शहादत का गीत

0
218

सत्ता ये खामोश रहे, खामोश नहीं हो सकता मैं,

बलिदानों पर वीरों के, मौन नहीं हो सकता मैं,

कैसे देखूँ,

माता को अपनी आँखों का तारा खोते,

बूढे बाप को बेटे की मैं, अर्थी का बोझा ढोते,
कैसे देखूँ,

बहना के आँसू को रक्षाबंधन में,

विधवा को पल-पल मरते, मैं उसके सूने जीवन में,

क्या है जीना बस उनका जो, सरहद पर गोली खाते हैं,

लाल लहू से धरती माता का टीका कर जाते हैं,

प्राण त्याग सिरमौर तिरंगे का ऊँचा कर जाते हैं,

स्वर्णिम बलिदानों से जग में, जो नाम अमर कर जाते हैं,

 

अब उत्तर देना होगा, इस भारत के शासन को,

अब उत्तर देना  होगा, इस सत्ता के सिंघासन को,

वीरों की बलिदानी के संग, तुम इंसाफ करोगे क्या ?

या उदारता के संग गददारों को माफ़ करोगे क्या ?

गददारों को व्यर्थ में ही शांति का पाठ पढ़ाना क्या,

व्यर्थ खड़े होकर भैंस के आगे बीन बजाना क्या,

भैंस तो लाठी की भूंखी है, लाठी की ही सुनती है,

आतंकी के आगे बोलो, क्या गांधी गिरी चलती है,

समय गया थप्पड़ खाकर अब दूजा गाल बढ़ाने का,

समय आ गया गददारों को जमकर सबक सिखाने  का,

हमले का उत्तर दुश्मन के घर में घुस देना होगा,
शस्त्रों की बोली का उत्तर शस्त्रों से देना होगा,

इन आस्तीन के सांपों को जिन्दा जलवाना होगा,

गाँधीवाद की जगह अब आजाद वाद लाना होगा,
गाँधीवाद की जगह मैं आज़ाद वाद फैलाता हूँ,

राजगुरु, सुखदेव, भगत के आगे शीश झुकाता हूँ,

अमर शहीदों की पावन शहादत को शीश झुकाता हूँ,

अमर शहीदों की पावन शहादत के गीत सुनाता हूँ,
अमर शहीदों की पावन शहादत के गीत सुनाता हूँ ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here