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कुछ कविताये....खुशबू सिंह - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
खुशबू सिंह 1. बैरी अस्तित्व मिटा गया .. निज आवास में घुस बैरी अस्तित्व मिटा गया आवासीय चोकिदारों को धूली चटा गया ... सुशांत सयुंक्त परिवार में बन मेहमान ठहरे थे वे कुटिल!! मित्रता के नाम पर यूँ बरपाया कहर की सयुंक्त की सारी सयुंक्ता ही मिटा गया जाने…