मुलायम की बदली सियासतःनजर हिन्दू वोट बैंक पर

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यूपी में मुस्लिम वोटरों के सौदागरों ने उड़ाई सपा की नींद

 

akhikesh                                                                                                                            संजय सक्सेना

 

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव 2017 के विधान सभा चुनाव जीत कर सपा की पुनःवापसी का सपना सजोये हुए है, लेकिन उन्हें यह डर भी सता रहा है कि कहीं एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के सहारे चुनावी बैतरणी पार करने की उनकी तमन्ना अछूरी न रह जाये।इसी लिये मुलायम सिंह यादव लम्बे समय के बाद मुसलमानों को लुभाने के साथ-साथ हिन्दुत्व के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने में जुट गये हैं। एक ओर नेताजी को वह अमर सिंह याद आ रहे हैं जो हिन्दुत्व क प्रतीक कल्याण सिंह को उनके(मुलायम सिंह) करीब लाये थे तो दूसरी तरफ नब्बे के दशक में यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुए अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना पर भी नेताजी अफसोस जाहिर कर रहे हैं।परंतु काफी सधे हुए लहजे में ताकि एक को मनाने में दूजा रूठ न जाये। वह सफाई देने वाले अंदाज में कहते हैं कि लाखों की संख्या में कारसेवक रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के पास जमा हो गये तो उन्हें कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देना पड़ा,जिसमें 16 कारसेवकों की मौत हो गई थी। तब से लेकर आज तक इस मुद्दे पर शांत रहने वाले मुलायम ने हाल ही में एक न्यूज चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा था कि वह एक दर्दनाक फैसला था,लेकिन उस समय मेेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था।मुलायम का हिन्दू पे्रम ऐसे ही नहीं जागा है।इसके पीछे सटीक कारण हैं।राजनीति की पैनी नजर रखने वाले नेताजी जानते हैं कि 2017 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अलावा भी मुस्लिम वोटों के कई सौदागर मैदान में ताल ठोंकते दिखाई देंगे।चाहें ओवैसी हो या नीतिश-लालू की जोड़ी अथवा बहुजन समाज पार्टी सबकी नजरें मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की है,जबकि हिन्दू वोटरों का सौदागर सिर्फ भाजपा बनी हुई है। ऐसे में मुलायम को हिन्दू वोट बैंक (खासकर ब्राहमण,क्षत्रिय,बनियों आदि अगड़ी जातियां) जिसमें  में सेंध लगाना ज्यादा आसान लगा तो उन्होंने हिन्दुत्व के एजेंडे को ही आगे बढ़ा दिया।

सपा प्रमुख मुलायम ने यह पैतरा ऐसे समय में चला है जब समाजवादी पार्टी और अखिलेश सरकार मिशन 2017 का लक्ष्य हासिल करने के लिये चारो तरफ हाथ-पैर मार रही है। पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात की बेहद चिंता सता रही है कि सपा के वोट बैंक में बिखराव हो रहा है।समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव की तो चिंता है ही इसके अलावा भी सपा जिन पिछड़ों को अपनी सियासी पंूंजी मानती थी,उसमें से यादवों को छोड़कर करीब-करीब अन्य सभी पिछड़ा वर्गो का सपा से मोहभंग होता दिख रहा है।समाजवादी पार्टी के नेता जानते हैं कि भले ही 2012 के विधान सभा चुनाव में उनके खाते में 224 और बसपा के खाते मं 80 सीटें आईं थीं,लेकिन दोनों पार्टिंयों को मिलने वाले वोट प्रतिशत में मात्र तीन प्रतिशत का अंतर था।समाजवादी पार्टी को 29.2 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 80 सीटंे जीतने वाली बसपा का वोट प्रतिशत 25.9 था।भाजपा 15 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे और कांगे्रस 11.6 प्रतिशत वोट हासिल कर चैथे स्थान पर रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव आते-आते समाजवादी पार्टी का जनाधार 07 प्रतिशत घट गया।सपा को मात्र 22.2 प्रतिशत वोट मिले। वहीं बसपा को 2012 के विधान सभा चुनावों के मुकाबले 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 06 प्रतिशत का नुकसान हुआ था। बसपा 20 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी थी।लोकसभा चुनाव के समय यूपी में भले ही बसपा का वोट बैंक घटा था,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह सबसे अधिक वोट पाने वाले दलों में तीसरे नंबर पर रही थी।बसपा को पूरे देश में 4.1 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि समाजवादी पार्टी  3.4 प्रतिशत वोटों के साथ तृणमूल कांग्रेस के बाद पांचवें स्थान पर रही थीं।हाॅ, यह जरूर था कि सपा से अधिक वोट पाने के बाद भी बसपा का एक भी संासद नहीं जीता था,जबकि सपा पांच सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी।

2014 के लोकसभा चुनाव के समय यूपी में मोदी अपने आप को पिछड़ों के नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर चुके थे,अब बसपा भी गैर यादव पिछड़ोे पर डोरे डालने लगी है। दूसरी तरफ मुसलमान भी समझ नहीं पा रहा है कि समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया मुलायम सिंह पर कितना भरोसा किया जाये।इसकी वजह भी है। 2012 में समाजवादी पार्टी ने चुनाव के समय मुसलमानांे से जो वायदे किये थे,उन्हें अखिलेश सरकार भले ही पूरे कर देने की बात कर रही हो,लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। मुसलमानों को इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। इसके अलावा अखिलेश कैबिनेट में भी उस अनुपात में मुस्लिम नेताओं को नहीं लिया गया है,जिस अनुपात में वह जीतकर आये थे।इसी प्रकार मुलायम सिंह का बार-बार दादरी के बिसाहड़ा में भीड़ द्वारा अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या के लिए बीजेपी के तीन नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना और यह कहना कि अगर प्रधानमंत्री कहें तो वह उन तीनों के नाम बताने को तैयार हैं।वाली बात मुसलमानों को रास नहीं आ रही है।वह सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसी कौन सी मजबूरी है जो मुलायम उक्त बीजेपी नेताओं का नाम सार्वजनिक नहीं करके उन्हें बचा रहे हैं।ऐसी ही बातों और बीजेपी के प्रति नेताजी का अक्सर दिखता झुकाव मुसलमान वोटरों को रास नहीं आता है।यह परेशानी सबब न बन जाये इसी चिंता में डूबे मुलायम और समाजवादी सरकार ने अब हिन्दूु कार्ड खेलना शुरू कर दिया है।

2012 के विधान सभा चुनाव के समय सपा को मुस्लिम वोटों की चिंता सता रही थी तो 2017 में उसे हिन्दू वोट बैंक की भी चिंता सताने लगी है।संभवताःइसी लिये पिछले वर्ष सितंबर के महीने में अखिलेश सरकार द्वारा हिन्दुओं की सबसे पवित्र धार्मिक मानसरोसवर यात्रा पर जाने वाले भक्तों के लिये सब्सिडी 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दी गई थी।इससे पूर्व अखिलेश सरकार द्वारा  शुरू की गई ‘समाजवादी श्रवण यात्रा’ भी इसी कड़ी का एक हिस्सा था।जिसके माध्यम से प्रदेश के बुजुर्ग श्रद्धालुओं को यूपी सरकार के खर्चो पर पूरे देश के धार्मिक स्थलों की यात्रा कराई जा रही है।अभी तक हजारों बुजुर्ग इस यात्रा का फायदा उठा चुके हैं।इसी तरह से अखिलेश सरकार 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्यभर के मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करने जा रही है।अखिलेश सरकार की सवर्ण समाज के वोटों पर नजर है। उत्तर प्रदेश में अधिकतर मंदिरों का प्रबंधन सवर्ण जातियों से आने वाले पुजारियों के हाथ में है। यूपी सरकार की कोशिश है कि हर जिले में कम से कम एक मंदिर का जीर्णोद्धार हो।इस सिलसिले में राज्य सरकार की धार्मिक मामलों के विभाग ने हर जिले के जिलाधिकारी को अपने जिले से एक महत्वपूर्ण मंदिर का ब्यौरा उपलब्ध कराने के लिए कहा है। विभाग के निर्देश के बाद अब तक 34 जिलों से सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है।इसी प्रकार वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह मथुरा और विध्यांचल के मंदिर में भी रिसीवर नियुक्त कर न्यास बनाये जाने की चर्चा चल रही है ताकि यहां आने वाले भक्तों को सुविधाएं मिल सकें।अभी इन मंदिरों में पंडो और मठाधीशों का दबदबा है,जिनके बारे में यहां आने वाले श्रद्धालुओं का अनुभव अच्छा नहीं है। यह लोग मंदिर पर आने वालेे चढ़ावे से लेकर श्रद्धालुओं को प्रसाद,दान-पुण्य के नाम पर खूब लूटते हैं।

खैर,बात अगर कारसेवकों पर गोली चलाने के लिये मुलायम सिंह द्वारा दुख व्यक्त करने की कि जाये तो मामला यहीं तक सीमित नहीं है। अयोध्या को लेकर समाजवादी सरकार काफी नरम रूख अपनाये हुए है।बीते साल के मध्य में राजस्थान से जब पत्थरों की खेप अयोध्या पहुंची तो ऐसा लगा कि अखिलेश सरकार इस पर कोई सख्त कदम उठायेगी,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ,बल्कि समाजवादी पार्टी के नेता बुक्कल नबाव स्वयं अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की वकालत करते हुए मीडिया में दिखाई देने लगे।वह मंदिर निर्माण के लिये दान देने की भी बात कर रहे थे।नबाव साहब की बातों को गंभीरता से इस लिये जा रहा है क्योकि उनकी गिनती मुलायम सिंह के करीबियों में होती है।अयोध्या में मंदिर निर्माण की वकालत करने के चलते अखिलेश सरकार के राज्य मंत्री ओमपाल नेहरा को भले ही पद गंवाना पड़ गया था,लेकिन बुक्कल नबाव पर आंच तक नहीं आई। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिये राजस्थान से पत्थर आ रहे थे और अखिलेश सरकार चुप्पी साधे हुए थी।इस संबंध में जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछा गया तो उन्होंने कोई कार्रवाई करने की बजाये यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ‘‘अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर में हर हाल में न्यायालय के निर्देशों का पूरी सख्ती से कार्यान्वयन एवं अनुपालन सुनिश्चित कराया जाएगा। प्रदेश में कानून व्यवस्था को खराब करने की किसी को इजाजत नहीं दी जाएगी क्योंकि अयोध्या का यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।’’जबकि इससे पूर्व गृह विभाग के प्रमुख सचिव देवाशीष पांडा ने कहा था कि राज्य सरकार राम मंदिर के लिए अयोध्या में पत्थर नहीं आने देगी। ‘‘चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लिहाजा सरकार अयोध्या मुद्दे के बाबत कोई नई परंपरा शुरू करने की इजाजत नहीं देगी।’’वहीं एडीएम सिटी आरएन शर्मा ने भी कहा था कि पत्थर दान व राजस्थान से पत्थर मंगाए जाने की न कोई अनुमति ली गई है, न ही उनके संज्ञान में मामला है।

अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का निर्माण ऐसा मसला है जिसपर हमेशा वोट बैंक की सियासत होती रहती है।अयोध्या में पत्थर लाये जाने की घटना पर अखिलेश सरकार ने भले ही(हिन्दुत्व के एजेंडे को धार देने के लिये) चुप्पी साध ली थी,लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती ने इसके सहारे मुसलमानों को रिझाने का मौका नहीं खोया। माया ने अखिलेश सरकार पर पत्थरों को अयोध्या आने से नहीं रोकने के लिये तंज कसते हुए इसे समाजवादी पार्टी और भाजपा की सांठगांठ बता कर राजनैतिक चाल चल दी।बसपा सुप्रीमों मायावती बीजेपी-सपा के बीच गठजोड़ की बात करके मुस्लिम वोटरों में संशय पैदा करने का कोई भी मौका छोड़ती नहीं हैं। बहरहाल, तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच 2017 में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा,कोई नहीं जानता है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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