रामबन में लाशों पर राजनीति करती सोनिया कांग्रेस और उमर अब्दुल्ला

rambanडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                    जम्मू कश्मीर के रामबन ज़िला के धर्म-गूल-संगलदान क्षेत्र में पिछले दिनों १७ जुलाई को सीमा सुरक्षा बल और स्थानीय लोगों का टकराव हुआ , जिसमें चार लोगों की मृत्यु हो गई और कुछ लोग घायल हुये । इस स्थानीय विवाद के आधार पर पूरी कश्मीर घाटी में कर्फ़्यू लगाना पड़ा और अनेक स्थानों पर दंगा फ़साद हुआ । अमरनाथ की यात्रा रोक देनी पड़ी और तीर्थ यात्रियों की बसों पर पथराव हुआ । सीमा सुरक्षा बल के जवानों पर आरोप था कि उन्होंने मुसलमानों के मज़हबी ग्रन्थ क़ुरान शरीफ़ का अपमान किया है ।  अब धीरे धीरे इस पूरे कांड के पीछे का षड्यंत्र सामने आ रहा है , लेकिन षड्यंत्रकारी अभी भी पर्दे के पीछे सुरक्षित हैं और सरकार की इच्छा भी उन्हें बेनक़ाब करने की नहीं लगती । पूरे कांड को समझने के लिये यहाँ के भूगोल को समझना होगा । रामबन ज़िला का गूल-धर्म-संगलदान क्षेत्र रियासी ज़िला की सीमा से लगा हुआ है । यहाँ तक का क्षेत्र मोटे तौर पर हिन्दु बहुल क्षेत्र माना जाना है । बनिहाल से कटरा तक जो रेलवे लाईन बिछाई जा रही है , उसी में यह क्षेत्र पडता है । सीमा सुरक्षा बल की ७६वीं बटालियन रामबन में तैनात है । बल का शिविर इस क्षेत्र के धर्म गाँव में है । इसी गाँव में एक मस्जिद भी है , जिसकी अच्छी खासी ज़मीन भी है । अब क्योंकि इसी क्षेत्र से रेलवे लाईन निकल रही है , इसलिये यहाँ की ज़मीन की क़ीमतें आसमान को छूने लगी हैं । उसी आसमान छूती क़ीमतों के कारण यह मस्जिद वानी और शान ,दो समुदायोंके बीच विवाद का कारण बन गई है । फ़िलहाल इस मस्जिद पर शान परिवार का नियंत्रण है । लेकिन इस इलाक़े का वानी परिवार भी इस पर नियंत्रण के लिये काफ़ी अरसे से प्रयत्नशील है । इस इलाक़े में वानियों के तीस पैंतीस परिवार हैं । लेकिन वानियों का एजाज़ अहमद पुलिस में नौकरी करता है और संयोग से इस समय संगलदान की चौकी पर ही एस एच ओ है । वानी गूल के कांग्रेसी विधायक एजाज़ अहमद खान के समर्थक हैं , जो इस समय प्रदेश सरकार में राजस्व राज्य मंत्री हैं । इसलिये मस्जिद पर नियंत्रण को लेकर वानियों का पलड़ा भारी पड़ता जा रहा था । लेकिन शान परिवार को भी हल्का नहीं माना जा सकता । यह परिवार भी इलाक़े में रसूखदार माना जाता है । यह राजनैतिक परिवार है । लेकिन इस परिवार का सम्बध नैशनल कान्फ्रेंस और मुफ़्ती मोहम्मद सैयद की पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी से है । इस क्षेत्र में एन . सी और पी. डी. पी में आपस में दल बदल होता रहता है । मंजूर अहमद शान का भाई शमशान अहमद नैशनल कान्फ्रेंस का नेता है ।शान परिवार की शमशाद बानो कांग्रेस नेता एजाज़ अहमद खान के खिलाफ २००८ का चुनाव पी डी पी के टिकट पर लड़ी थी और उसे २९३७ मत मिले थे । शमशाद का भाई मंज़ूर अहमद शान भी इस क्षेत्र के प्रमुख सामाजिक - राजनैतिक रुप से अग्रणी लोगों में से था । वह अपने स्वभाव और व्यवहार के कारण इलाक़े में लोकप्रिय भी था । पढ़ा लिखा नौजवान था और राजकीय सेवा में सहायक प्रोफैसर था । ऐसी चर्चा थी कि यदि शान परिवार की ओर से वह आगामी चुनाव लड़ता है तो वर्तमान कांग्रेसी विधायक अहमद खान को कड़ी टक्कर दे सकता था । लेकिन वानियों की चिन्ता और थी । यदि मंज़ूर अहमद शान राजनीति में स्थापित हो जाता है तो वानियों के लिये भविष्य में मस्जिद पर नियंत्रण करना मुश्किल ही हो जायेगा । 
                   जब शान और वानी परिवार मस्जिद पर नियंत्रण की योजना को लेकर अपनी अपनी रणनीति बना रहे थे , तब आतंकवादी तत्व एक अलग योजना पर काम कर रहे थे । धर्म गांव से सीमा सुरक्षा बल का शिविर कैसे हटाया जाये ? सीमा सुरक्षा बल की उपस्थिति से इलाक़े के हिन्दु आश्वस्त अनुभव करते हैं । यह तभी हो सकता है , यदि किसी बहाने सीमा सुरक्षा बल से किसी बात को लेकर स्थानीय लोगों का तक़रार हो जाये । इसके लिये जुलाई मास से बेहतर समय और क्या हो सकता है ? क्योंकि एक ओर रमजान का महीना होता है और दूसरी ओर अमरनाथ की यात्रा इसी रास्ते से गुज़रती है । ऐसे समय में चिंगारी लगाना आसान है । 
                    इस पृष्ठभूमि में अब इस पूरे कांड को समझना आसान हो जायेगा । बुधवार की शाम को लगभग सात बजे डवाल के  मुस्तफा का बेटा , मोहम्मद अब्दुल लतीफ़ धर्म गाँव में सीमा सुरक्षा बल के शिविर के बाहर संदिग्ध अवस्था में घूम रहा था ।लतीफ़ संगलदान गाँव में एक छोटी मोटी दुकान करता था । लेकिन आजीविका के लिये रात्रि को धर्म गाँव में क़ाज़ी शबीर अहमद के मदरसे में रात्रि चौकीदार का काम भी करता है । बल के सिपाहियों ने उससे पूछताछ की तो उसने उनसे गाली गलौज करना शुरु कर दिया । बल का कहना है कि इसके बावजूद हमने उसे जाने दिया । लेकिन संभावना यही है कि बल के लोगों ने उसकी पिटाई के बाद ही उसे जाने दिया होगा । लेकिन उसके बाद के घटनाक्रम की पूरी स्क्रिपट षड्यंत्रकारियों ने शायद पहले ही लिख रखी थी । 
            उसका पहला हिस्सा था कि लतीफ़ को अपने साथ दुर्व्यवहार की कथा को किस प्रकार सुनाना है । लतीफ़ के अनुसार वह मदरसे में अकेला था और नमाज़ अदा कर रहा था कि सीमा सुरक्षा बल के तीन चार सिपाही मदरसे में दाख़िल हुये और कहने लगे कि यहाँ आतंकवादी छिपे हुये हैं , बताओ कहाँ हैं ? लतीफ़ कथा के अनुसार उसके इस आरोप का खंडन करने के बाद सिपाही ग़ुस्से में आ गये और उन्होंने वहाँ रखे क़ुरान शरीफ़ को फाड़ दिया । उसके बाद उसकी पिटाई शुरु कर दी । लतीफ़ के चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ सुन कर कुछ लोग आ गये और सीमा सुरक्षा बल के सिपाही वहाँ से चुपचाप चले गये । 
                   लेकिन प्रश्न यह है कि शिविर के बाहर सीमा सुरक्षा बल के साथ तू तू मैं मैं की घटना को लतीफ़ मदरसे तक खींच कर क्यों ले आया ? या फिर जिन लोगों ने पूरी कहानी में लतीफ़ को यह भूमिका दी , उन्होंने घटना तो सीमा सुरक्षा बल के शिविर के बाहर घटित करवाई और बाद में उस कथा को सुनाने के लिये मदरसा क्यों फ़िट कर दिया ? क्योंकि यदि घटना को शिविर तक ही सीमित रखा जाता तो क़ुरान शरीफ़ को फाड़ने की घटना जोड़ना सम्भव नहीं था । तब पूछा जा सकता था कि दुकान बन्द करके जब लतीफ़ मदरसे में रात को चौकीदार की ड्यूटी करने के लिये आ रहा था तो वह हाथ में क़ुरान शरीफ़ लेकर क्यों घूम रहा था ? ऐसी स्थिति में सीमा सुरक्षा बल द्वारा क़ुरान शरीफ़ फाड़ने की घटना विश्वसनीय दिखाई न देती । इसलिये घटनास्थल मदरसे में बदलना ज़रुरी हो गया होगा । यह ठीक है कि लतीफ़ की इस कहानी में भी बहुत कमज़ोर कड़ियाँ हैं । यदि सीमा सुरक्षा बल को सूचना मिलती है कि किसी स्थान पर उग्रवादी छिपे हैं तो उनको पकड़ने के लिये बल के तीन चार सिपाही जाकर दरवाज़े नहीं खटकाते । आतंकवादी कोई बकरी का बच्चा नहीं है , जिसे पकड़ने के लिये बल के सिपाही रस्सी लेकर जाते हैं और उन्हें पकड़ कर ले जाते हैं । तब सुरक्षा बल बाकायदा घेराबन्दी करते हैं । लेकिन लतीफ़ की मानें तो बल के सिपाही रस्सी लेकर ही आतंकवादियों को ढूँढ रहे थे । इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा । यदि आतंकवादियों की तलाश की कहानी अविश्सनीय है तो सीमा सुरक्षा बल के चार सिपाही मदरसे में क्या केवल क़ुरान शरीफ़ फाड़ने के लिये गये ? इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा ।  यह कहानी , स्क्रिप्ट लिखने वाले की दिमाग़ी हालत का संकेत ही देती है । परन्तु शायद षड्यंत्र रचने वाले जानते थे कि स्क्रिप्ट लेखक को साहित्य में नाम नहीं कमाना है , बल्कि सीमा सुरक्षा बल के खिलाफ दंगा भड़काना है । उसके लिये क़ुरान शरीफ़ फाड़ने की कथा से असरदार कथा और कोई नहीं हो सकती थी । जैसा षड्यंत्रकारियों ने सोचा वैसा हुआ भी । 
                        लतीफ़ ने इस पूरे मामले में अपनी भूमिका का एक हिस्सा निभा दिया था । अब दूसरे हिस्से की बारी थी । उसका ख़ुलासा भी लतीफ़ ख़ुद ही करता है । उसने मदरसे में जाकर सबसे पहले संगलदान के स्टेशन हाउस आफीसर एजाज़ अहमद वानी को फ़ोन पर सूचित किया । लतीफ़ का ही कहना है कि उसने तुरन्त गाँवों के लोगों को भी बुला लिया । इतना ही नहीं लतीफ़ के अनुसार उसने गाँव की मस्जिद के इमाम को और क्षेत्र के प्रमुख लोगों को बुला लिया । मदरसे से बी एस एफ के शिविर की दूरी लगभग एक किलोमीटर है और बीच में एक नाला और पुल भी आता है ।
       लतीफ़ के प्रयासों से लगभग तीन चार सौ लोगों की भीड़ मदरसे के बाहर एकत्रित हो गई । तहसीलदार बशीरुल्ल हसन भी वहाँ पहुँच गया । एस पी जावेद मट्टू अपने दफ्तर से निरन्तर तहसीलदार के सम्पर्क में रहा । जब मामला काफी गर्म हो गया तो तहसीलदार ने एस पी से सलाह कर लोगों को कहा कि की धर्म गांव से सीमा सुरक्षा बल का शिविर दूसरे दिन हटा लिया जायेगा और लोगों को वापिस भेज दिया । प्रश्न है कि प्रशासनिक तंत्र का सबसे छोटे स्तर का एक अदना सा अधिकारी तहसीलदार आख़िर सीमा सुरक्षा बल का शिविर हटा लेने की बात किसके कहने पर कर रहा था ? लोग तो क़ुरान शरीफ़ के तथाकथित अपमान को लेकर सीमा सुरक्षा बल के तथाकथित उत्तरदायी अधिकारियों को दंडित करने की मांग कर रहे थे । सीमा सुरक्षा बल का शिविर हटाने का षडयंत्र तो आतंकवादियों का हो सकता था । लेकिन तहसीलदार ने सीमा सुरक्षा बल के शिविर को ही धर्म गाँव से हटा लेने की बात कह कर एक प्रकार से प्रदर्शनकारियों को संकेत दे दिया कि दूसरे दिन वे शिविर हटाने की मांग करें । इस पूरी बातचीत के दौरान तहसीलदार पुलिस अधीक्षक जावेद मट्टू के सम्पर्क में था । 
                       उधर वानी समूह के लोग भी जानते थे कि कल के प्रदर्शन में शान परिवार के लोग भी ज़रुर हिस्सा लेंगे । क्योंकि राजनैतिक रुप से सरगर्म शान परिवार इस मौक़े पर विरोध प्रदर्शन की अवहेलना कर अपनी राजनैतिक हत्या नहीं कर सकता था । 
          और ठीक ऐसा ही हुआ ।  दूसरे दिन सुबह छह बजे ही लोग फिर घटनास्थल पर एकत्रित हो गये । तहसीलदार और एस पी के साथ वे सीमा सुरक्षा बल के शिविर स्थल पर पहुंचे । दोनों अधिकारी बातचीत करने के लिये अन्दर चले गये । लगभग दो हजार लोगों की भीड ने सीमा सुरक्षा बल के शिविर को घेरा हुआ था । इतने कम समय में इतनी ज्यादा भीड किसी सक्रिय संगठन के बिना एकत्रित नहीं हो सकती । आख़िर किन लोगों ने रातों रात लोगों को धर्म गाँव में लाने की व्यवस्था की ? संगलदान का एस.एच.ओ वानी पूरी तरह तैयार था ।पुलिस अधिकारी वानी कांग्रेस नेता और राज्य के राजस्व राज्य मंत्री एजाज़ अहमद खान के क़रीबी माने जाते हैं । भीड़ उत्तेजित हो रही थी । उसने शिविर पर पथराव शुरु कर दिया । सीमा सुरक्षा बल का वहाँ हथियारों का ज़ख़ीरा था । शान परिवार का प्रो० मंज़ूर अहमद शान लोगों को शान्त करने की कोशिश कर रहा था । मंज़ूर का आम लोगों पर प्रभाव था । वह इस क्षेत्र का भविष्य का नेता हो सकता था । उससे वानियों की सारी योजना चौपट हो जाती । उधर यदि मंज़ूर की कोशिशों से लोग शान्त हो जाते तो अहमद लतीफ़ को मोहरा बना कर बुना गया उग्रवादियों का पूरा षड्यंत्र फ़ेल हो जाता । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ठीक उसी समय एस एच ओ एजाज़ अहमद वानी ने प्वां़यट बलैंक रेंज से गोली चला कर शान परिवार के कुल दीपक मंज़ूर अहमद शान की हत्या कर दी । गोली चलने पर भीड़ ने यही समझा कि सीमा सुरक्षा बल ने गोली चलाई । लोगों ने शिविर पर आक्रमण कर दिया । शिविर के हथियारों पर ज़रुर षड्यंत्र करने वालों ने नज़र रखी हुई होगी और वे इसी मौक़े की तलाश कर रहे होंगे । सुरक्षा बल ने भी लोगों को भगाने के लिये गोली चला दी , जिससे तीन लोग मारे गये । पुलिस अधीक्षक जावेद मट्टू का कहना है कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई बल्कि सीमा सुरक्षा बल ने ही चलाई । यदि तर्क के लिये मान लिया जाये की जावेद सच बोल रहे हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि एस एच ओ वानी ने मौक़े पर उपस्थित पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बिना ही मंज़ूर अहमद शान पर गोली चला दी । लेकिन हो सकता है कि मट्टू को वानी के गोली चलाने का पता हो , लेकिन वे जानबूझकर सीमा सुरक्षा बल को बदनाम करने के लिये गलत बयानी कर रहे हों । मट्टू की ओर शक की सूई इसलिये भी जाती है क्योंकि उनका अब तक का पुलिस रिकार्ड दागदार ही रहा है । इससे पहले वे २००९ में शोपियां बलात्कार और हत्या मामले में हत्या के सबूत मिटाने के आरोपों में जेल भी जा चुके हैं । उस समय भी केन्द्रीय पुलिस बलों को बदनाम करने के लिये इन पुलिस अधिकारियों पर असली हत्यारों को बचाने के आरोप लगे थे । रामबन में तैनाती से पहले वे २०१२ में कारगिल में पुलिस अधीक्षक थे ।इन्हीं के कार्यकाल में जंसकार घाटी में २६ बौद्धों को मतान्तरित करके उन्हें मुसलमान बना लिया गया था ,जिसके विरोध में वहां जनान्दोलन हुआ था । तब भी पुलिस पर आरोप लगा था कि वह दोषियों को पकडने की बजाय मुसलमानों की नाजायज मदद कर रही है । मट्टू को रामबन में पुलिस का चार्ज संभाले अभी कुछ दिन ही गुये हैं । लेकिन आते ही उन्होंने केन्द्रीय पुलिस बलों के खिलाफ जनाक्रोश भडकाने के लिये मीडिया तक में कहना शुरु कर दिया कि यदि मेरे साथी मुझे परे न खींच लेते तो मैं भी सीमा सुरक्षा बल की गोली का शिकार हो जाता । इससे आम लोगों को शक हो रहा है कि मट्टू हत्या के आरोपी वानी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं । इसका अर्थ हुआ कि एजाज़ अहमद वानी शान परिवार के मंज़ूर अहमद को मारने के षड्यंत्र में भागीदार रहा होगा और मट्टू भी इसको जानते होंगे ।
               एस एच ओ एजाज़ अहमद वानी और उसके साथियों को लगता होगा कि भीड़ में जब गोली चलेगी तो सभी उसके लिये सीमा सुरक्षा बल को ही दोषी ठहरायेंगे । शान परिवार भी अपने बेटे की मृत्यु के लिये सीमा सुरक्षा बल को दोषी मान लेगा । एक बार फिर घाटी में केन्द्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ लोगों को भड़काया जा सकेगा और यह सिद्ध किया जा सकेगा कि केन्द्रीय सुरक्षा बल कश्मीरी मुसलमानों की हत्या कर रही है । षड्यंत्रकारी योजनानुसार घाटी में केन्द्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ जनभावनाओं को भड़काने में तो कामयाब रहे लेकिन शान परिवार अपने बेटे की हत्या में वानियों के षड्यंत्र को समझ गया था । मंजूर अहमद शान के चचेरे भाई और पी डी पी के नेता इम्तियाज़ हुसैन शान के अनुसार उसके भाई की हत्या वानी ने की है ।

लेकिन इसके बावजूद यह मानना पड़ेगा कि आतंकी षड्यंत्रकारी अपने कुछ उद्देश्यों में कामयाब हो गये । 
१. धर्म गाँव में केन्द्रीय सरकार ने सीमा सुरक्षा बल का शिविर हटाने का निर्णय किया । 
२. रामबन के हिन्दु ज़िलाधीश श्याम मीणा को हटा दिया गया और उनकी जगह मोहम्मद हुसैन मलिक को ज़िलाधीश बना दिया गया ।
३. आतंकवादी इस घटना की आड़ में घाटी में मुसलमानों को केन्द्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़काने में कामयाब रहे । लेकिन इसको इस घटना से निरपेक्ष रुप से भी देखा जा सकता है । क्योंकि फ़िलहाल घाटी में स्थिति यह है कि जब आतंकवादी चाहें वे किसी भी बहाने एक  दो दिन के लिये घाटी के गिने चुने हिस्सों में बंद करवा सकते हैं । 
                        षड्यंत्रकारी अपनी योजना के दूसरे हिस्से में असफल हुये हैं यह तब और भी अच्छी तरह स्पष्ट हो गया जब  रामबन के नये जिलाधीश मोहम्मद हुसैन मलिक ने शान्ति स्थापना के लिये क्षेत्र के लोगों की बैठक बुलाई तो वहाँ लोगों ने स्पष्ट कह दिया कि वे इस बात को मानने के लिये तैयार नहीं हैं कि सीमा सुरक्षा बल की गोलीबारी से मंज़ूर अहमद शान की मौत हुई । लोग पुलिस अधीक्षक की इस बात से भी सहमत नहीं थे कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई । पुलिस अधीक्षक यह भी चिल्लाते रहे कि सीमा सुरक्षा बल ने अचानक गोली चलाई कि वे ख़ुद भी मरते मरते बचे । लेकिन लोग इन गप्पों पर विश्वास करने के लिये तैयार नहीं थे और स्पष्ट मांग कर रहे थे कि राज्य पुलिस ने पहले गोली चलाई और इसके लिये एस एच ओ एजाज़ अहमद वानी को गिरफ़्तार किया जाये । राजस्व राज्य मंत्री के समर्थक शोर मचाते हुये वानी के समर्थन में बैठक का बहिष्कार करते हुये भी निकल गये , लेकिन तब भी रामबन के लोग पुलिस के षड्यंत्र को बेनक़ाब करते हुये वानी को गिरफ़्तार करने की मांग करते रहे । लोगों कहना है कि  पुलिस अधिकारी ऐआज अहमद वानी दरअसल लम्बे समय से मंज़ूर अहमद शान से बदला लेना चाहता था । उसने ठीक मौक़ा देख कर उसे ठिकाने लगा दिया । 
               लेकिन एक और प्रश्न इस पूरे षड्यंत्र में अनुत्तरित है । इस पूरे कांड में प्रदेश में मिल कर सरकार चला रही नैशनल कांग्रेस और सोनिया कांग्रेस की भूमिका क्या है ? आतंकवादी संगठनों का हित प्रदेश के लोगों को केन्द्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़काना है ताकि पाकिस्तान की हित साधना हो । राज्य सरकार और केन्द्र सरकार ने इस पूरे कांड की जांच के अलग अलग आदेश दिये हैं । लेकिन उमर अब्दुल्ला ने न तो उस जाँच रपट के आने की चिन्ता की जो उन्होंने इस कांड की जाँच के लिये स्वयं स्थापित की थी और न ही उस जाँच की रपट आने की प्रतीक्षा की जो केन्द्रीय सरकार ने स्थापित की है । इन दोनों जाँच रपटों के आने से पहले ही उमर अब्दुल्ला ने आनन फ़ानन में अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुला कर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की निन्दा का कड़ा प्रस्ताव पारित किया । उमर अब्दुल्ला ने कहा कि लगता है केन्द्र ने २००८ और २०१० की घटनाओं से भी कुछ नहीं सीखा । हम यह सहन नहीं करेंगे कि केन्द्रीय सुरक्षा बल निहत्थे प्रजर्शनकारियों पर गोली चलायें । लेकिन लगता है कि उमर ने २००८ और २०१० की घटनाओं से सबक सीख लिया है और पैसा लेकर सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वाले लगभग नौ सौ नौजवानों को राज्य पुलिस में ही भर्ती कर लिया है ।बाकी उन्होंने सुधरे हुये आतंकवादी और बिगडैल आआतंकवादी की पहचान की कला भी सीख ली है ।इसलिये अब वे तथाकथित सुधरे आतंकवादियों को सरकारी खर्चे पर बसा रहे हैं । यह शायद पहला अवसर है जब किसी राज्य सरकार के मंत्रिमंडल  ने केन्द्र के खिलाफ बाकायदा प्रस्ताव पारित किया हो । इस प्रस्ताव के पारित होने से उत्साहित होकर पाकिस्तान ने कश्मीर में केन्द्रीय बलों द्वारा संहार हो रहा है , ऐसे बयान जारी किये । उमर अब्दुल्ला अपने दादा के वक़्त की परम्परा से इतना तो सीख ही गये हैं कि जम्मू कश्मीर में सत्ता पर काबिज रहने के लिये , चाहे घाटी में बादल भी फटे , उसके लिये भी केन्द्रीय सुरक्षा बलों और सेना को उत्तरदायी ठहराना है । उससे दोनों काम आसान हो जाते हैं । केन्द्र सरकार नैशनल कान्फ्रेंस से डरी रहती है और इधर राज्य में सत्ता बनी रहती है । नैशनल कान्फ्रेंस यही व्यवहार रामबन कांड के सिलसिले में कर रही है ।
              नैशनल कान्फ्रेंस का यह व्यवहार फिर भी समझा जा सकता है , क्योंकि कुछ दिन पहले ही जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जम्मू कश्मीर में आये थे , तब उमर अब्दुल्ला ने उनकी हाज़िरी में ही स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर घाटी में नौजवान केन्द्र से कोई आर्थिक पैकेज पाने के लिये बन्दूक़ नहीं उठा रहे , बल्कि उनके सवाल बड़े हैं । इन बड़े सवालों में उमर पाकिस्तान को भी शामिल करना चाहते हैं । आने वाले चुनावों में कश्मीर घाटी में उमर की नैशनल कान्फ्रेंस का मुक़ाबला मुफ़्ती मोहम्मद सैयद की पी डी पी से होने वाला है । शायद इसीलिये वे बन्दूक़ उठाने वाले नौजवानों के बड़े सवालों से अपने आप को जोड़ रहे हैं और उसमें पाकिस्तान को भी शामिल करना चाहते हैं । जम्मू कश्मीर में बड़े सवालों से जुड़ने की पहली शर्त यही है कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों और सेना को खलनायक के तौर पर पेश किया जाये । वही उमर अब्दुल्ला कर रहे हैं ।
                    लेकिन सोनिया कांग्रेस का व्यवहार इस पूरे कांड में समझ से परे है । केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे के बयानों से लगता है कि वे भी सीमा सुरक्षा बल को राज्य में खलनायक ही मानते हैं । जब रामबन के लोग गोली कांड के लिये राज्य पुलिस को उत्तरदायी मान कर , वानी की गिरफ्तारी की मांग कर इस पूरे षडयंत्र को असफल बनाने में लगे हैं , उस समय शिन्दे धर्म गांव से सीमा सुरक्षा बल का शिविर हटा कर ,आतंकवादियों  के षड्यंत्र को कामयाब कर रहे हैं । राज्य मंत्रिमंडल की हिस्सेदारी में सोनिया कांग्रेस भी है और वही मंत्रिमंडल केन्द्रीय सुरक्षा बलों को खलनायक बताता हुआ प्रस्ताव पारित कर रहा है । सोनिया कांग्रेस इतना तो जानती है कि ऐसे खेल खेल कर नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी तो वोटें हासिल कर सकती हैं , लेकिन कांग्रेस के हाथ इससे कुछ लगने वाला नहीं है । अलबत्ता जम्मू में उसे नुक़सान ज़रुर हो सकता है । फिर आख़िर सोनिया कांग्रेस राज्य में यह ख़तरनाक खेल किसके इशारे पर खेल रही है और उसका उद्देश्य क्या है ? जब किसी दिन देश में आतंकवाद के रहस्यों की गहराई से जाँच होगी तो ऐसे अनेक रहस्य खुलेंगे । लेकिन फ़िलहाल रामबन कांड में पांच प्रश्नों की जाँच करना ज़रुरी है ।
१ क़ुरान शरीफ़ के अपमान के तथाकथित आरोप के नाम पर लोगों को भड़काने वाला मोहम्मद अब्दुल लतीफ़ कौन है और उसके पीछे किन लोगों का हाथ है ।
२ लतीफ़ ने सीमा सुरक्षा बलों के जवानों से तू तू मैं मैं करने से पहले और उसके तुरन्त बाद किन किन लोगों से सम्पर्क किया ? 
३ वीरवार , १८ जुलाई को प्रात: चार बजे से लेकर सात बजे तक कौन लोग थे जो इस पूरे क्षेत्र में भीड़ को लाने की व्यवस्था में जुटे थे ? 
४ पुलिस अधीक्षक जावेद मट्टू का इस कांड से कुछ दिन पहले ही कारगिल से रामबन में तबादला किस के कहने पर किया गया ? 
५ संगलदान के स्टेशन हाउस आफीसर एजाज़ अहमद वानी ने बुधवार रात्रि ग्यारह बजे से लेकर वीरवार सुबह नौ बजे तक किन किन से बातचीत की ? 
                रामबन कांड के षड्यंत्र की तह तक जाने के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजना ज़रुरी है , लेकिन रामबन के लोगों को डर है कि सरकारी जाँच इसी बात पर ख़त्म हो जायेगी कि सीमा सुरक्षा बल ने गोली क्यों चलाई । अलबत्ता लाशों पर राजनीति की रोटियाँ सेंकने का काम शुरु हो गया है । वह ज़रुर देर तक चलता रहेगा ।
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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

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