मुलायम का ‘पिछड़ा-दलित-मुस्लिम’ कार्ड

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संजय सक्सेना

पहले बसपा ने और तीन माह बाद सपा ने अपने उम्मीदवार तय कर दिये।यह और बात है कि सपा ने सम्भावित विधानसभा प्रत्याशियों की बाकायदा सूची जारी करके बसपा से बढ़त बना ली।बसपा ने अपने प्रत्याशियों के बारे में मन तो बना लिया है लेकिन अधिकारिक रूप से कोई सूची जारी नहीं की है। बसपा ने जिन उम्मीदवारों को जहां से लड़ाने का मन बनाया है, उन्हें उसी विधान सभा क्षेत्र का प्रभारी बना कर उनको चुनावी तैयारियां करने की छूट प्रदान कर दी है। बहरहाल, प्रत्याशी घोषित करने की यह पहली लड़ाई है।दोनों पार्टियां अपने आप में ही इसलिए मुग्ध हैं क्योंकि एक सत्ता में बैठी है तो दूसरी बड़े दल के रूप में विपक्ष में और सत्ता में वापसी का सपना सजोए है। सपा ने अबकी जिस तरह से उम्मीदवारों का चयन किया है, उससे यही प्रतीत होता है कि उसका सारा जोर पिछड़ा-दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर है। इसके अलावा युवाओं और कुछ नए चेहरों के अलावा दागियों को भी टिकट देने से पार्टी ने गुरेज नहीं किया, शायद सपा का शीर्ष नेतृत्व जिताऊ प्रत्याशी को ही मैदान में उतारना चाहता था।समाजवादी पार्टी की 165 प्रत्याशियों वाली पहली लिस्ट देखने से एक बात का और आभास होता है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भले ही ‘एकला चलो’ की बात कर रहे हों लेकिन उनकी निगाहें कांग्रेस के साथ गठजोड़ पर भी टिकी हुईं हैं। यही वजह है सपा ने सम्भावित प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है उसमें एक-दो जगह को छोड़कर कहीं भी कांग्रेस के सीटिंग विधायकों वाले विधान सभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए हैं। सपा की पहली लिस्ट में सबसे अधिक आश्चर्यजनक रहा वैश्य बिरादरी की अनदेखी। पार्टी ने मात्र तीन सीटों के लिए वैश्य प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। सपा के हौसले बुलंद लग रहे हैं लेकिन उनको सम्भावित खतरे का भी अंदेशा दिखाई दे रहा है। आगामी विधान सभा चुनाव में पीस पार्टी की दस्तक भी सुनाई देगी। ऐसी उम्मीद सभी लोग कर रहे हैं। गुप्त रूप से पांव पसार रही पीस पार्टी को सपा का सबसे बड़ा ‘दीमक’ बताया जाने लगा है। ढुलमुल राजनीति करने वाले रालोद नेता अजित सिंह भी इस सियासत को पहचान कर अपना पाला बदलने के लिए मजबूर हुए। मुख्यमंत्री का ख्वाब देख रहे अजित सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पीस पार्टी का साथ देकर मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करेंगे तो सपा के राह में रोढ़े फंस सकते हैं।

 

2012 के विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने परम्परागत कहे जाने वाले वोट बैंक यानी मुस्लिम यादव समीकरण के साथ साथ तमाम पुराने चेहरों पर ही भरोसा किया हैं। पहली सूची में 44 विधायकों में 42 को टिकट देकर सपा ने सिटिंग गेटिंग फार्मूले को भी अमली जमा पहनाया है। जिन दो विधायकों के टिकट काटे गये हैं उनमें एक जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी है। उनके स्थान पर उनके पुत्र अमनमणि त्रिपाठी को नौतनवां से टिकट दिया गया है। अमनमणि सपा का युवा चेहरा होगें। अमनमणि की जीत-हार कई मायनों में देखने लायक होगी। इसी प्रकार एक और युवा चेहरा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अखंड प्रतात सिंह की पुत्री जूही सिंह के रूप में सामने आया है। उन्हें लखनऊ पूर्व से प्रत्याशी बनाया गया है। गुन्नौर से विधायक प्रदीप यादव को टिकट काटा गया हैं उनकी जगह राम खिलाड़ी सिंह को उतारा गया हैं। विधानसभा के प्रमुख सचिव रहे राजेन्द्र पाण्डेय को मीरजापुर की मझवां सीट से टिकट देकर रिटायर्ड नौकरशाहों को भी उपकृत किया गया गया हैं,लेकिन मौजूदा आईएएस जयशंकर मिश्र के पुत्र अभिषेक मिश्र को लेकर पार्टी में अभी उहापोह है।पार्टी उन्हें लखनऊ से लड़ाना चाहती है। बात दागियों की की जाए तो सपा ने ददुआ के पुत्र वीर सिंह पटेल को चित्रकूट से मैदान में उतारा हैं। इससे पूर्व वह वहां जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं। बसपा सरकार के एक मंत्री पर जानलेवा हमले के अरोप में जेल में बंद विधायक विजय मिश्रा को ज्ञानपुर से टिकट देकर सपा से यह जताने की कोशिश की है कि विजय मिश्र के ऊपर बसपा सरकार ने जो मुकदमे ठोंक रखे हैं वह राजनीति से प्रेरित हैं। हाल ही में बसपा छोड़ सपा में शामिल हुए नथुनी कुशवाहा को उम्मीदवार बना सपा ने दलबदलुओं को भी आवभगत का संकेत दिया हैं। पूर्व सांसद अमीर आलम खां के पुत्र नवाजिस आलम खां, पूर्व सांसद बालेश्वर यादव के पुत्र बिजेन्द्र पाल उर्फ बबलू, पूर्व मंत्री चिरंजन स्वरूप के पुत्र सौरभ स्वरूप, पूर्व विधान परिषद सदस्य रमेश यादव के पुत्र आशीष यादव और सांसद मिथलेश कुमार की पत्नी शकुंतला को टिकट देकर सपा ने परिवारवाद के परचम को लहराने का काम जारी रखा है। इससे सपा प्रमुख को फायदा यह होगा कि पार्टी के भीतर चोरी छिपे उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप लगाने वालों की संख्या कम हो जाएगी।कद्दावर सपा नेता आजम खॉ जो कुछ माह पूर्व सपा में लौट कर आए थे, उन्हें रामपुर की उनकी पुरानी सीट से ही उतारा गया है।

सपा की पहली सूची से साफ है कि उसने जातीय समीकरणों का भी खासा ध्यान रख है । सूची में एक तिहाई टिकट पिछड़ों को दिया गया हैं इनमें 25 यादवों सहित 56 उम्मीदवार पिछड़ी जाति के हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों की तादाद 31 है। सपा ने परम्परागत मुस्लिम यादव समीकरण को आजमाने के साथ ही पिछड़ों पर ज्यादा भरोसा जताया है।पिछड़ों में यादव प्रत्याशियों की संख्या भी कम नहीं है। 18 क्षत्रिय और 16 ब्राहमण को टिकट देकर उसने इनमें सामंजस्य बनाने की कोशिश की है।

सूबे में खुद को दमदार विकल्प साबित करने के फेर में समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम का चुनावी समीकरण बनाने में जुटे राष्ट्रीय लोकदल को भी झटका दिया। अधिकांश मुस्लिम बाहुल्य क्षत्रों में प्रत्याशी घोषित किए जाने और अजित विरोधियों को तरजीह देने से रालोद व सपा की संभावित दोस्ती लगभग खटाई में पड़ती दिख रही है। रामपुर से आजम खां, बेहट से उमर खां नकुड़ से इमरान मसूद, बुढ़ाना से नवाजिश आलम, नूरपुर से नईमुल हसन, कुंदरकी से हाजी रिजवान, किठौर से शाहिद मंजूर, संभल से नवाब इकबाल, अमरोहा से महबूब अली, हसनपुर से कमला अख्तर , लोनी से औलाद अली, अलीगढ़ से जफर आलम, बदायूं से आदि रजा, पीलीभीत से रिजवान अहमद व मेरठ शहर से रफीक अंसारी जैसों को मैदान में उतार सपा ने बसपा के दलित मुस्लिम गठजोड़ भी जवाब दिया। लोनी से औलाद अली का नाम तय कर सपा ने विधायक मदन भैया के सामने मुश्किल खड़ी कर दी । परिसीमन के कारण कई नेताओं की सीटें भी बदली गई हैं।भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राजा अरिदमन सिंह को भी सपा में आकर बाह क्षेत्र से टिकट मिल गया। इसके अलावा शिवपाल सिंह यादव,अम्बिका चौधरी, डा0 अशोक बाजपेई,माता प्रसाद पांडेय, श्यामा चरण गुप्त जैसे दिग्गजों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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