मधुमय-मधुर कमल पांखों का, परिपूरित आगार हो |
संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो |
कज्जलकूट केश, कोमलतम्,
गहन-बरौनी, अविरलभंगिम |
मृगछौने सम, नयन सलोने,
नहीं ठहरते, चंचल अग्रिम |
तीव्र नासिका, अधर अछूते, अमृत-मयी बहार हो |
संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो |
ग्रीवा स्वर्ण-सुराही, शोभित,
स्वर्णमयी भुजवल्लरि रोहित |
बेलवृक्ष के फलद्वै-कुच ज्यों,
कटि-कुंचित शोभामयसंचित |
स्वर्ण-कमल की नालपूर्णपद, जल-गत पद्मविहार हो |
संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो |
पग-पंकज परिपूर्ण, दिव्यतम्,
अनुपमशोभित पायल छमछम |
धरती पर पग धरते ही ज्यों,-
सप्त- स्वरों में बजती सरगम |
मधुशाला सी देह से मन पर, करती तप्त प्रहार हो |
संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो |