औरकुट तो कोमा में है पर उसके बन्धु पूरे विश्व में फैले है।मीडिया के नाम पर अख़बार फिर इलैक्ट्रौनिक मीडिया मे रेडियो टीवी को ही जानती थी।     इंटरनैट के आने से जो सोशल मीडिया का उद्भव हुआ है इसने तो इतने कमाल कर दिये हैं, जो कुछ साल पहले हमारी सोच के परे थे।इसके दोतरफ़ा संचार ने तो हमें अभिभूत कर दिया।पहले सोशल माडिया घर के डैस्कटौप या लैप टौप तक था अब स्मार्ट फोन होने से हर जगह हमारे साथ चलता है और स्मार्ट फोन की हर धड़कन हमारा ध्यान खींचती है।

औरकुट के बाद और साथ नये से नये सोशल मीडिया आते रहे पर इस भीड़ में अपनी जगह बनाई तो बस तीन ने फेसबुक, व्हाट्सअप और ट्विटर! बाकी सब इंटरनैट के किसी कोने में अर्धमूर्छित अवस्था में पड़े हैं।फेसबुक बड़े काम की चीज है 40,50 दोस्त बनाइये दोस्तों के दोस्त बनाइये  , यदि आप चाहें कि  दोस्ती के लिये न्योते आपके पास आते रहे तो कुछ मज़ेदार, दमदार लिखते रहिये, फोटो डालते रहिये।

फेसबुक ने पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है, क्योंकि वापिस आकर फेसबुक पर सबको बताने में  और तस्वीरें दिखाने में जो मज़ा आता है वो शायद घूमने में भी नहीं आता! इससे व्यापार भी बढ़ता है हर बार फोटो के लियें नये कपड़े ख़रीदे जाते है फिर जगह के साथ कोई आपकी और आपके कपड़ों  की तारीफ़ भी करदे तो क्या बात है।फेसबुक पर स्टेटस रौबदार लगे इसलिये लोग हनीमून के लिये विदेश भी ज्यादा जाने लगे हैं।मसूरी नैनीताल हनीमून के लिये जाना अब डाउन मार्केट माना जाने लगा है, फेसबुक न होता तो किसी को क्या पता चलता कि आपने अपने कमरे में हनीमून मनाया या टिम्बकटूँ में!

मन की भड़ास या गुस्सा चाहें जिसके ऊपर उतार लो ज़्यादा से ज्यादा अमित्र करेगा या ब्लौक कर देगा। अपनी विचारधारा कोई है तो उसका प्रचार फेसबुक पर बख़ूबी किया जा सकता है। कोई अफवाह फैलानी हो तो फेक वीडियो बना कर उनको दनादन शेयर कर सकते हैं।अफवाह तो अभी मृत्यु की  कौल की भी ख़ूब उड़ी और पढ़े लिखे बेवकूफों ने ख़ूब शेयर करके उसे वायरल बुखार की तरह फैला दिया। ऐसी वायरल सूचनाओं के पुष्टीकरण और नकार देने के लिये एक चैनल रोज कार्यक्रम दिखाती  रहती  है। अफवाहें फैलाने के काम में सोशल मीडिया का बहुत हाथ है।लोगों की भी मति मारी गई है कि  इनको शेयर करते हैं बिना सोचे बिना समझे।

चुनाव के दिनो में प्रचार करने के लिये दिहाड़ी के मज़दूर हर पार्टी फेसबुक पर बिठा देती है,जो सामग्री उन्हे दी जाती है दनादन पोस्ट होती है। इसमें विरोधियों के काले चिटठो के विडियो भी हो सकते है जो कभी असली ,कभी गढ़े गढ़ाये होते हैं। इसके बाद कमैंट की बौछार में तो मज़ा आ जाता है, भाषा और सभ्यता की सीमाओं का उलंघन होते देर नहीं लगती वो तो शुकर है कि आमने सामने नहीं होते नहीं तो चप्पल जूते चलते भी चल सकते हैं।

आपको अपने घर मे पूजा घर बनाने की कतई ज़रूरत नहीं है ,सुबह उठते ही सोमवार को शिवजी के मंगलवार को हनुमान जी के गुरुवार को सांई बाबा के शुक्रवार को संतोषी माता के, शनिवार को शनि देवता के दर्शन फेसबुक पर ही हो जायेंगे बाकी देवी देवताओं के लिये बुधवार और रविवार है।यहाँ धमकी भी दी जाती है कि इसे शेयर करो  नहीं तो…………….त्योहारों पर तो पूजापाठ बधाई सबका पूरा आयोजन रहता है।भगवान को लाइक्स का मोहताज बना दिया जाता है।

 

यहाँ देशभक्ति का भी माहौल रहता है ख़ासकर स्वतंत्रता दिवस और गण तंत्र दिवस पर। कभी किसी शहीद की तस्वीर के नीचे जयहिन्द लिखने की धमकी दी जाती है ” देशभक्त हो तो जयहिन्द लिखो” न लिखा तो देश द्रोही कहलाओगे।

साहित्यकारों को भी एक मंच मिल जाता है किसी संपादक की स्वीकृति नहीं चाहिये एक लाइन लिखो या दस, सब लिखने वाले की मर्जी, दिन मे एक पोस्ट डालो या दस ,ये भी लिखने वाले की मर्ज़ी।ऐसा भी नहीं है कि इसका लाभ नये लेखक ही उठा रहे हैं, पुराने लेखक जिनकी पचासों किताबें आ चुकी है वो भी पाठकों की नज़र में बने रहना चाहते है अपनी नई प्रकाशित अप्रकाशित रचनाओं के अंश, किसी राजनैतिक मुद्दे पर अपनी राय देते रहते हैं। हिन्दी को सम्मानित  करने जब ये विदेश जाते हैं तो वहाँ का सचित्र हाल हमें फेसबुक से मिलता है।नये व पुराने  सभी लिखने वालों को एक ऐसा मंच मिल गया है जहाँ तुरंत बधाई और तुरंत वाह वाही मिल जाती है, कुछ इंतजार में अटके रहते हैं कोई अच्छा सा कमैंट आजाये।

मैने तो यहाँ तक सुना है कि फेसबुक से बहुत सी जोड़ियां बनी भी है ,पर घर टूटे भी हैं। फेसबुक पर ये तो पता नहीं होता कि ये  यहाँ पर अपने असली नाम से हैं या अपनी पहचान छुपाकर हैं फिरभी कुछ  लोग जवानी के जोश में प्यार कर बैठते है और फिर शादी के सपने देखते हैं जो पता नहीं पूरे होते है.या नहीं!

यहाँ तरह तरह का ज्ञान बाँचने का भी बहुत रिवाज है, मतलब कि मां बाप पूज्य हैं, वो हमारे लिये ये करते हैं, वो करते है उनकी हमें इज्जत करनी चाहिये। ये लोग सबके मांता पिता का बोझ उठाये फिरते है,कुछ अपनी पंक्तियाँ कुछ दूसरों की पंक्तियां  फेसबुक पर ऐसे डालते हैं जैसे इन्हे ही दुनियां के बुजुर्गों की परवाह हो,अरे बाकियों  ने क्या माता पिता को सड़क पर छोड़ दिया है! क्या कभी किसी शराबी पिता को नहीं देखा है जो नशे में धुत्त पत्नी को और बच्चों को मारता है ऐसे पिता की इज्जत कौन कर पायेगा हाँ बेटा घर में रखे है वही बहुत है।इंद्राणी जैसी मातायें भी होंगी।भैया सब मां बाप   की इज्जत करते हैं पर श्रवणकुमार बनने की किसी को फुरसत  नहीं है। खैर तुम कौन श्रवण कुमार हो  जो ज्ञान बाँचने बैठे हो ।यहाँ वेद उपनिशद गीता कुरान और सभी विषयों पर ज्ञान  बांच कर हर एक अपने को बुद्धिजीवी साबित करने में लगा है।कोई अपने वृहद व्यक्तिगत पुस्ताकालय के दर्शन कराता है, कुछ जाने माने लेखकों की पुस्तकों के संदर्भ देकर अपना ज्ञान बांचता है।धार्मिक कट्टरवादिता का भी प्रचार यहाँ से किया जा सकता है।इसके लिये इतिहास को अपनी अपनी तरह तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है जिसे आप आपने धर्म की हर अच्छी बुरी बात के समर्थन में खड़े रह सकें।

आज मैने ये खाया वो बनाया , इससे मिला उससे मिला की सचित्र जानकारी भी यहाँ मिलेगी, आप लाइक ठोको आगे बढ़ो लाइक ठोकोगे तभी लाइक मिलेंगे तुम सैलेब्रटी तो हो नहीं कि नाम देखते लाइक आने लगें।नामी लोगों की पोस्ट जब पहली बार दिखती है तो उसपर पहले से ही 50,60 लाइक और 20,25 कमैंट होते हैं। मैने ऐसे लोगों की पोस्ट के नीचे कभी लिंखा नहीं देखा be the first person to like.शायद इनके प्रशंसक आधी रात से लाइक्स और कमैंट्स की झड़ी लगा देते होंगे क्योंकि जब हमारी निगाह पडती है तो वहाँ पहले से ही100 लाइक होंगे 100 लाइक में हमारा लाइक संख्या बढ़ाने के सिवा क्या करेगा इसलिये हम आगे बढ़ लेते हैं। कमैंट दिया तो उस पोस्ट पर हर आने वाले कमैंट का नोटिफिकेशन मोबाइल की धड़कन को आवाज़ देता रहेगा।

खोये हुए बच्चे भी फेसबुक के माध्यम से मिले हैं पर कभी कभी ऐसा भी हुआ है कि बच्चा स्कूल से कालिज पंहुच जाता है पर उसका फोटो फेसबुक पर शेयर होता रहता है क्योंकि बच्चे के मिलने की सूचना किसीने फेसबुक पर दी ही नहीं होती ।कभी कभी फेसबुक पर आयुर्वैद्य की जानकारी स्वयंभू  डाक्टर देते रहते, नीबू से कैंसर का और नीम से मधुमेह का इलाज हो सकता है।

आप किसी विशाल आयोजन के लिये  फेसबुक पर निमंत्रण दे सकते हैं,सीमित लोगों को बुलाने का भी प्रवधान है परन्तु कितने लोग उपस्थित होंगे इसका अंदाज लगाना ज़रा कठिन है।वैसे इसका अंदाजा लगाना भारत में अससंव है चाहें  निमंत्रण किसी भी माध्यम से दें।

यहाँ सुबह को शुभ प्रभात सचित्र और शाम को शुभ संध्या कहने का भी रिवाज है और उसपर लाइक्स और कमैंट भी आते हैं।कुछ लोग एक क़दम बढ़कर मैंसेजर पर भी नमस्ते जी लिखते रहते हैं। आप चाहते हैं कि आपकी पोस्ट को पढ़ी जाय तो विवादास्पद मुद्दे पर दो चार लाइन लिखें बड़ी पोस्ट लोग नहीं पढ़ते,लिंक भी देने का कोई फायदा नहीं है पेज धीरे धीरे खुलते हैं नैट की चाल सुस्त होती है गोला घूमेंगा, लोग आगे बढ़ लेंगे, पढ़ने वाले मे इतना धीरज नहीं होता उन्हे तो निगाह डाल कर आगे बढ़ना है।टैग करने से भी फायदा नहीं ,बहुत लोग टैग से चिढते है, बिना देखे डलीट कर देंगे।

स्मार्ट  फोन ने लोगों को इतना स्मार्ट बना दिया है कि बेचारी सैल्यूलर कम्पनियों को बहुत घाटा हो रहा है। घर में सबके वाई फाई है, बाहर डाटा कार्ड तो एक डेढ़ रुपये का एस. एम. एस क्यों करें व्हाट्सअप नकरें। अब जी मेल पर नहीं चैट, व्हाट्स अप पर होती है। व्हाट्स अप का जाल भी मलेरिया और डेंगू के मच्छर की तरह बेहद बढ़ गया है । यहाँ वायरस बहुत तेज़ी से फैलता है।हर ख़बर व्हाट्सअप वायरल होती है।

जिसका फोन नम्बर आपके पास सुरक्षित है और वो व्हाटसअप पर है तो आप उससे संपर्क तो कर ही सकते हैं बिना उसकी इजाज़त के उसको अपने ग्रुप में जोड़ भी सकते हैं।वैसे तो फेसबुक वाले सभी काम  व्हाटसअप करता है पर यहाँ बिना सोचे समझे फौरवर्ड का बोलबाला है। लोग 3, 4 ग्रुप के सदस्य बन जाते है फिर इधर का फारवर्ड उधर होता रहता है। यह उन्ही लोगों को जोड़ता है जिनके पास फोन नम्बर होता है अत: अंजान लोगों के जुड़ने की संभावना बहुत कम रहती है।यहाँ दिनरात वीडियो और ज्ञान बाँचने का का काम चलता है। कभी कभी कोई पारिवारिक जानकारी तस्वीर या दोस्तों के हाल मिलते रहते हैं। अब तो व्हाट्सअप कौल विडियो और वाइस ने बेचारी सैल्यूलर कम्पनियों को कंगाल बनाने की सोच ली है ग़नीमत है कि आवाज़ उतनी साफ नही है  नहीं तो  सब व्हाट्सअप कौल ही करते और बाकी सब सैल्यूलर कंपनियां दिवालिया हो जातीं।एक ज़माना था जब लैंडलाइन में ताला लगा कर रखना पड़ता था अब संचार के अतिरिक्त सोशल मीडिया संभालना मुश्किल हो रहा लोग इसके नशेड़े हो रहे हैं।

तीसरा परन्तु  अति महत्वपूर्ण सोशल मीडिया ट्विटर है जो प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के लिये भरपूर कच्चा माल देता है जिसको वो बड़े जतन से प्रसंस्करण यानि प्रौसैसिंग करके परोसते हैं। ट्विटर का प्रयोग करने को तो कोई भी कर सकता है पर आम तौर पर इसका प्रयोग बड़े बड़े जाने माने लोग ही करते हैं ये नेता अभिनेता या खिलाड़ी  हो सकते हैं । मीडिया की एक आँख इनके हैंडल को हैंडल करने में लगी रहती है। कोई न कोई विवादास्पद ट्वीट करके इतनी खलबली मचा देता है कि शाम को 6,8 व्यक्ति हर समाचार चैनल पर अपनी पक्ष और विपक्ष की दलीलें देने में घंटों गुजार देते है। ये बात अलग है कि किसने क्या कहा यह शोर शराबे में सुनाई नहीं देता, जब तक कोई और तगड़ा ट्वीट न आये ये बहस कई दिन तक चल सकती है।अगले दिन समाचारपत्रों में भी यह ट्वीट छाया रहता है।कुछ भूले बिसरे लोग समाचारों में बने रहने के लियें ट्विटर का सहारा लेते हैं और ख़ुद ही टीवी चैनल को बता देते है कि मेरे ट्वीट पर कार्यक्रम गढ़लो।ट्वीट में शब्दों की सीमा होती है पर उस पर जो समाचार बनते हैं उन पर न शब्दों की सीमा होती है न समय की जितना चाहें खींचो….

सोशल मीडिया के इन तीनों अंगो ने हमारी जीवन शैली को बहुत बदल दिया है  नेताओं के ट्वीट से समाचार बनते है, घर में काम करने वाली फेसबुक पर स्टेटस डाल देती है “आज काम पर नहीं आऊँगी।” एक ही घर में ए.सी.की वजह से दरवाज़े बन्द रखने पड़ते है, बन्द कमरों मे सास बहू व्हाट्सअप पर वार्तालाप करती हैं”चाय बना दूँ” “हाँ बनालोँ” “अदर ही लेआऊँ” ” “हाँ लेआओ”

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here