कुछ आगजनी, कुछ राहजनी अब दिन में ये होते आएं
यदि चमन बचाना है भाई, उल्लू न बसेरा कर पाएं
कुछ शाखों की कच्ची कलियां- मंहगाई ने हैं कस डाली
मासूम हंसी, आचारहीन नागिन ने ऐसी डस डालीं
उनकी बीती का मैं श्रोता, बीते तो ऑंखें पथराएं
है डाल डाल विष बेल व्याप्त
रिश्वत, दल्ला ठगियाई की
बिक सके द्रव्य के मोल सदृश
उस यौवन की अंगड़ाई की
चुप रह कब तक ये देखोगे-
लज्जा न तमाशा बन जाए
क्या करवट बदली है युग ने,
नृप एक टके में बिक जाए
जो सही राह पर चले बाप
सुत के सिर आरी चलवाए
इन शंकाओं के जालों में कोई तो समाधान पाएं
यदि रहे एकजुट बंधु सुनो,
विजयी निश्चय बन जाओगे।
यदि चाहा तो उल्लू को तुम झटके में मार गिराओगे
उन मूलों में मट्ठा डालें –
जिनमें जहरीले फ़न पाएं
चिड़िया के घर अब कैद न हो
भाई अब गंवरू राजा
लासा के लालच में आगे
तरकारी भाव न हो खाजा।।
श्रम की सस्य उगायें
दिक् को सौरभ से भर जायें।।
– क्षेत्रपाल शर्मा